किसका बदला है हाल ?
तारीख बदली महीना बदला, और बदला है साल
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल।
अल्फ़ाज़ वही अन्दाज़ वही, आदमी भी वही है
ना जुबाँ बदली है उसकी, ना ही बदला है गाल।
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल ।।
कहता है ज़माना, कि धोखा खा गया 'अनजाना'
दुकानदार ने लेबल बदला है, नहीं बदला है माल।
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल ।।
मछलियाँ दरिया में होती, तो ठिकाना भी बदलती
ना मछुआरा बदला ना पानी, ना बदला है ताल।
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल ।।
आदमी हो या परिंदा, पेट भरा हो तो रहता जिंदा
जुल्मो भूख कब मिटेगी, नहीं बदला है सवाल।
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल ।।
शिकारी जाना पहचाना, मगर शिकार 'अनजाना'
बहेलिये ने शिकार के लिए, फिर बदला है जाल।
यों साल के बदलने से, किसका बदला है हाल ॥
4 टिप्पणियां:
It's Amazing & True Sir Ji
नए साल पर "वास्तविक जीवन" का सटीक चित्रण किया गया है।
किसी पिछड़े और वंचित के जीवन में, जब से अभावों का सिलसिला समाप्त होता है, तभी से उसका नया साल नया शुरू होता है।
Very nice creation.
शत प्रतिशत सत्य
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