गुरुवार, 18 जनवरी 2024

नाचती हुई स्त्रियां-  डॉ.पूनम तुषामड़ सामाजिक चिंतक, लेखक, कवयित्री


 

नाचती हुई स्त्रियां


 नाचती हुई स्त्रियां

बहुत सुंदर लगती हैं

या कहूं बहुत मन

मोहक दिखती हैं।

जब वे नाचती है

थिरकती हैं किसी

मधुर,सुरीली ताल पर

नहीं देखती उम्र

कूढ़ती जिंदगी के हाल पर

नाचती हुई  स्त्रियां

मदमस्त हो

हर्षोल्लास से भरी

भूल जाती हैं

दिन भर की थकान

जीवन के दुख,

बच्चो की चिंता

पति का रोब,

सास ससुर के ताने

जों देते हैं दर्द उसे

किसी ना किसी बहाने

 नाचती हुई स्त्रियां

गरीब हों या अमीर

सजी संवरी रमणियां

या श्रम जीवी युवतिया

मोहिनी सी अप्सरा हो,

या कि हो वह मेनका

आम्रपाली,चित्रलेखा

या सुजाता सी सखा।

सदैव सुंदर दिखती हैं

 नाचती हुई स्त्रियां चाहे

किसी धर्म की हो

जाति या समुदाय की

देश की हो या विदेशी

जब वह नाचती है

तो थिरक उठती हैं

दिशाएं ,झंकृत होने

लगती हैं रोम रोम में

सदियों से दबी कलाएं

 नाचती हुई स्त्रियां

बहुत सुंदर दिखती हैं

फिर वे चाहे समूह में

नाचे या अकेली ।

चाहे हो नृत्य की

कोई भी शैली

कजरी हो ,राई

झूमर या कालबेली

बाघ, गोंड  कर्मा,

गरबा, नट या ढाका

रग्बी, पोव्हीरी,कापा

या "माओरी हाका "

नाचती हुई स्त्रियां

सदैव सुंदर लगती है

 नाचती हुई स्त्रियां

अपने नृत्य में एक

उल्लास को जीती हैं

प्रेम में तो मीरा बन  

जहर का प्याला तक

हंसते हंसते पीती हैं।

 नाचती हुई स्त्रियां

सबको भाती हैं।

फिर चाहे शोक में नाचें

क्षोभ में,क्रोध या

रास परिहास में

पुरुष की कहें तो कभी

दिलरूबा,गुलबदन बन

दिल लुभाती है।

अपनी अदाओं के

बाण चलती हैं।

 भूपतियों,सामंतो और

सत्ताधारियों की महफिल

की जान होती हैं।

कभी बार डांसर , वैश्या

और राजनृतकी बनकर

इनके मनोरंज की दुकान

सजाती हैं ।

 नाचती हुई स्त्रियां

हर किसी को लुभाती है

पसंद आती है फिर चाहे

वह स्वेच्छा से नाचे

या किसी के इशारों पर

 किसी पुरुष को प्रेम

पाश में बांध कर इठलाती

इतराती ,नाचती, और

अपने इशारों पर नचाती

स्त्रियां किसी को नहीं भाती है।

घर ,समाज, और सत्ता  की

आंख की किरकरी

बन जाती है ये स्त्रियां।

 फिर भी सच कहूं 

मुझे बहुत पसंद आती है

ये खुलकर ,जश्न मनाती

हंसती नाचती और दूसरों

को भी नचाती स्त्रियां।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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