सोमवार, 22 जनवरी 2024

स्त्री... सृष्टि... सौन्दर्य - डॉ.वंदना गुप्ता शिक्षाविद् और साहित्यकार


 

स्त्री... सृष्टि... सौन्दर्य

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कलाकार की आंखें ,कभी मरती नही है

रहती है जिन्दा अनन्त काल तक....

टिकी होती है सृष्टि के रहस्यों पर

स्त्री के भावात्मक स्पंदनों पर

कल्पना, कोमलता, सौन्दर्य में

लिपटा उसका ऋषित्व भाव

गढ़ता है कई अनोखी कला-छवियां...

इतिहास के निश्चित बिन्दुओं पर

बनी उसकी कलाकृतियां

अपना रास्ता तय कर

जुझती है खुद से...

फिर कटघरे में खड़ी

करती हैं ज़िरह आस्था -अनास्था,

पाप - पुण्य के सवालों पर ...

तलाशती है नयी जमीन

ऐसे में अपनी सघन, दुर्लभ

कल्पनाओं के परों को

हर्फ़ हर्फ़ सीमाओं में समेटना

कितना मुश्किल होता होगा उसके लिए

इसे एक कलाकार से ज्यादा कौन जान सकता है

स्त्री... सृष्टि... सौन्दर्य में

रची-बसी उसकी सूक्ष्म दृष्टि

पानी पर लकीरें खी़चने की

भावात्मक मन: स्थिति

तपस्या सी परिकल्पनाएं...

काग़ज़ी घोड़े पर सवार

जीवन के अन्तिम छोर पर

हो जाती हैं प्रवासी...

और त्रासदी की यात्रा तय कर

करती हैं अकल्पनीय मृत्यु का वरण...

पर कलाकार की आंखें

मरती नहीं है रहती है जिन्दा

सृष्टि के अनन्त काल तक

तलाशती है सृष्टि का छोर-छोर

बचाएं रखती हैं उसका सौन्दर्य

जन्म -जन्मातर तक...।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...