सच को नकारते हुए
आये दिन सच को चकमा देते हुए वह
बुनता है झूठ के ताने बाने से घटनाओं का जाल
उसी जाल में फंसा हुआ कराहता रहता है मेरा अतीत
फड़फड़ा रहा है मेरा वर्तमान
लहूलुहान हो गया है बच्चों का भविष्य
बूढ़ी हो चली है मेरी उम्मीद और किस्मत
सहारे के लिए कोई लाठी भी नहीं है
पैरों में अब कोई जान नही रही
उम्मीद और किस्मत झुर्रियो से घिरकर बदसूरत हो गई है
अब कुछ भी सही नहीं होगा यह जानते हुए भी मै
बूढ़ी उम्मीद को बताती हूं
जवान होने के नुस्खे
और किस्मत को पढाती हूं सर्वाद्धसिद्धि के मन्त्र
विश्वास दिलाती रहती हूं सब-कुछ ठीक हो जाने का
इस तरह एक ही घर में अलग अलग हम जी रहे है झूठ की जिंदगी
सच को चकमा देते हुए !!
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