गुरुवार, 18 जनवरी 2024

"ये पचास साल की औरतें"- नीलम पारीक

 

"ये पचास साल की औरतें"

💐💐💐

ये पचास साल की औरतें,

घर और बाहर

दोनों मोर्चों पर जूझती,

भूल गई हैं कब से,

खुद को ही,

ये पचास साल की औरतें,

लोन की किश्तें चुकाती,

उस घर के लिये

जो कभी न था न होगा उनका

फ़िर भी एक-एक पैसा बचाती,

ये पचास साल की औरतें,

बेटियों के ब्याह की चिंता लिये,

दहेज के लिये पैसे जुटाती,

एक भली सी बहू का सपना देखती,

खुद को उसके अनुसार ढालने को

खुद को तैयार करती,

ये पचास साल की औरतें,

कुछ नाती- पोतियों को

पार्क में घुमाती

शाम को ऊँगली थामे

अपने घुटने का दर्द भूल

बच्चों में खुद को रमाती,

ये पचास साल की औरतें,

अपना बी पी, शुगर, थायराइड

अपने ही भीतर लिये

कभी दवाओं से दबाती

कभी बिना ज़िक्र छिपाती

घडी की सुई के साथ-साथ

निरन्तर भागती

ये पचास साल की औरतें,

कभी पूनम,एकादशी मनाती,

व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन में

अपने भीतर के दुःख हो भुलाती,

परिवार में मिले अपमान के

कड़वे घूँट को शिव ज्यों

कण्ठ में धारण किये

मुख से मीठे बोल से बतियाती,

मन में थार लिये मीठे झरने सी

स्नेह का अमृत बरसाती,

ये पचास साल की औरतें,

कुछ पल चोरी से चुपके से,

जीती हुई अपने लिये,

कभी-कभी हंस लेती

बतिया लेती खुद से ही...

ये पचास साल की औरतें,

कभी-कभी आईने में

देख उम्र की लकीरें,

बालों की चांदनी

मुस्कुरा लेती हल्के से

याद कर कुछ सुनहरे

जिये-अनजिये पल...

ये पचास साल की औरतें...

ये पचास साल की औरतें...

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...