सत्ता का सूचकांक ---------
आज के राजनैतिक परिदृश्य में अवसरवादिता, सत्ता - लोलुपता और वैयक्तिक संकीर्ण स्वार्थपरता इस कदर हावी है
कि मूल्य परक राजनीति शब्द कोष से विलुप्त हो चुकी है। बिहार तो एक रूपक है पूरे
देश की राजनैतिक संस्कृति का। नालन्दा और तक्षशिला में अब केवल कूटनीतिक कौशल की
दीक्षा दी जाती है। बुद्ध, महावीर, राजेन्द्र प्रसाद और दिनकर के बिहार में ओजोन परत हट गई है। नीतीश
में से नीति शब्द गायब है और सत्ता - परिवर्तन के बाद भी नीतीश कुमार ही
मुख्यमंत्री हैं। यह इस बात का सूचक है कि व्यवस्था - परिवर्तन अब एक यूटोपिया
मात्र है। यह ठीक है कि अब जंगल राज का आगाज नहीं हो पाएगा, किन्तु यह निष्पत्ति है, नेताओं
का लक्ष्य नहीं। वैसे नैतिकता का यह पतन सार्वत्रिक है और सामान्य नागरिक पर
राजनीति बुरी तरह हावी है। भारतीय समाज में जातीय चेतना को कदाचित् सुशिक्षित
व्यक्ति भी अतिक्रमित नहीं कर पाता। वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा की छाया में
जातीय कुटुम्ब पलता रहता है। परिवार वादी समाज वाद त्यागी पुरुषों को प्रणाम कर
भोगवादी तूर्य बजाता रहता है। भरत के मनाने के बावजूद राम ने राज्य का त्याग किया
था और चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। उसी राम के पूजक सत्ता - प्राप्ति के लिए
शपथ का साफा या मुरेठा खोल देते हैं। चाल, चरित्र
और चेहरे की विशिष्टता को सत्ता की खूंटी पर टांग देते हैं। उनकी उपासना का हर कदम
वासना की राह में है । तुष्टीकरण बनाम ध्रुवीकरण का द्वन्द्व। पिछड़े अगड़ों से भी
आगे निकल चुके हैं और अब वे आरक्षण नहीं, सत्ता
- केन्द्रों पर काबिज हैं। मेरा एक और वीक्षण (आब्जर्वेशन) है कि समय बड़ा बलवान
है और सबकी उठान का एक समय होता है। अटल - आडवाणी के बाद कभी कल्याण सिंह महानायक
बनकर उभरे और फिर रसातल में चले गए। अभी हाल में अन्ना हजारे लोकनायक बनकर उभरे और
उनके एक अनुषंग अरविन्द केजरीवाल की लहर पूरे देश में आई और 'आप' की टोपी सर्वत्र छा गई। फिर देश
में मोदी का सर्वातिशायी प्रभाव परिलक्षित हुआ और अब भी मोदी - लहर वर्तमान है।
नरेन्द्र मोदी एक वैश्विक नेता बन कर उभरे। नीतीश कुमार उनका विकल्प बन कर उन्हें
अपदस्थ करने की कोशिश बार बार करते रहे, किन्तु
बार बार उन्हें मोदी की छाया में काम करना पड़ा। और अब तो उन्हें "पलटू
राम" का नाम भी मिल गया है। नीतीश सबके हैं। इस लिए कोई उन्हें अपना समझने की
भूल न करे। किन्तु एक समय था, जब उनकी पहचान "सुशासन
बाबू" के रूप में थी। अब तो वे भी कल्याण सिंह की तरह धूल में मिल चुके हैं।
उनकी दाढ़ी झाड़ी बन चुकी है। खैर, उम्मीद
करनी चाहिए कि बिहार में विकास का एक नया अध्याय फिर से लिखा जाएगा। इण्डिया
अब भारत बन चुका है। किन्तु भारत की
धार्मिक संस्कृति के मूल स्वरूप को बचाना होगा। अध्यात्म के आधुनिकीकरण की जरूरत
है, विकृतीकरण की नहीं। बहुत याद आता है
फणीश्वरनाथ रेणु का पलटू बाबू रोड।
अजित कुमार राय, कन्नौज
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