शनिवार, 13 जनवरी 2024

गिरना एक पुल का - प्राञ्जल राय


-------- गिरना एक पुल का ---------

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हमारे समय की देह पर

सबसे गहरे रंग में

सबसे गाढ़े अक्षरों में लिखा है - 'पतन'

जहाँ सारी चीजें अपना गुरुत्त्व खोकर

गिरती जा रही हैं ।

जहाँ गिरना इतना सामान्य है

कि गिर जाना अख़बार के पिछले पाँव में लगी धूल से ज़्यादा कुछ भी नहीं

और गिरने के उच्चारण से अधिक सामान्य है गिर जाना ।

यूँ ही नहीं गिर जाता है कोई भी ढाँचा

पहले गिरते हैं लोग

अपनी संवेदनाओं से, ईमान से, सच से

पहले गिरता है आदमी,

गिरता है आदमी, अपने आदमी होने से

और फिर गिर जाती है एक सभ्यता ।

 

एक बड़े से शहर के बीचोंबीच

गिर पड़ा है एक पुल,

नहीं सदियों पुराना नहीं बिल्कुल जवान

और फ़ौलाद ने देखा कि उसके सभी उपमेय दुनिया से कूच कर चुके हैं !

यह गिरा हुआ पुल

आदमी के कद में गिरावट की तस्दीक करता है ।

वह समय जहाँ नालियों की मरम्मत का श्रेय

शिलालेखों की देह को रंगीन कर देता है,

वहाँ पुल का गिरना इतना सामान्य है कि

उस गिरने के प्रति किसी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती ।

अभी हमें कई और पुलों को गिरते हुए देखना है ,

ढहते देखना है कई और ढाँचों को

जब तक ढह नहीं जाता

हमारी मध्यवर्गीय मानसिकता का ढाँचा ।

 

 


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