इलाहाबाद
साहित्य के महान नक्षत्र यश मालवीय
बहुत
ही सौम्य प्रकृति के कवि यश मालवीय हिंदी साहित्य के एक महान नक्षत्र तथा कालजयी
कृति की तरह हैं जो हिंदी साहित्य की जगमगाते सितारे हैं। इलाहाबाद के प्रसिद्ध
सिद्धहस्त कवि के रूप अपनी एक पहचान बनाई है। कानपुर में इनका जन्म हुआ था लेकिन
इलाहाबाद में कर्मस्थली बना लिया और इलाहाबाद की साहित्यिक मिट्टी मिलते ही इनके
अन्दर साहित्य के बीज अंकुरित होने लगे।
इलाहाबाद
विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री ली और इलाहाबाद में ही रोजी रोटी मिल गई और
साहित्यिक भूमि होने के कारण अपनी कर्मस्थली बना ली। साहित्य में इनका मन खूब लगता
था। खूब जमकर साहित्य पढ़ते थे। साहित्यिक गतिविधियों में भी जाने लगे। इस तरह से
साहित्य के प्रति रुझान प्रगाढ़ होता गया। धीरे धीरे कलम आपकी सराहनीय रचना देने
लगी। इनकी एक रचना...
आग
जगाए रखिए
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आग
जगाए रखिए
दिन भर
आग
जगाए रखिए
जैसे
भी हो
इस
सर्दी में
राग
जगाए रखिए
हो
विचार के लिये
मज़े का
मिट्टी-पानी
मन में
चले
नहीं अब
किसी
तरह की
खींचातानी
मन में
राग-रंग
त्यौहार
वसंती
फाग
जगाए रखिए
बड़े
जतन से
जटिल
ज़िन्दगी
कुछ
ऐसे जी जाए
हरियाली
की
परिभाषा
को
बर्फ़
नहीं पी पाए
पाला
मारे
मौसम
में
बन-बाग
जगाए रखिए
सम्वेदन
की
साँसों
को
कुछ
और-और गहराएँ
सर्द
हवा के साथ
आम के
बौर
खुद
चले आएँ
इसका-उसका
अपना
सबका
भाग
जगाए रखिए
धुंध
धुआँ को
अँधियारे
को
ऊँचे
स्वर में डाँटें
किरन
उगाएँ
छाए
हुए
कठिन
कुहरे को काटें
ठहरे
हुए
समय
में
भागमभाग
जगाए रखिए।
इस तरह
से कविता, दोहा, व्यंग्य ,नवगीत पर खूब लिखने लगे। सहज सरल स्वभाव के यश मालवीय जी प्रकृति प्रेमी
हैं। प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण में माहिर हैं। प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण
करने की तीव्र शक्ति वाला ही एक सुंदर नवगीत लिख सकता है। यह गुण हिंदी के
नवगीतकार यश मालवीय की कलम की धार से मतिस्क से होकर कागज के पन्नो पर आ जाता
है।सचमुच आपकी रचनाएं मन को आह्लादित तथा प्रफुल्लित कर देती है।
यश जी
बहुत ही सरल सहज भाषा में लिखते हैं। जानी पहचानी सी।एकदम नयापन के साथ और नई
ऊर्जा से एक नई शैली में इनका नवगीत सचमुच ह्रदय की गहराइयों को छू लेती है। एक
अनंत दुनिया की सैर कराती हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन,प्रमुख रूप से नवगीत लेखन। कवि सम्मेलनों में
भागीदारी के अतिरिक्त दूरदर्शन, आकाशवाणी के विभिन्न
केन्द्रों से रचनाओं का प्रसारण, पत्र-पत्रिकाओं में इनकी
रचनाएं छपती रहती हैं।
प्रमुख
कृतियाँ : ‘कहो सदाशिव’, ‘उड़ान से पहले’,
‘एक चिड़िया अलगनी पर एक मन में’, ‘बुद्ध
मुसकुराए’, ‘रोशनी
देती बीड़ियाँ’, ‘नींद काग़ज़ की तरह’, ‘समय लकड़हारा’, ‘वक़्त का मैं लिपिक’, ‘एक आग आदिम’, (नवगीत-संग्रह); ‘चिंगारी के बीज’ (दोहा-संग्रह); ‘इंटरनेट पर लड्डू’,
‘कृपया लाइन में आएँ’, ‘सर्वर डाउन है’
(व्यंग्य-संग्रह); ‘ताक धिनाधिन’, ‘रेनी
डे’ (बालगीत-संग्रह); एक नाटक ‘मैं कठपुतली अलबेली’ भारत रंग
महोत्सव, नई दिल्ली में मंचित और दो बार उ.प्र. हिन्दी
संस्थान का ‘निराला सम्मान’, संस्थान का ही ‘सर्जना सम्मान’
व ‘उमाकांत मालवीय सम्मान आदि कई सम्मान भी मिले हैं।
जयचन्द
प्रजापति "जय'
प्रयागराज
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