गुरुवार, 25 जनवरी 2024

सहारे तलाशना बन्द करो- अशोक सक्सेना


 

सहारे तलाशना बन्द करो

धीरे-धीरे

तुम में समा गया है

असुरक्षा का भाव

बन्द मुट्ठियों से

रेत की तरह झर जाने का भाव

तुम्हारे चेहरे पर उग आयी है

बेबस लाचारी

सहारे तलाशना छोड़ो

एक पल

रेत के टीले पर बैठे बच्चे को निमित भर देखलो

कैसे दोनों हथेलियों से

रेत से खेल रहा रेत का खेल

जीवन का उपक्रम है खेल रेत का

इस खेल को एक खिलाड़ी की तरह खेलो

सहारे तलाशना बन्द करो।

कोई टिप्पणी नहीं:

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...