मंगलवार, 30 जनवरी 2024

दुनिया को शोक में डुबो गए थे, बापू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (पुण्य तिथि/ शहीद दिवस: 30 जनवरी )- डॉ.प्रकाश चंद जैन


 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ( पुण्य तिथि/ शहीद दिवस: 30 जनवरी )

( दुनिया को शोक में डुबो गए थे बापू) 

      “मैं अहिंसा की कसौटी पर तब खतरा उतरूंगा जब कोई व्यक्ति मुझे जान से मार रहा हो तब भी मेरे दिल में उसके प्रति क्रोध न हो और राम नाम मेरे मुँह से निकले |” यह बात गांधी ने अपनी मृत्यु से पहले कही थी और 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे की तीन गोलियों से गांधी की मृत्यु वैसे ही हुई, जैसी वे चाहते थे, आक्रमणकारी के प्रति कोई दुर्भावना न रखते हुएमुस्कुराते हुए हत्यारे का हाथ जोड़कर सामना करते हुए, 'हे राम' नाम का जप करते हुए | गांधी की मृत्यु की खबर से पूरे विश्व में शोक की लहर दौड़ गई थी | आधुनिक इतिहास में किसी भी व्यक्ति के लिए इतना गहरा और इतना व्यापक शोक आज तक नहीं मनाया गया जितना महात्मा गांधी का | शोक मनाने वालों में पूरे विश्व की प्रमुख हस्तियों के साथ सामान्य जन भी शामिल था | गांधी की मृत्यु पर भारत सरकार को विदेशों से 3441 संवेदना भरे श्रद्धांजलि सन्देश प्राप्त हुए थे | दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने अपनी बैठक की कार्रवाई रोक दी थी और अपना झंडा झुका दिया था | संयुक्त राष्ट्रसंघ स्थित इंग्लैण्ड के प्रतिनिधि फिलिप नोएल-बेकर ने गांधीजी का गरीब से गरीब, सबसे निचले वर्ग के लोगों तथा अत्यंत अभागे लोगों के मित्र के रूप में उल्लेख किया था | भारत के अंतिम गवर्नर जनरल माउंट बेटन ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा था : "दुनिया आपको ईसा मसीह और महात्मा बुद्ध के साथ स्मरण करेगी |" साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त पर्ल एस. बक ने गांधीजी की हत्या को 'ईसा की सूली' के समान बतलाया |  जिस ब्रिटिश शासन के खिलाफ गांधीजी ने संघर्ष किया उसके प्रधानमंत्री एटली ने कहा था : "इस विचित्र व्यक्तित्व की क्षति न केवल उनके अपने देश वरन पूरे संसार हेतु शोक का विषय है |" चीन के राजनेता एवं सैनिक नेता जनरल च्यांग-काई-शेक ने टेलीग्राम में लिखा था : "वह संत, जो अहिंसा का दूत था, हिंसा की बलि चढ़ गया |"  फ़्रांस के प्रख्यात समाजवादी लियो ब्लम ने लिखा  :"मैंने गांधी को कभी नहीं देखा | मैं उनकी भाषा नहीं जानता | मैंने उनके देश में कभी पाँव नहीं रखा; परन्तु फिर भी मुझे ऐसा शोक महसूस हो रहा है, मानो मैंने कोई अपना प्यारा खो दिया दिया हो | इस असाधारण मनुष्य की मृत्यु से सारा संसार शोक में डूब गया है |" जोसेफ मिटकेल, जॉर्ज पाड़मोर तथा रिचर्ड हार्ड हबशी नेताओं ने कहा : "स्वतंत्रता के खातिर लड़ रहे अफ्रीकन लोगों के लिए गांधीजी का जीवन-कार्य सदा ध्रुवतारक तथा प्रेरणा-रूप बना रहेगा |" अमेरिकन हबशी स्त्रियों का नेतृत्व करने वाली श्रीमती मेरी बेथुन ने कहा : "ऊष्मा प्रदान करने वाली महान ज्योति बुझ गई है | ... उनकी आत्मा आकाश के तारों को छूने की तथा बंदूकों, संगीनों या रक्तपात के बिना संसार को जीतने की उत्कट आकांक्षा रखती थी | हम धरती की माताएं जेट विमानों की गर्जना, अणुबम के विस्फोटों तथा जंतुयुद्ध की अज्ञात भयंकरताओं से काँप रही हैं, महात्मा का सूर्य जहां अपना सम्पूर्ण प्रकाश फैला रहा है उस पूर्व की तरफ हमें आशाभरी नजरों से देखना चाहिए |"  दि न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा : "गांधी अपने पीछे विरासत के रूप में अपनी आध्यात्मिक शक्ति छोड़ गए हैं, जो यथासमय आधुनिक शस्त्रास्त्रों पर तथा हिंसा के क्रूर सिद्धांत पर विजय प्राप्त करेगी | " 

     आकशवाणी पर पंडित नेहरू ने गांधीजी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा : "मित्रों ! हमारे जीवन की ज्योति चली गयी और सर्वत्र अंधकार ही अंधकार छ गया है | हमारे राष्ट्रपिता अब नहीं रहे | मैंने कहा कि प्रकाश चला गया है, लेकिन मेरा कहना गलत था, क्योंकि जो ज्योति इस देश में प्रकटी और जली, वह साधारण ज्योति नहीं थी | जिस ज्योति ने इतने वर्षों तक इस देश को प्रकाशित रखा है, वह अनेक वर्षों तक देश को प्रकाशित करती रहेगी |"

     गाँधीजी की मृत्यु से दस साल पहले गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था : "शायद वे सफल न हों; मनुष्य को उसकी दुष्टता से मुक्त कराने में शायद वे उसी तरह असफल रहें जैसे बुद्ध रहे, जैसे ईसा रहे | मगर उनको हमेशा ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा जिसने अपना जीवन आगे आने वाले सभी युगों के लिए एक शिक्षा समान बना दिया है |"

      जहां विश्व के कोने-कोने से प्रख्यात जानी- मानी हस्तियों ने गांधी को श्रद्धांजलि दी वहीं न्यूयार्क में 12 साल की एक लड़की ने जब रेडियो पर गांधीजी पर गोली चलाई जाने का समाचार सुना तब उस लड़की, उसकी नौकरानी और माली ने सम्मिलित प्रार्थना की और आंसू बहाए | इस तरह सब देशों में करोड़ों लोगों ने गांधीजी की मृत्यु पर ऐसा शोक मनाया, जैसे उनकी व्यक्तिगत हानि हुई हो |

         गांधीजी की मृत्यु ऐसे समय हुई जब वे अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे | सरोजिनी नायडू ने बिल्कुल उचित ही कहा था, कि गांधी को राजाओं के शहर दिल्ली में ही मरना चाहिए | औरतों को गांधी के शव पर दहाड़ें मारते देखकर वे (सरोजिनी नायडू) कह रही थी, 'यह सब ढोंगबाजी आखिर किसलिए, क्या तुम लोग यह चाहते थे, कि वे बुढ़ापे अथवा अपच से मरें, उनके लिए ऐसी महान मृत्यु ही होनी चाहिए थी | सरोजिनी नायडू को उन लोगों से कोई सहानुभूति नहीं थी, जो यह  प्रार्थना कर रहे थे, कि गांधी की आत्मा को शान्ति मिले | उन्होंने कहा था : "मेरे पिता, कदापि शांत मत होना, हमें निरंतर शक्ति देते रहना ताकि हम अपने वादे पूरे कर सकें |"

    मानव इतिहास में कई महान पुरूष हुए जो अपना पूरा सामर्थ्य किसी विशेष लक्ष्य को अर्जित करने में लगा देते हैं किन्तु गांधी के लक्ष्य विविध थे | निजी लक्ष्य ईश्वर से साक्षात्कार करना तो सार्वजनिक लक्ष्यों में भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति दिलाने के साथ भारतीय समाज का उत्थान करना था | राम का अनन्य भक्त, अछूतोद्धारक, खान-पान विशेषज्ञ, प्राकृतिक चिकित्सक, किसान व बुनकर, शौचालय साफ करने वाला साफ-सफाई का अभियंता, साम्प्रदायिक एकता का शांतिदूत, प्रखर वकील, स्वतंत्रता आंदोलन का कुशल नेतृत्वकर्ता, निर्भीक पत्रकार, कुशल चर्मकार, ये सब रूप उनके व्यक्तित्व में समाहित थे |

      गांधीजी ने 1933 में अपने मित्र को अपने जीवन के बारे में लिखा था: "मेरा जीवन एक अविभाज्य अंग है --मैं स्वयं को पूरी तरह अछूतोद्धार के लिए यह कहकर समर्पित नहीं कर सकता कि "हिन्दू-मुस्लिम एकता या स्वराज को नजरअंदाज कर दिया जाए | ये सारी बातें एक दूसरे से गुत्थी हुई है और एक दूसरे पर निर्भर है | आप मेरे जीवन में मुझे कभी एक बात पर जोर देते पाएंगे , जबकि दूसरे समय दूसरे मुद्दे पर | यह एक पियानों -वादक की तरह है, जो कभी एक तार को छूता है तो, कभी दूसरे को |

     गांधी अपने जीवन की जर्जर वृद्धावस्था में नोआखाली और बिहार के भयानक दंगाग्रस्त इलाके में, जहां मारकाट मची हुई थी, अकेले नंगे पाँव घूमते हुए स्वयं को शहादत हेतु प्रस्तुत कर रहे थे | जिस तरह हिंसा के प्रशिक्षण के दौरान व्यक्ति को हत्या करने की कला सीखना अनिवार्य है, उसी तरह अहिंसा के प्रशिक्षण में गांधीजी जीवन भर अपनी शहादत देने की कला सीखते रहे | 30 जनवरी, 1948 को गोडसे द्वारा गोली चलाये जाने के दस दिन पहले 20 जनवरी को गांधी की प्रार्थना सभा में उन्हें मारने के लिए मदनलाल पाहवा ने बम फेंका था | गांधीजी जानते थे कि उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है, फिर भी सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया | प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा कि अगर कोई मुझे करीब से गोली मारे तो मैं मुस्कराकर कर ह्रदय में ईश्वर का नाम जपते रहना चाहता हूँ और 30 जनवरी को गोडसे ने गोली मारी, तो ऐसा ही हुआ | 30 जनवरी से पूर्व भी उन पर कई बार जानलेवा हमले हुए थे और जितनी बार ऐसा हुआ उनकी क्षमा, सहिष्णुता, सदाशयता और संवेदना गहरी होती गई और सत्य निकट आता गया | वे लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे और उन्हीं लक्ष्यों के लिए अंततः उन्होंने अपनी शहादत दी ताकि मानव जीवित रहे और मानवता जीवित रहे | उनकी मौत भी अपने-आप में एक उपलब्धि इस मायने में थी कि उनकी मृत्यु ने वह किया, जिसके लिए वे जीवन के अंतिम क्षण तक प्रयत्नशील थे | उनकी शहादत से उनके देशवासियों का पागलपन दूर हुआ और उनकी इंसानी समझ लौट आई | उनकी मृत्यु का वैसा ही असर हुआ जैसा उनके उपवासों का होता था | गुस्से, डर और दुश्मनी से उन्मत भीड़ जहां थी वहीं ठिठक गई | अचानक कई तरह की अभिप्रेरणाएँ एक साथ काम करने लगी थी जिनमें दया और विवेक के साथ ही असीम दुःख और घोर पश्चाताप भी था | पुराने वैर-द्वेष और पुरानी शत्रुता एकबारगी भुला दी गई और परस्पर लड़ने वाली दो जातियां भाई-भाई के हत्याकांड को छोड़कर सर्व-सामान्य मानव-जाति को हुई अपार क्षति के शोक में डूब गई | सबका मिला-जुला असर यह हुआ कि देशव्यापी हत्याओं का सिलसिला थम गया | सम्भवतः यही भारतीयों की गांधी को दी गई सबसे बड़ी और पवित्र श्रद्धांजलि थी |

 

 

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