रविवार, 28 जनवरी 2024

ज़मीन का चेहरा- अशोक सक्सेना


 ज़मीन का चेहरा

 

बात पुरानी हो गई

जब बताया जाता था

ज़मीन का चेहरा

सूखा पड़ने पर कैसा हो जाता है

सारी नर्मी सूख जाती है

और ज़मीन पर बनती

आड़ी तिरछी रेखाएँ दटारों की शक्ल ले लेती हैं

आज

ज़मीन से जुड़े आदमी के चेहरे पर

ठहर गयी मेरी नज़र

पलट कर आईना देखा

उसका चेहरा अपना चेहरा

गडमड एक हो गये

समझ गया

अकाल

अब ज़मीन पर नहीं

आदमी के चेहरे पर है।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...