शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

युवा सोच और संकल्प के साथ कदम बढ़ाते हुए चलें - विवेक कुमार मिश्र


              युवा सोच और संकल्प के साथ कदम बढ़ाते हुए चलें

 विवेक कुमार मिश्र

 युवा मन ऊर्जा से भरा चेतना का आकाश होता है - जहां नित्य नए संदर्भ नए संकल्प और नए अर्थ संसार में अपनी स्वायत्तता को रेखांकित करने के लिए आते हैं । युवा मन की पहली शर्त होती है निर्भीकता , निडर होकर जब अपने पथ पर चलते हैं स्वतंत्र सोच के साथ - संसार से ...पदार्थ से... संवाद करते हैं तो आप युवा मन मस्तिष्क के साथ संसार में प्रवेश करते हैं । युवा होने के लिए उम्र या आंकड़ा और अंक गणित की जरूरत नहीं होती । न ही उम्र या संख्या भर युवा होने की पहचान है । कोई भी केवल उम्र से युवा नहीं होता । उम्र से आगे वह सोच और विचार से युवा होता है । जब हम युवा मन की बात करते हैं तो तय है कि वह कुछ नया करने व नया सोचते हुए आगे बढ़ने वाला मन होता है । यह मन ही युवा होता है जो हमारे साहस व संकल्प के साथ समाज में नये ढ़ंग से सामने आता है । युवा होने का अर्थ है चेतना के साथ , स्वतंत्र सोच के साथ नए-नए विचार के साथ संकल्पित होते हुए उस विचार को कार्य रूप में प्रमाणित करने से भी है । संसार दशा में परिवर्तन लाना सांसारिक गति के साथ अपनी गति को जोड़ते हुए हर नई बात , नए विचार और नई सोच को गति प्रदान करने के साथ-साथ नए संदर्भ पर मंथन करने का मन मस्तिष्क ही सही मायने में युवा मस्तिष्क है । युवा मन युवा सोच पर निर्भर करती है । परिवर्तन और वैज्ञानिकता के साथ अपनी सोच को वैश्विक धरातल पर देखने की इच्छा और चिंता ही युवा ऊर्जा व युवा संकल्प का प्रमाण होती है । युवाओं के भीतर अथाह ऊर्जा होती है । वह रुके हुए नहीं होते । न ही एक ही तरह से सोचते हैं । विचारों का वैविध्य नई-नई दिशाओं में सोचना , कुछ नया करना , नए-नए आविष्कार की ओर चलना और संसार को कुछ अलग कर देने की इच्छा रखता ही युवा मन मस्तिष्क के सही ऊर्जा का प्रमाण है । युवा पीढ़ी में जब तक चैलेंज स्वीकार करने की क्षमता न हो जब तक तेज गति न हो और जब तक नए के प्रति आकर्षण न हो तब तक हम उसे युवा मन नहीं कर सकते । युवा मन कार्य शीलता गतिशीलता और चेतना के प्रवाह के साथ अपने विचारों के आवेग को लिए हुए आगे बढ़ता है । हर पीढ़ी एक नए विचार , एक नए तंत्र लेकर आती है । इसे कोई और नहीं सबसे पहले युवा मस्तिष्क स्वीकार करता है । युवा मन मस्तिष्क का व्यक्ति अपनी स्थितियों अपनी सीमाओं का गुलाम नहीं होता । न ही उसे जो मिला है उसी में वह संतुष्ट रहता है । उसे अपने आप को बदलना आता है । वह इस बदले हुए समय संसार के साथ संवाद करना जानता है । और वह एक स्तर पर स्वीकारी होता है ।

युवा मन को समझाने के लिए आपके पास तर्क , वैज्ञानिकता और चेतना के साथ-साथ सत्य के प्रति निष्ठा का आग्रह होना आवश्यक होता है । कोई भी युवा क्यों न हो यदि वह युवा मन चेतना का प्राणी है तो किसी भी तथ्य को तभी स्वीकार करेगा जब उस पर तर्क कर चुका हो और उसे तर्क की कसौटी पर कस चुका हो । तो उसे सत्य को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होती । वह इस संदर्भ और सत्य तथ्य को स्वीकार करता है जिसे उसका मन मान चुका होता है । युवा मन चैलेंज के सात अविष्कारी होता है । वह किसी न किसी आविष्कार में लगा होता है । उसकी आंखें इस संसार के साथ सामंजस्य बिठाने में नित्य नया कुछ खोजने के लिए तैयार होती हैं । उसका सोचना इस तरह शुरू होता है कि यह जो संसार है इसमें मैं कहां हूं ?  मैं क्या कर रहा हूं ? और मैं क्या कर सकता हूं ? जब इस तरह सोचते हुए वह आगे बढ़ता है और समाज के लिए कुछ नया लेकर आता है तो वह तकनीकी तौर पर युवा वैज्ञानिक ही होता है । और ऐसे मन मस्तिष्क को हम कुछ और नहीं तो युवा वैज्ञानिक का सम्मान दे सकते हैं । यह टूल के क्षेत्र से लेकर सामाजिक संबंधों की बदलती गति और विचारों के संसार में आ रहे तेज परिवर्तन की दिशाओं में एक साथ देखा जा सकता है ।

यह सारा बदलाव कोई और नहीं हमारा युवा मन मस्तिष्क कर रहा है । आज कोई माने या न माने पर देर सबेर सबको मानना ही होगा । इसीलिए युवा पीढ़ी से यह बड़ा आग्रह है कि वह अपने सपनों पर न केवल चलें बल्कि अपने सपनों की प्राप्ति तक उसका पीछा करते हुए चलें । तभी सफलता और सार्थकता के साथ नई खोज नई वैज्ञानिकता व नई सोच को आकार और रंग मिलेगा । तथा इसी रूप में हम समाज को नई बातें नए संदर्भ तथा नए मैसेज दे पाएंगे ।

युवा सोच के साथी हम आगे बढ़ सकते हैं । कुछ नया सोच और सोच भर नहीं सोचे गए कार्य को पूरा करने का संकल्प लें । उस दिशा में कार्य करें कोई कार्य संभव नहीं है जिसे आप कर नहीं सकते । बस शुरुआत करने की देरी है । जब आप कार्य की शुरुआत करते हैं तो वह क्षण आपके पास होता है जो उस कार्य के प्रति अपनी पूरी शक्ति लगा देता है । इस तरह कार्य करना शुरू करते हैं और कार्य पूरा होते ही एक आत्मिक संतोष और खुशी होती है । यह खुशी ही हमारे मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखती है । कभी भी पीछे रहने या पीछे रह जाने के बारे में न सोचें । बस आज और अभी से शुरुआत कर आगे बढ़ने के बारे में सोचें । रुकें नहीं अपनी गति बनाकर चलते रहें । अपने समान लोगों के साथ उठ बैठे चलें ।

सबसे पहले यह जानना जरूरी होता है कि हमारे आसपास ऐसा कौन है जो नकारात्मक सोच रखता है । हमारे आसपास ऐसा कौन है जो हर कार्य में कमी निकालना शुरू करता है या शुरू में ही या कह देता है मुझसे यह कार्य नहीं हो सकता । इस कार्य में इतनी जटिलता है । ऐसे लोगों से दूर से ही किनारा करते हुए अपने साहस और संकल्प के साथ चलना शुरू करने की जरूरत है । जब भी कुछ करने के लिए चलते हैं तो  स्वाभाविक रूप से विघ्न बाधाएं आयेंगी पर आपको रुकना नहीं है । आपको लगातार अपने पथ पर चलना है । तय मानिए एक दिन आपको सफलता मिलेगी ।

अपनी युवा सोच और संकल्प के साथ कदम बढ़ाते हुए चलें । एक जगह रुकें नहीं । कोई भी अंतिम रास्ता नहीं है । हर रास्ते से एक नया रास्ता फूटता है । यह सोच ही हमें आगे बढ़ाती है । हार जाने , रुक जाने या यूं ही बैठे रहने के लिए हम नहीं बने हैं । हमें कुछ करना है और कुछ नया व अपूर्व करना है । इस पथ पर जो भी मुश्किलें हैं , जो भी कठिनाइयां हैं उनका मुकाबला करते हुए ही आगे बढ़ना है । जब यह सोचकर चलते हैं तो तय मानिए कि सफलता और लक्ष्य आपकी मुठ्ठी में होते हैं । यह सब युवा सोच व युवा जज्बा का ही दाय है - इसे संभालकर रखना चाहिए ।

 

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