बुधवार, 10 जनवरी 2024

वक़्त का ऐसा वार हो गया है - टीकम 'अनजाना'

                                                                 टीकम 'अनजाना'
 


वक़्त का ऐसा वार हो गया है

 

वक़्त का ऐसा वार हो गया है

अनजाना’ चाटुकार हो गया है।

 

आजकल क़सीदे पढ़ रहा है

और अपने आप से लड़ रहा है।

अपना वुजूद कैसे बचाकर रखे

सवाल यह सवार हो गया है।

वक़्त का ऐसा वार हो गया है॥

 

जो नहीं कहा वह कह रहा है

अब हवा के साथ बह रहा है।

दे रहा है तसल्ली ख़ुद को

फ़र्ज़ के लिए तैयार हो गया है।

वक़्त का ऐसा वार हो गया है॥

 

जो दरख़्त अकड़े रहे उखड़ गये

उन्हें जीने के लाले पड़ गये।

दूब की मानिंद रहने लगा है

नादान समझदार हो गया है।

वक़्त का ऐसा वार हो गया है॥


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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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