बुधवार, 25 दिसंबर 2024

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्मदिन सरकार और प्रशासन की जवाबदेही के बारे में जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। यह सेवा वितरण में सुधार के लिए नागरिक-केंद्रित के साथ-साथ कुशल और पारदर्शी शासन को बढ़ावा देता है। यह उस महान व्यक्तित्व को सर्वोत्तम श्रद्धांजलि है, जिनका जीवन ही सुशासन प्रशासन के लिए एक प्रेरणा, ध्रुव तारा है:डॉ.कमलेश मीना।


 भारत के पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्मदिन सरकार और प्रशासन की जवाबदेही के बारे में जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। यह सेवा वितरण में सुधार के लिए नागरिक-केंद्रित के साथ-साथ कुशल और पारदर्शी शासन को बढ़ावा देता है। यह उस महान व्यक्तित्व को सर्वोत्तम श्रद्धांजलि है, जिनका जीवन ही सुशासन प्रशासन के लिए एक प्रेरणा, ध्रुव तारा है:डॉ.कमलेश मीना।

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती है। राष्ट्र इस वर्ष 2024 को अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती मना रहा है: 25 दिसंबर, 2024 को भारत के सबसे आराध्य, सम्मानित, गौरवशाली और भारतीय लोकतंत्र के प्रतिष्ठित नेताओं में से एक, परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई साहब की 100वीं जयंती है। इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में जाना जाता है, जिसमें उनके दूरदर्शी नेतृत्व के माध्यम से देश पर उनके सकारात्मक प्रभाव का जश्न मनाया जाता है। वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने भारत के 21वीं सदी के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी 100वीं जयंती पर, आइए आगे आएं और उनके प्रारंभिक जीवन, सार्वजनिक जीवन, राजनीतिक यात्रा और उनके बारे में कुछ दिलचस्प तथ्यों पर एक नज़र डालें जो हमें प्रेरित, प्रेरित और स्वच्छ, ईमानदारी और पारदर्शी राजनीति का मार्ग दिखाते हैं।

परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई साहब, 21वीं सदी के भारत निर्माता हैं जिन्होंने 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के लिए आगे बढ़ने के लिए एक मजबूत नींव रखी। परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई साहब पूरे कार्यकाल तक सेवा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के सह-संस्थापकों में से एक और वरिष्ठ नेता थे। वह एक हिंदू राष्ट्रवादी स्वयंसेवी संगठन, आरएसएस के एक सच्चा राष्ट्रवादी और समर्पित सदस्य थे। वह एक हिंदी कवि और लेखक भी थे। भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेई अजातशत्रु, जिनका कोई शत्रु न हो थे, क्योंकि उनमें सदैव अच्छे इंसान की छवि थी और विरोधी पक्षों से भी उनका कोई शत्रु नहीं था। आज 25 दिसम्बर भारतीय राजनीति एवं भारतीय जनमानस के लिए सुशासन का सुदृढ़ दिन है। आज पूरा देश हमारे नायक, यशस्वी परम श्रद्धेय भारत रत्न अटल को उस आदर्श व्यक्तित्व के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सरलता, सहृदयता और दयालुता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई।

 

श्री अटल बिहारी वाजपेयी साहब एक जनप्रिय व्यक्ति थे, जो जीवन भर अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और राजनीतिक विचारधारा पर दृढ़ रहे। 13 अक्टूबर 1999 को, उन्होंने एक नई गठबंधन सरकार, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रमुख के रूप में लगातार दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) और डीएवी कॉलेज, कानपुर में अध्ययन किया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी साहब की कभी शादी नहीं हुई और उनकी कोई संतान नहीं थी। राज्यसभा में एक भाषण के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाजपेयी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह कहा था। जैसा कि हम जानते हैं कि भीष्म पितामह, हिंदू महाकाव्य महाभारत के उस पात्र का संदर्भ है जिसका दो युद्धरत पक्षों कौरवों और पांडवों ने सम्मान किया था। अटल बिहारी वाजपेई एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक, और फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक। पूर्व प्रधानमंत्री और 'भारतरत्न' अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो 4 राज्यों के 6 लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे। उत्तरप्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता हैं। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था, इस दिन को भारत में 'बड़ा दिन' कहा जाता है। उनके पिता पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयी एक शिक्षक के रूप में काम करते थे और माँ कृष्णादेवी एक गृहिणी थीं। अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने माता-पिता की 7वीं संतान थे। उनसे बड़े 3 भाई और 3 बहनें थीं। अटलजी के बड़े भाइयों को अवधबिहारी वाजपेयी, सदाबिहारी वाजपेयी तथा प्रेमबिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है। अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न थे। जन्म और शिक्षा: उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिर, गोरखी, बाड़ा, विद्यालय में हुई। यहां से उन्होंने 8वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। जब वे 5वीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था। उन्हें विक्टोरिया कॉलेज में दाखिल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था। आरंभ में वे छात्र संगठन से जुड़े। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया।  वाजपेयी न केवल भारतीय जनता पार्टी के बल्कि भारतीय राजनीति के भी एक चमकते व्यक्तित्व थे। विपक्षी दलों के नेता भी उनकी प्रतिभा और बुद्धि से प्रभावित थे। हर पार्टी के नेताओं से उनकी दोस्ती थी। वह किसी को पराया नहीं समझते थे। अपने ओजस्वी भाषण से लाखों की भीड़ को मंत्रमुग्ध कर देने वाले वाजपेयी की क्षमता सीमा से परे थी। सादगी की प्रतिमूर्ति और अपने विनम्र स्वभाव से लोगों के दिलों पर राज करने वाले अटल जी की नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी।

राजनीतिक जीवन यात्रा : उनकी राजनीतिक यात्रा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक प्रेरणा और चमत्कार है, जो कई उतार-चढ़ाव से गुजरी। वाजपेयी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटलबिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही। वर्ष 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली। वे उत्तरप्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में मिली थी। 1957 में जनसंघ ने उन्हें 3 लोकसभा सीटों- लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा में पहुंचे।

परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई के असाधारण व्‍यक्तित्‍व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा। वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए। बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने। इसके बाद 1968 में वाजपेयी जनसंघ के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्‍ण आडवाणी जैसे नेता थे। 1971 में 5वें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1984 में अटलजी ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से वाजपेयी पौने 2 लाख वोटों से हार गए।

 

वाजपेयीजी ने एक बार जिक्र भी किया था कि उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे? माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया। इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि वे दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते। ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्यप्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगहों से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी।

        1996 में हवाला कांड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद वाजपेयी ने लखनऊ अपनी कर्मभूमि बना ली। वे 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लखनऊ सीट से जीतकर सांसद बने। आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया। इसके बाद जनता पार्टी अंतरकलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्‍त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई भाजपा के पहले राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने और वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे। 1994 में कर्नाटक तथा 1995 में गुजरात और महाराष्‍ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई, तो उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्‍यक्ष लालकृष्‍ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया था। परम श्रद्धेय भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई जी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने, हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई। 1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्‍यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयीजी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से सत्‍ता में आई और वे इस पद पर 2004 तक बने रहे। इस बार वाजपेयीजी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। जनता के बीच प्रसिद्द अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने। वरिष्ठ सांसद श्री वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में चार दशकों तक सक्रिय रहे। वह लोकसभा (लोगों का सदन) में नौ बार और राज्य सभा (राज्यों की सभा) में दो बार चुने गए जो अपने आप में ही एक कीर्तिमान है। भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजाद भारत देश की सेवा की। श्री वाजपेयी जी ने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था और 1951 में भारतीय जन संघ में शामिल होने के बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी। आज की भारतीय जनता पार्टी को पहले भारती जन संघ के नाम से जाना जाता था जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का अभिन्न अंग है। उन्होंने कई कवितायेँ भी लिखी जिसे समीक्षकों द्वारा सराहा गया। निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। भारतीय लोकतंत्र में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते थे। महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक श्री वाजपेयी भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे। उन्होंने ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व और नेतृत्व किया जिस देश की सभ्यता का इतिहास 5000 साल पुराना है और जो अगले हज़ार वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। उन्हें भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण और भारत रत्न दिया गया। 1994 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत को  ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते थे और उनकी आकाँक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते थे। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते थे। रचनात्मक विविध विचारों और महान व्यक्तित्वों की मेरी रचना "समावेशी विचार: नए भारत को समझने का एक प्रयास" के माध्यम से मेरे द्वारा भारत रत्न परम श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेई साहब पर एक अलग अध्याय लिखा गया है, जिसमें वास्तव में हमारे लोकतंत्र के राजनेता, भारतीय राजनीति के नेता के रूप में उनकी गौरवशाली यात्रा शामिल है।

 पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय से बीमार रहने के कारण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भर्ती रहे, जहां उनका लंबा इलाज चला और 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। परम श्रद्धेय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई को हम उनकी 100वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और जीवन भर अपने कार्यों के माध्यम से समर्पण, प्रतिबद्ध और जवाबदेह राजनीति के लिए भारतीय धरती पर ऐसे सबसे महान सपूत को शत-शत नमन करते हैं।

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