एम.असलम. टोंक
अक्सर बुलंदियों पर पहुंचकर लोग अपनी
ज़मीन से कट से जाते हैं, लेकिन फिल्म अभिनेता
इरफान खान ने अपनी ज़मींन से लगाव बनाए रखा। टोंक के नवाबी खानदान के वंशज इरफान
खान जब फिल्मी दुनिया में बुलंदियों पर पहुंचे, तो उन्होंने
अपना शजरा बनवाया। यानी की खानदानी वंशावली। इसे अंजुमन सोसायटी खानदाने अमीरिया
से प्राप्त कर हर्ष महसूस किया। उन्होंने अपनी कामयाबी का श्रय भी अपने बुजुर्गो
की दुआओं को दिया। उन्होंने ये बात भी स्पष्ट की थी कि मेरी मां सहित कई लोग
फिल्मों को अच्छा नहीं समझते थे। उस समय उनको समझाते हुए इरफान खान ने कहा था कि
वो नाच-गाना नहीं करेगा, ऐसा काम करेगा, जिससे लोगों को कुछ मिलेगा। इरफान खान के बचपन के दोस्त एवं रिश्तेदार का
कहना है कि इरफान को अपनी ज़मीन से काफी लगाव रहा। वो अक्सर यहां आते थे, उन्होंने टोंक के चंदलाई आदि में ज़मीन भी ली। क्रिकेट व पतंग उड़ाने का
उनको बहुत शौक़ रहा। वो अपने साथियों आदि के साथ यहां आते थे, तो क्रिकेट खेलते थे तथा पतंग उड़ाते थे। कचहरी में रहने वाले उनके
रिश्तेदार रहीमुल्लाह उर्फ भाई मियां का कहना है कि इरफान फिल्मी दुनिया में
बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी अपने बुजुर्गों से झुककर मिलते थे तथा पूरे अदब के
साथ पेश आते थे।
सिनेमा जगत में
टोंक का नाम रोशन करने वाले फिल्म अभिनेता इरफान खान को अपनी मां की दुआओं पर अटूट
विश्वास था। लेकिन जैसे ही मां की सांस टूटी। वो भी चार दिन ही जिंदा नहीं रह सका।
फिल्म अभिनेता इरफान खान के जानकारों और दोस्तों का कहना है कि वह हमेशा यह कहते
थे कि जब तक है मेरी मां, तब तक मुझे कुछ नहीं
होगा। और यह बात सच भी साबित हुई। इरफान खान की मां जब तक जिंदा रही, वह बड़ी बीमारी से भी लड़ते रहे। लेकिन जैसे ही उनकी मां ने 25 अप्रैल
2020 को जयपुर में अंतिम सांस ली, तो वो भी दुनिया से 29
अप्रैल 2020 को रुखसत हो गए। लेकिन उनकी एक्टिंग एवं उनके विश्वास को आज भी लोग
सलाम करते हैं। आज भी उनकी याद आते ही कई लोगों की आंखे नम हो जाती है। फिल्म
समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जहां इरफान के जीवन पर पुस्तक लिखते रो दिए तो, टोंक में भी टीवी के छोटे से पर्दे से बॉलीवुड व हॉलीवुड में टोंक का नाम
रोशन करने वाले इरफान खान को आज भी उसके चाहने वाले याद करते हैं। भले ही इरफान
खान इस दुनिया से रुखसत हो गए। लेकिन उन्होंने अपने जीवन का जो संघर्ष किया। वह
युवाओं को सदियों प्रेरणा देता रहेगा। संघर्ष ही जीवन है। इस बात को इरफान खान ने
बखूबी आत्मसात भी किया। टोंक में पैदा हुए इरफान खान के रिश्तेदारों व चाहने वालों
को अब तक यह मलाल है कि वह अपने हीरो के आखिरी सफर में कोरोना संक्रमण के कारण
कांधा नहीं दे सके। इरफान से प्रभावित होकर वर्तमान में जहां फिल्मी दुनिया में
काम करने वाले शादाब रहबर खान पटना बिहार उनकी कला को सलाम करते हैं। वहीं टोंक के
शादाब खान जिसे वर्तमान में शहंशाह सूरी खान के नाम से जाना जाता है, वो इरफान खान से प्रेरित होकर टोंक का नाम रोशन करने के लिए लगातार मेहनत
कर रहा है। उसको सफलता भी मिलने लगी है। कई धारावाहिक एवं फिल्मों में काम करने के
साथ ही वो छोटी-छोटी फिल्म कथा भी लिखने लगा है। राजस्थान की एक मात्र मुस्लिम
रियासत रही टोंक के नवाबी खानदान में 7 जनवरी 1967 में जन्मे इरफान खान के परिवार
की स्थितियां भी नवाबी खानदान की जागीरें जब्त होने के बाद ठीक नहीं रही थी। उनके
पिता टोंक से जयपुर चले गए। वहां उन्होंने टायर रिमोड का कार्य शुरू कर दिया।
इसमें इरफान खान भी उनका हाथ बंटाते थे। लेकिन उनका सपना था कि वो क्रिकेट में देश
का नाम रोशन करें। वो अभिनय में भी बचपन से रुचि रखते थें। यानी की उनके जीवन
संघर्ष के दो सपने थे। इन दोनों ही क्षेत्रों में अपना स्तरीय मुकाम बना पाना कुछ
आसान भी नहीं था। लेकिन संघर्ष ही जीवन है, के जुनून के साथ
इरफान ने सबकुछ दाव पर लगाने की ठान ली। इसी दौरान पिता का देहांत हो गया। अब घर
की जिम्मेदारी एवं सपनों को कामयाब बनाने का जुनून । दोनों को साथ लेकर चलना भी
कुछ आसान नहीं था। इसी दौरान उनका चयन 23 वर्ष से कम उम्र के खिलाड़ियों में सीके
नायडू प्रतियोगिता के लिए हुआ। लेकिन बुलंदियों पर पहुंचकर कमाल दिखाने वाले इस
हीरों के पास प्रतियोगिता के लिए कैम्प में जाने के लिए पैसा नहीं था। बाद में इस
बात को इरफान ने कई जगह वाज़े भी किया। कचहरी दरवाजे के पास रहने वाले उनके बचपन के
दोस्त एवं रिश्तेदार असद भाई सहित कई लोग कहते हैं कि उसकी आवाज़ सुनते ही आज भी
उनकी याद में आंखे नम हो जाती है। इरफान युवा कलाकारों के लिए एक ऐसे प्रेरणा
स्त्रोत है, जो शून्य से शिखर तक पहुंचे थे।
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