हाँ
मैने विस्मृत कर दिया
अपनी स्मृतियों से प्रेम और सहेज समेट लिया
स्वयं को
मन की कन्दरा में ।
बादलों में उन्मुक्त उड़ रही अनुभूतियों को
लौटा लिया अंतस की मंजूषा में ।
बारिश की नन्हीं बूंदों को बहला दिया कह कर कि
नहीं भीग सकूँगी
तुम लौट जाओ अपने आकाश में
खिला था मोगरा स्वपनिल स्वर माधुर्य में
पर कंठ मे उसे उतरने नहीं दिया
कुछ जुगन जगमगाए थे अँधेरी रात में
कुछ झींगुर भी खनके थे भैरवी की तर्ज पर
लेकिन
सबको अनसुना किया क्योंकि जान चुकी हूँ
यह सब महज दिवास्व्प्न हैं
कहीं नहीं पहुँचती प्रार्थनाएं सब एकलाप हैं
कवि जन्म होते हैं सिर्फ़ प्रेम की कविताएँ
लिखने के लिए और
कुछ ह्रदय
सिर्फ़ प्रेम के लिए जन्म लेते हैं
प्रेम में होना और प्रेम की कविता करना
दो भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ हो सकती हैं ।।