रविवार, 21 जनवरी 2024

मोकों कहां ढूंढे बंदे -----------(२) - राजेन्द्र कसवा


                                             मोकों कहां ढूंढे बंदे -----------(२)

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वैदिक कालीन संस्कृति असली भारत में तो कम से कम बीसवीं सदी के अंत तक बची रही। आमजन परस्पर अभिवादन के लिए राम-राम का उच्चारण करते रहे,आज भी कर रहे हैं। पूरे अभियान के बावजूद 'जयश्री राम' गांवों में नहीं पहुंचा। और ये राम-राम कौनसा? जैसा कबीर साहेब ने कहा -ये राम-राम दशरथ पुत्र राम नहीं है। अलौकिक शक्ति का नाम है, जिस पर ही रामचंद्र नाम रखा गया। बीसवीं सदी के अंत तक गांवों में अधिकांश लड़कों के नाम राम से जुड़े हुए थे।

वैदिक कालीन सभ्यता के पश्चात रामायण काल और महाभारत काल बताया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इन्हें त्रेता और द्वापर युग कहा गया। संयोग वश सोशल मीडिया में एक पोस्ट वायरल हो रही है। एक मुकदमा चला 'ललई

सिंह यादव बनाम यूपी सरकार ' के नाम से।इसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में हुई जिस पर निर्णय तीन जजों की पीठ ने १६-९-१९७६ को दिया। निर्णय के अनुसार रामायण नाम के जितने भी ग्रन्थ हैं,उनका कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है।न ही इसमें वर्णित घटनाओं का साक्ष्य है। अतः रामायण और इसमें दर्शाये गये सभी पात्र पूर्णतया काल्पनिक हैं।

हमारा विश्व गुरु दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है, जहां काल्पनिक पात्र को ईश्वर मानने के लिए जनता को हांका जा रहा है,डराया जा रहा है। कहां तो रोजगार, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य की बात करनी थी,हम तो सिर के बल चलते हुए पौराणिक काल में जाने को अभिशप्त हैं।

ऐसी रूढ़ परम्परा को कोई नहीं माने तो आस्था को चोट कैसे पहुंचती है।

इसी प्रकार महाभारत काल में जो विकृतियां समाज में थी,वो आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। क्योंकि जुआरी युधिष्ठिर को धर्मराज बना दिया गया। ऐसा धर्मराज, जिसने अपनी पत्नी और भाइयों को दांव पर लगा दिया। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, विष्णु के अवतार भी माने गए।वे चाहते तो कुटिल अहंकारी दुर्योधन को कान पकड़ कर दरबार से निकाल सकते थे। पूरा हस्तिनापुर उनके साथ होता। महामंत्री विदुर विद्रोह कर सकते हैं लेकिन भीष्म लुंजपुंज बने रहे।

इन दोनों महाग्रंथों से हम क्या प्रेरणा लें?

रामायण और महाभारत बुद्ध से पहले रचे गए या बाद में, इसका कोई साक्ष्य नहीं है। लेकिन सिंहासन को ठोकर मारकर बुद्ध ने समाज को जगाने का जो बीड़ा उठाया, वैसा दूसरा कोई उदाहरण हमारे ढाई हजार साल के ज्ञात इतिहास में नहीं मिलता।(क्रमशः)

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...