बुधवार, 17 जनवरी 2024

माघ मेले में एक दिन- जयचन्द प्रजापति 'जय' प्रयागराज


 

माघ मेले में एक दिन

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 जयचंद प्रजापति 'जयप्रयागराज


माघ मेला आ गया चुपके से। इलाहाबाद का मेला तो क्या कहने। अब मेले की तैयारी जोरो से है। बल्लियां लग गयी। लाइटिंग हो रही है। जी भर जलेबी खाया जायेगा। क्या भीड़ होगी?  रौनक होगी। नये नये कपड़े निकाले जायेंगे। फैशन दिखाने का पूरा बहाना।

 बच्चें सब खुश नजर आ रहें हैं। अच्छे-अच्छे खिलौना खरीदा जायेगा। पुरूष भी तैयारी में लगे हैं। कपड़े इस्त्री कराये जा रहे हैं। नये - नये जूते खरीदने की तैयारी हो रही है। कुछ लोग सोच रहे हैं कि पुराने जूतों को पालिश कराकर काम चला लेंगे।

 औरतें भी खुश हैं सारे श्रृंगार के सामान खरीद ही लिया जाये तो कई महीनों तक नहीं लेना पड़ेगा। लाल-लाल, हरी-हरी चूडियां ठीक रहेगी। लाल हरी गुलाबी साड़ी में तो खूबसूरत दिखूँगी। मजा आ जायेगा। लल्लू के पापा देखकर खुश हो जायेंगे। बोलेंगे..बिल्कुल दुल्हन सी लग रही हो। बच के जाना कहीं कोई नजर लगा देगा तो ...

 आज मेला देखने हम चार बच्चों के साथ पत्नी भी सुबह से निकल पड़े। छोटा बच्चा उछल पड़ा पापा हाथी। ये-ये गुब्बारा--लाल-लाल। अरे ये क्या है? फुलकी पानी! बिटिया मेरी एक गुब्बारा खरीद ली। मजा आ गया। पापा कितना प्यारा गुब्बारा है।

 आगे जैसे बढ़े झूला दिखाई दे गया। बच्चे सब उछल पड़े। पापा झूला झूलेगें। नहीं-नहीं कोई नहीं झूलेगा। गिर जाओगे। हाथ पैर टूट जायेगें। पैसा बचाने के लिए बहाना किया। नहीं गिरेगें पापा। टूटेगे तो हमारे टूटेगें। बच्चों के जिद के आगे सब फेल। सब लोग झूले का आनंद लिया। मेरे अच्छे पापा मजा आ गया। आगे बढ़े। सब लोगों ने फुलकी पानी का मज़ा लिए।

 क्या जलेबी है पापा ले लो। मम्मी दिलवा दो न जलेबी। लाल-लाल, गोल गोल। गुड़ वाली जलेबी ले लो मम्मी। जलेबी का आनंद लिया गया। पत्नी ने भी श्रृंगार की दुकान देख ली थी। वह श्रृंगार का सारा सामान खरीद ली। सब बच्चों ने अपने अपने हिसाब से सामान खरीद लिये। हमने अपने लिए एक सिगरेट का पैकेट खरीद लिया। 

सड़क की पटरियों पर दुकान सजी हुई हैं। तरह तरह के सामान बेंचें जा रहे हैं। खूब भीड़ है। मेले में जमकर खरीदारी हो रही है। खूबसूरत लड़कियां औरतों से मेले की रौनक शाम होते होते मजेदार हो गया। रंगीन माहौल। लाइटें जल गयीं हैं। खूबसूरत रौनक। हर कोई मेले का आनंद ले रहा है। दादा दादी सब दिखाई दिए। सब के लिए खुशी लाया था। जगह जगह नृत्य हो रहे थे। तरह तरह के खेल खिलौने। सब लोगों ने खरीददारी की। रात भर मेला चला। जी भर मेला देखा गया। जी भर खर्च किया गया। इलाहाबाद के माघ मेले में।

 


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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...