बुधवार, 17 जनवरी 2024

भगौड़े पुरुष-   मनीषा सिंह कवयित्री और लेखिका



 



छोड़ी हुई औरतें अक़्सर बहाना बन जाती हैं गैरज़िम्मेदारियों का ,

उनको कारण नहीं बताये जाते छोड़े जाने के ,

उनको बेवज़ह ही साबित कर दिया जाता है!

बरसों से किसी कोने में रोती रही औरतें ,

जिनसे किसी ने नहीं पूछा  उनका हाल,

किसी को परवाह नहीं थी जिनके बेहाल होने की ,

उनको छोड़ते समय अक़्सर कोई पुरुष रौब दिखाता है !

छोड़ी हुई औरतों का हंसना, जीना तक भी संदिग्ध हो जाता है!

पुरुष चाहता है स्त्री एक बेल हो जाए,

स्त्री का खुद का एक वृक्ष हो जाना ,

धरती तक छीन लेता है उसके हिस्से की !

एक उम्र निकलने के बाद उनको त्याग दिया जाता है,

इस तरह जैसे कोई चादर हो,

जिसे पुराने सामान को ढंकने में काम लिया जाएगा,

अब लायक नहीं लगती छोड़ी हुई औरतें ,

न ही सजा सकती हैं अब किसी भगौड़े पुरुष की दुनिया !

 


“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...