माता सावित्री बाई फुले 19वीं
सदी की सर्वाधिक सम्मानित महानतम शख्सियत थीं, जिन्होंने
अपने वीरतापूर्ण प्रयासों, वास्तविक जबरदस्त बलिदान, कार्यों और अपने शैक्षिक दूरदर्शी नेतृत्व के माध्यम से हमें सम्मानित
जीवन और सम्मानजनक गौरवशाली समय के लिए आशा की किरण दी: डॉ. कमलेश मीना।
दोस्तों, हमारे देश को बनाने में बहुआयामी महान व्यक्तित्वों के योगदान की अपनी
रचनात्मक रचना "समावेशी विचार: नए भारत को समझने का एक प्रयास" के
माध्यम से मैंने माता सावित्री बाई फुले के योगदान और हमारे राष्ट्र के लिए उनके
बलिदान पर अलग से एक अध्याय लिखा है। 194वीं जयंती के अवसर
पर हम अपनी बहादुर बेटी, बलिदानी पत्नी और भारत की प्रथम
महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले को पूरे सम्मान और गरिमा के साथ
श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 3 जनवरी को भारत की प्रथम
महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले का जन्मदिन है और इस वर्ष हम उनकी 194वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इस महान दिन पर हम अपनी वीर और बहादुर महिला
नेता को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने भारत में महिला शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी
और सबसे अंधकारमय युग में हमारी महिलाओं को सम्मान का अधिकार दिया। हर वर्ष देश
में 3 जनवरी का दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई
फुले की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। सावित्रीबाई फुले न सिर्फ पहली महिला
शिक्षिका थी, बल्कि महान समाजसेविका और नारी मुक्ति आंदोलन
की प्रणेता भी थीं। उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के
अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता। उनका नाम आते ही सबसे पहले शिक्षा और समाज सुधार
के क्षेत्र में उनका योगदान हमारे सामने आता है। वे हमेशा महिलाओं और वंचितों की
शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं। वे अपने समय से बहुत आगे थीं और
उन गलत प्रथाओं के विरोध में हमेशा मुखर रहीं। शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर
उनका गहरा विश्वास था।
माता
सावित्रीबाई फुले एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक,
कवयित्री और शिक्षाविद् भी थीं। उनके पति ज्योतिराव फुले भी एक
प्रसिद्ध चिंतक और लेखक थे। जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो सावित्रीबाई और महात्मा
फुले ने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे। सामाजिक न्याय
का ऐसा उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है। जब वहां प्लेग का भय व्याप्त था तो
उन्होंने खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया। इस दौरान वे खुद इस बीमारी की चपेट
में आ गईं। मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है। माता
सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव
में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। आज का दिन
उनके संघर्ष और महान कार्यों को यादकर उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है। आज 3 जनवरी का दिन देश की महिलाओं के विकास की यात्रा में बेहद महत्वपूर्ण दिन
है। आज 3 जनवरी को भारत में महिला शिक्षा की अगुआ
सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। आज ही के दिन 1831 में देश
की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में
एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय महिलाओं की स्थिति में
सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई। आज का दिन देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई
फुले को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देने और नमन करने का दिन है। आजादी से पहले,
खासतौर पर 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में
महिलाओं की स्थिति समाज में बेहद खराब थी। उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था। पति
की मौत के बाद उन्हें सती होना पड़ता था। महिलाओं के साथ काफी भेदभाव होता था।
समाज में विधवाओं का जीवन जीना बेहद मुश्किल था। दलित और निम्न वर्ग का शोषण होता
था। उनके साथ छुआछूत का व्यवहार होता था। ऐसे माहौल में एक दलित परिवार में जन्मी
सावित्रीबाई फुले ने न सिर्फ समाज से लड़कर खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अन्य
लड़कियों को भी पढ़ाकर शिक्षित बनाया।
जब
सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर
मारते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ा संघर्ष करते हुए शिक्षा हासिल
की। जब वह महज 9 वर्ष की थीं जब उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। ज्योतिराव फुले भी शादी के
दौरान कक्षा तीन के छात्र थे, लेकिन तमाम सामाजिक बुराइयों
की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की। सावित्रीबाई ने अहमदनगर
और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं। पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई
फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश
में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। विधवाओं के दुखों को कम करने के लिए उन्होंने नाइयों के
खिलाफ एक हड़ताल का नेतृत्व किया, ताकि वे विधवाओं का मुंडन
न कर सकें, जो उस समय की एक प्रथा थी।
ब्रिटिश
ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। वह देश की पहली महिला
शिक्षक ही नहीं पहली महिला प्रिंसिपल भी थीं। सावित्रीबाई ने अपने घर का कुआं
दलितों के लिए भी खोल दिया। दलित विरोध माहौल में उस दौर में ऐसा करना बहुत बड़ी
बात थी। सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए भी एक आश्रम खोला। यहां बेसहारा औरतों को
पनाह दी। पुणे में जब प्लेग फैला तो सावित्रीबाई खुद मरीजों की सेवा में जुट गईं।
वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं और इससे उनका निधन हो गया।
साथियों, आज महिला शिक्षा, सशक्तिकरण व कल्याण के प्रति
संकल्प लेने का दिन है। महिलाओं के विकास से ही समाज और देश का विकास होगा। कोई
देश आधी आबादी को पीछे छोड़कर कभी आगे नहीं बढ़ सकता। देश के कई गांव कस्बों में
आज भी महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है। अगर हमें सावित्रीबाई फुले के सपनों को
साकार करना है तो महिला सशक्तिकरण की ओर हमेशा प्रयासरत रहना होगा। मेरी पुस्तक के
मुख्य पात्र भारत के ऐसे महानतम व्यक्ति हैं जिन्होंने वास्तव में भारत से प्रेम
किया, अपना जीवन बलिदान कर दिया, राष्ट्र
के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और जिन्होंने हमारे राष्ट्र को सबसे सम्मानित,
विकसित और सभी के लिए एक संवैधानिक परंपरा बनाने के लिए जबरदस्त
प्रयास किए और जिन्होंने समानता, न्याय, स्वतंत्रता और किसी के प्रति भेदभाव रहित व्यवहार के लिए इसकी वकालत की।
मेरी
पुस्तक 📕"समावेशी
विचार: नए भारत को समझने का एक प्रयास" के माध्यम से हमारे देश के वास्तविक नायकों, सच्चे राष्ट्रवादी नेताओं और मानव समाज के वास्तविक चरित्रों की महानतम
हस्तियों के योगदान और पवित्र कार्यों को उजागर करने के प्रति एक छोटा सा प्रयास
है, जो हमेशा राष्ट्र के लिए जीते रहे। हम अपने राष्ट्र की
ऐसी महानतम प्रथम महिला शिक्षिका को भावभीनी पुष्पांजलि अर्पित करते हैं, जो केवल लोगों के सम्मान और गरिमा के लिए जीयीं। देश की ऐसी महान महिला को
सत् सत् नमन।
हम आप सभी को सुखी, समृद्ध और आनंदमय नव वर्ष 2025 की शुभकामनाएं देते
हैं। हम शुभकामनाओं के साथ इस नए साल के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देते
हैं। हम सभी के लिए कामना करते हैं कि यह नया साल 2025 आपके
और आपके प्रियजनों के लिए खुशियाँ, आनंद, नए अवसर, नए रास्ते, नई शुरुआत
और नई उम्मीदें लेकर आए। आइए इस नए साल 2025 के पहले दिन हम
अपने देश को एक विकसित देश बनाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प लें।
आने वाले साल के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ। यह साल खुशियों, अच्छे स्वास्थ्य और अपने प्रियजनों के साथ अविस्मरणीय यादें बनाने का साल
है। नववर्ष 2025 की शुभकामनाएँ!
जय हिन्द, जय भारत, जय संविधान!
सादर।
डॉ कमलेश मीना,
सहायक क्षेत्रीय
निदेशक,
इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र
भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत
सरकार।
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