पुनः
प्रणाम
बापू!
बरसों
बाद लगा
कि
आपसे मुखातिब होऊँ
बात
बहुत ज़रूरी भी थी
और
मेरे हिसाब से
यही
सही वक़्त है
आपसे
बात करने का
बापू!
सच
कहूँ
मैं
सचमुच
आपसे
परिचित नहीं था
आपकी
महानता से
सर्वथा
अनभिज्ञ मैं
आपको
समझने लगा था
देश
का दुश्मन
मुझे
बेहद ग़लत सूचनाएँ
प्रदान
की गई थीं
आपके
बारे में
और
मैंने भी
उनपर
भरोसा किया
आँख
मूँद कर
मुझे
यह भी नहीं पता था
कि
दक्षिण अफ़्रीका में भी
जानलेवा
हमले हुए थे
आप
पर
और
आपने माफ़ किया था
हमलावरों
को
बापू!
दरअसल
अंधेरे
और अज्ञान को
हमेशा
से डर रहा है
रौशनी
का
इसलिए
हर युग में
अंधेरे
ने पुरज़ोर कोशिश की
उजाले
को मारने की
और
हर बार
असफल
रहा
इस
बार भी
बापू!
मेरे
साथी
सचमुच
देशभक्त थे
किंतु
उन्हें देश का अर्थ
ग़लत
बताया गया
जैसे
जिहादियों
को
बताया
जाता है
धर्म
का ग़लत अर्थ
हमें
रास्ता दिखानेवालों ने
हमारे
सामने
झूठ
का एक साम्राज्य रचा
जो
लोग
देश
का बँटवारा चाहते थे
वे
देशभक्त कहलाए
और
जो देश को
एक
रखना चाहते थे
वे
देशद्रोही
आपकी
हत्या के लिए
हमें
जो कारण बताए गए
वे
सभी
बेबुनियाद
और झूठे थे
मुझे
बाद में पता चला
कि
25 जून 1934 को भी
बम
फेंककर
आपको
मारने की कोशिश
पुणे
में की गई थी
तब
तो ऐसी
कोई
वजह नहीं थी
जो
बाद में गढ़कर
हमें
बताई गई
बापू!
दरअसल
जब
कान के पास
निरंतर
ज़ोर-ज़ोर से
दिन
रात झूठ बोला जाए
तो
सत्य पहचानने की
शक्ति
नष्ट हो जाती है
और
झूठ को ही
सच
मान लिया जाता है
हमारे
साथ भी
ऐसा
ही हुआ
आपकी
हत्या का
मुझे
दुख तो है
किंतु
उससे ज़्यादा दुख
इस
बात का है
कि
जिन्होंने हमें उकसाया था
उन
हमारे पूज्य ने
अदालत
में
एक
बार भी मेरी ओर
देखा
ही नहीं
एक
बार देख कर
मुस्कुरा
देते
तो
मैं धन्य हो जाता
तभी
मुझे पता चला
कि
मेरा इस्तेमाल किया गया
जैसा
मुझसे पहले भी हुआ
आज
मैं इसलिए
आपसे
बात करना चाहता था
कि
आज भी
मेरे
नाम पर
एक
भयावह और घृणित
झूठ
गढ़ा जा रहा है
मेरा
नाम लेकर
वही
ज़हर फैलाया जा रहा है
जिसका
मैं शिकार हुआ
बापू!
बहुत
दुख होता है
जब
हज़ारों बरस की
परंपरा
और ज्ञान वाला
मेरा
भारतवर्ष
अनपढ़
मूर्खों की तरह
झूठ
और पाखंड के पक्ष में
तालियाँ
बजाता है
अज्ञान
और क्रूरता
मूर्खता
और हिंसा
इस
क़दर मेरे देश पर
कभी
हावी नहीं थी
बापू!
एक
मज़ेदार बात बताऊँ
इस
देश में
ऐसे
अनपढ़ पैदा हो गए हैं
जिन्होंने
कसम खाने को भी
किताबें
नहीं छुई
फिर
भी
ज्ञान
बघारते हैं
इतिहास
धर्म दर्शन पर
टुच्ची
सुविधाओं
घृणित
स्वार्थ की खातिर
अपनी
रीढ़ निकालकर
केंचुआ
बन जाने वाले
आप
पर उँगलियाँ उठाते हैं
जो
अपना कच्छा तक
सँभाल
नहीं पा रहे
वे
आपके विचारों को
थोथा
बता रहे हैं
ये
क्रोध नहीं
दया
के पात्र हैं
या
फिर उपहास के
ये
हर साल
आपके
पुतलों पर
दागते
हैं गोलियाँ
मैं
जानता हूँ
कि
आप न इनकी गोलियों से
न
मेरी ही गोलियों से
मर सकते
आप
अब भी
इस
देश में कहीं न कहीं
छिपकर
ही सही
रह
रहे हैं
मेरी
हाथ जोड़कर
प्रार्थना
है बापू!
आप
वापस लौट आओ
वरना
यह देश
मानसिक
ग़ुलामी के ग़र्त में
हमेशा
के लिए
चला
जाएगा!
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