सोमवार, 15 जनवरी 2024

बर्फ की चट्टान - रामकिशोर मेहता


 

बर्फ की चट्टान

हमें लगा था

कि तुम्हारे पास तो

रीढ की हड्डी है

और  तुम्हारे पैरों के नीचे है

खुरदरी चट्टानी जमीन

इस नाउम्मीद समय में

हमें

बड़ी उम्मीद थी न्याय

कि कम से कम

तुम तो

कि इस फिसलन भरे रास्ते पर

सीधे खडे होकर

गर्त में जाती व्यवस्था को

रोक पाओगे।

पर अफसोस

तुम भी

उसी लुंज पुंज व्यवस्था के

हिस्से  निकले

और

हाँ

तुम्हारे पैरों के नीचे

चट्टान तो थी

पर  थी बर्फ की

जो दबाव के नीचे

पिघलती चली गई

और

तुम भी

फिसलते चले गए न्याय

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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