यह शिशिर की धूप
ढलने को हुई है
बात में ही ढह गया
लो !
भरभराकर
एक कच्ची भीत - सा दिन।
आस के सुनसान पथ पर
याद कोई झिलमिलाई
पर , यकायक---;
इक जरूरी मशविरे में
हो गया मशगूल --
जैसे गुफ्तगु -- सा दिन।
अर्चना का नवल स्वर है
प्रीत गोया अनछुई
कामनाओं की नदी में
बह गया --
लो ! शांत तट पर
आचमन - सा दिन।
राख में ढका हुआ
अंगार कोई पीर का
यूं दिपदिपाया
शत सहस्रों दास्तां मन ने बुनी
मौन शाश्वत तोड़ता
आख्यान- सा दिन
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