।। परछाईं।।
अगर आप अंधेरे को धकेलते हुए
सिर तक डूब चुके हैं प्रकाश में
तो छायांकित होगी तुम्हारी देह
बशर्ते पत्थर की तरह तोड़कर न
करें
इसका विश्लेषण
आप जितने करीब होंगे प्रकाश
पुंज के
कद उतना ही बड़ा होगा आपका ।
रस-भाव, सुन्दर- असुन्दर से परे
आप इसे तीनों काल की मिश्रित
तस्वीर
योगिक या खगोलीय शब्दावली में
छाया कह सकते हैं।
खड़ी होती है यह सबके साथ
जब अंधेरा रख दे कांधे पर हाथ
दोगला आदमी की तरह
छोड़ जाती है साथ
अपना कोई वजूद न होने पर भी
ताउम्र पीछा करती है हमारा ।
दीवार पर परछाईं को देखना
खुशी या विस्मय से भर देता है
इसकी अलग-अलग आक्रति
कोतूहल पैदा करतीं हैं
इनका इस्तेमाल बचपन को डरपोंक
बनाने में भी
किया जाता है, जाने-अनजाने ।
मां कहती है मुझमें पूर्वजों की
परछाईं दीखती है
और बेटे-बेटियों में मेरी ।
यह हमें आदिमानव से मिलाती है
और हम बार-बार लौटते हैं
अपने अंधेरों में ,
एक दिन देह के साथ ही हो जाती
है विलीन
जैसे जन्म हुआ था देह के साथ ।
1 टिप्पणी:
आभार जनसरोकार मंच
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