रविवार, 21 जनवरी 2024

।। परछाईं।।- भानु प्रकाश रघुवंशी


 

।। परछाईं।।

 

अगर आप अंधेरे को धकेलते हुए

सिर तक डूब चुके हैं प्रकाश में

तो छायांकित होगी तुम्हारी देह

बशर्ते पत्थर की तरह तोड़कर न करें

इसका विश्लेषण

आप जितने करीब होंगे प्रकाश पुंज के

कद उतना ही बड़ा होगा आपका ।

 प्रकाश स्रोत के ठीक विपरीत दिशा में

रस-भाव, सुन्दर- असुन्दर से परे

आप इसे तीनों काल की मिश्रित तस्वीर

योगिक या खगोलीय शब्दावली में

छाया कह सकते हैं।

 सजीव-निर्जीव में भेद किये बगैर

खड़ी होती है यह सबके साथ

जब अंधेरा रख दे कांधे पर हाथ

दोगला आदमी की तरह

छोड़ जाती है साथ

अपना कोई वजूद न होने पर भी

ताउम्र पीछा करती है हमारा ।

दीवार पर परछाईं को देखना

खुशी या विस्मय से भर देता है

इसकी अलग-अलग आक्रति

कोतूहल पैदा करतीं हैं

इनका इस्तेमाल बचपन को डरपोंक बनाने में भी

किया जाता है, जाने-अनजाने ।

 एक अदृश्य परछाईं से ढके होते हैं हम

मां कहती है मुझमें पूर्वजों की

परछाईं दीखती है

और बेटे-बेटियों में मेरी ।

यह हमें आदिमानव से मिलाती है

और हम बार-बार लौटते हैं

अपने अंधेरों में ,

एक दिन देह के साथ ही हो जाती है विलीन

जैसे जन्म हुआ था देह के साथ ।

1 टिप्पणी:

Bhanupraksahraghuvansh ने कहा…

आभार जनसरोकार मंच

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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