कर्मफल
आखिरकार
मकान के नक्शे पर अंतिम निर्णय हो चुका था । स्मार्ट किचन ,ड्राईगं रूम ,सीढि़यां आदि
मि. खन्ना ने तीन अलग अलग ड्राफ्टसमेन के नक्शों से मिलान करके स्वयं सेट किए थे
।‘सर इसमें मुख्य द्वार के सामने गेराज, उसके बांयी ओर
भंडार कक्ष ,उससे सटे हुए लेट–बाथ एवं भीतरी द्वार के बांयी
ओर सीढि़याँ रखी गयी है ।‘’ ड्राफ्टमेन
मि. खन्ना को नक्शे की सारी स्थिति बारीकी से समझा रहा था। मकान बनने के बाद का
भी एक काल्पनिक चित्र तैयार किया गया था, यानि सब कुछ भव्य
था।
मि.खन्ना इसी जयपुर शहर में
आबकारी विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे ।अब तक परिवार सरकारी क्वार्टर
में रह रहा था। अब पॉश कॉलोनी में बने इस
नए मकान के निर्माण में खन्ना साहबने अपनी पूरी उर्जा झौंक दी थी । कभी छुट्टियां
ले कर तो तो कभी दफ्तर से गायब रहकर वे निर्माण कार्य में तत्परता एवं तल्लीनता
से कार्य कर रहे थे। मिस्त्री एवं मजदूरों से पहले आना ,दिन में लंचटाइम में या जब भी मौका मिले उनको निर्देश
देना, उनके जाने के बाद सारी सामग्री को व्यवस्थित
करना,आदि कार्य उनकी दिनचर्या के अंग बन गए थे। घटों धूप में खड़ा रहना ,यदा–कदा मजदूरों का
हाथ बंटाना,किसी को व्यर्थ नहीं बोलने देना,नियमित हिसाब–किताब रखना आदि कार्यों में उनकी मेहनत देखते ही बनती थी।
मेहनती स्वभाव के होने के बावजूद रात को सोते समय उनका शरीर थककर चूर हो चुका
होता । सुबह देर से उठते और फिर उसी गोरखधन्धे में जुट जाते।
ज्यों
–ज्यों मकान परवान चढ़ रहा था त्यों –त्यों खन्ना साहब का स्वभाव चिड़चिड़ा होता जा रहा था। कब किस पर झल्ला
पड़े कहा नहीं जा सकता। कोढ़ में खाज यह कि उन्ही दिनों उनका तबादला बीकानेर हो
गया था, पर अभी गए नहीं थे। तय हुआ था कि नए मकान का
उद्घाटन होने के बाद परिवार यहीं रहेगा और खन्ना साहब बीकोनर में ही सरकारी क्वार्टर
में रह लेगें ।
सो नए बंगले
उदघाटन की तैयारियाँ होने लगी । मेहमानों का आवागमन जारी था। पंडित लोग
अपना कर्मकाण्ड कर रहे थे । मजदूर मिसेज खन्ना के निर्देशन में सामान जमा रहे
थे। कुछ रह गया सामान और और वृद्ध पिता को
लेकर आए मि. खन्ना की कार बंगले के सामने आ कर रूकी । कार लॉक करके तेजी से
मि.खन्ना अन्दर की ओर चले गए ।
‘’बहुत देर लगा दी आपने ,पण्डितजी नाराज हो रहें हैं । मुहुर्त का समय निकला
जा रहा है। ‘कहते हुए मिसेज खन्ना ने चाय का कप पकड़ा दिया। चाय पीकर खन्ना साहब
पण्डितजी के पास चले गए। तभी हाँफता हुआ एक बच्चा आया और बोला ,अंकल, कार में कोई रह गया है । अचानक खन्ना साहब को
याद आया कि पिताजी को तो वह अन्दर लाना भूल ही गए। सभी उतसुकतावश बाहर की ओर
भागे। मि.खन्ना ने दरवाजे का लॉक खोलकर
पिताजी को बाहर निकाला । बोले –‘ जब मैं उतरा था तब आपने कहा भी नहीं ,नींद आ गयी थी क्या ?
“बेटा, मैने सोचा कि मैं स्वयं गेट खोलकर उतर जाउंगा ,परन्तु बाहर से दरवाजा लॉक था”। गाड़ी के चारों ओर खड़े मेहमान और
परिवारजन सब हँस रहे थे।“ यह भी खूब रही “ कहकर मि.खन्ना ने भी एक जोरदार ठहाका
लगाया और पिता का हाथ पकड़कर सीढि़यों से ऊपर ले गए ।
पिता को आश्चर्य मिश्रित दु:ख हुआ जब
उनको भीतर नहीं ले जाकर भंडार-कक्ष में एक पलंग पर बिठा दिया गया । उन्होने कहा
बेटा,मेरा पलंग अन्दर ही किसी कमरे में बिछवा देता तो
अच्छा रहता।
“क्यों
यहां क्या परेशानी है ? इतने जोर जोर
से खाँसते हो । क्या मेहमानों को परेशानी नहीं होगी ? यह बच्चों
की पढ़ाई का दौर है , क्या उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी?
क्या उनकी पढ़ाई नहीं होने दूं “? मि. खन्ना
बुरी तरह झल्ला रहे थे ।
उद्घाटन
के बाद मि.खन्ना बीकानेर चले गए और बहु ओैर पोते पोती अपनी दुनियां में मस्त हो
गए। वृद्ध पिता तन्हाई में डूबने लगे । अकेला पाकर विचारों के झुण्ड ने उनको घेर
लिया। दिन-प्रतिदिन उनको लगने लगा मानो वे भंडार-गृह के ऐसे
कुए में डूबते जा रहें हों ,जिसका कोई तल नहीं हो । उन्होने अपना सारा
जीवन बेटे के लिए न्यौछावर कर दिया था ।
उसकी पढ़ाई में,साधन सुविधाओं में कोई कमी नहीं रहे,इसके लिए उन्होने खूब पैसा कमाया ।जमीन जायदाद की अच्छी खासी कमाई थी।
वे खुद पास के गॉंव में पटवारी थे । ऊपरी कमाई के अलावा ऊँची ब्याज दर पर
उधार देकर उन्होने खूब धन जोड़ा था ।
उनहें याद आ रहा था कि किस तरह से वे पाँच रूपए की नकल के पाँच सौ रूपए लिया करते
थे। जिस नामांतरण को नि:शुल्क खोला जाना था, उसके हजारों
रूपए नाजायज रूप से उन्होंने वसूल किए थै । इन सब के दम पर बेटे ने राजकुमार सा
जीवन जीया । और आज वह जिस पद पर प्रतिष्ठित है ,क्या वह
पृष्ठभूमि इसका आधार नहीं रही है ?
छत की ओर पथराई ऑंखों से देखते हुए उन्होने महसूस किया कि मष्तिष्क
भारी हो रहा है ,मानो फटकर बाहर आ गिरेगा ।
तभी बहू के चाय लाने की आवाज से उनकी
तन्द्रा भंग हुई । चाय पास ही ताक पर रखकर बहू चली गई । जाते जाते हिदायत दे गई ,“ कप को धोकर अन्दर ही रख दीजिएगा।
अब उनके बरतन भी अलग ही थे । बच्चे
आकर थाली गिलास कटोरी ले जाते । खाना खाने के बाद वापस साफ करके कमरे में रख जाते । उनके मन में ख्याल आया तो क्या
वह अपने ही घर में अछूत हो गये है ।
उनकी नजर सामने दीवार पर लगी तस्वीर
पर पड़ी जिसमें अंगुली में सुदर्शन चक्र धारण किए भगवान कृष्ण की तस्वीर थी ।
नजर मिलते ही उन्हें प्रतीत हुआ मानो वे मन्द -मन्द मुस्कान के साथ कह रहें
हों ,वत्स ,काश साधन सुविधाऍं और
धन के साथ बच्चों को संस्कार भी दिए होते । पर तुमने तो सिखाया था,बुद्धू मत रहना,चालाक बनना । सीधे- सादे व्यक्तियों
का जमाना नहीं है । उनकी ऑंखें डबडबा आई । हाँ भगवन , संस्कारों
के तो मैने बीज ही नहीं बोए । मैंने तो कॉंटे बोए हैं और अब वे चुभ रहें हैं तो मैं दु:खी क्यों हो
रहा हूँ ? वे जोर
जोर से रोने लगे ।काश मैने गरीब किसानों का शोषण नहीं किया होता। तेज आवाज में चल
रहे पंखो ओैर कूलर की आावाज में उनका रूदन कोई नहीं सुन पाया। अचानक हार्ट अटेक
आया या ब्रेन हेमरेज ,पता नहीं ,पर
उनके प्राण पखेरू उड़ गए ।
मि. खन्ना को छुट्टियॉं लेकर बीकानेर से तुरन्त वापस आना पड़ा । मृत्यु के बाद की
सारी परम्पराऍं निभाई गई । इसी दौरान एक प्रतिष्ठित प्राइवेट लिमिटेड बैंक द्वारा
अच्छी राशि पर मकान किराए पर लेने का प्रस्ताव आया । आशातीत किराया व हर माह की पहली तारीख को खाते में राशि डालने
सहित पॉंच साल में खाली कर दिए जाने की
शर्ते थी । अत: तय हुआ कि कि खन्ना साहब परिवार को भी अपने साथ ले जाएंगे । लगभग
पाँच वर्ष का समय ही समय उनके रिटायरमेंट में बाकी था। अत: कुछ सामान स्टोर रूम
में एवं बाकी साथ में ले जाने की योजना बनी और मकान किराए पर दे दिया गया । समय की
विडम्बना कहें या परिवार का दुर्भाग्य, नए मकान में उनका महींने भर भी
रहना नहीं हुआ। भारी मन से परिवार बीकोनर के लिए रवाना हो गया ।
बीकानेर
में खन्ना साहब को बड़ा सारा सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था। परिवार की गाड़़ी एक
बार फिर पटरी पर चलने लगी । समय पंख लगाकर फिर से भागने लगा। और खन्ना साहब के
रिटायरमेंट का समय नजदीक आ गया । इस बीच बड़े लड़के बबलू सिंह का विवाह हो चुका था
। उसके दो बच्चे हो चुके थे । रिटायरमेंट
के दिन एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया, साथ में बेटे के लिए वाटर प्लाटं का उदघाटन भी था । खन्ना साहब ने एक
टयूब -वेल पांच साल की लीज पर लिया था। एक लॉरी उन्होने इसी उद्देश्य से खरीद ली थी, जिसके
माध्यम से मांग के आधार पर पानी सप्लाई किया जाना था । शुरू में धन्घा अच्छा
चलने लगा। दिन भर लॉरी को फुरसत नहीं
मिलती थी । गर्मियों में पूरा परिवार सुबह से शाम तक व्यस्त रहता था ।
समय ने एक बार फिर करवट ली और गाड़ी पटरी से एक
बार फिर तब उतर गई जब मिसेज खन्ना कोरोना की चपेट में आ गई गहन चिकित्सा ईकाइ
में तीन दिन भर्ती रहीं पर उनको बचाया नहीं जा सका ।
मि.
खन्ना भी अब बीमार रहने लगे थे। थोड़ी दूर चलने पर ही हॉंफने लगते थे । हाथ-पैर
कांपने काँपने लगते थे। ट्यूब वेल का पानी
भी खारा हो जाने से पानी की आपूर्ति का धन्धा भी ठप्प हो चला था।उधर जयपुर में
स्थित मकान को बैंक ने खाली कर कुछ औपचारिकताऍं पूरी करने हेतु खन्ना साहब को फोन
किया । अस्वस्थता के चलते मि. खन्ना ने
अपने बेटे बबलू सिंह को ही भेजा । वापस
आकर बबलू सिंह ने बताया कि मकान पूरी तरह से खाली
हो गया है और उसी कॉलोनी में मुख्य
मार्ग पर एक दुकान बिकाउ है। और उसने उसमें शराब की दुकान के लिए लाइसेंस के लिए
आवेदन कर दिया है । अत: अच्छा है अब परिवार जयपुर के नए मकान में ही रहने लग जाए ।
बेटे की जिद के आगे मि.खन्ना की कुछ भी नहीं चली
। बेटे के रोजगार का सवाल था । पचास लाख रुपए देकर नई दुकान खरीद ली गई ।
खन्ना
साहब के रसूख के चलते आसानी से शराब का लाइसेंस मिल गया था । नई दुकान का उद्घाटन
तयशुदा मुहुर्त पर हुआ। तैयारियाँ होने
लगी । अपने नए शानदार बंगले में रहने के उत्साह ने बबलू सिंह,उसकी पत्नी और बच्चों के पैरों में मानो पंख लगा
दिया थे । सो आनन-फानन में सामान नए मकान में पहुँचाया जाने लगा। नई दुकान के
उदघाटन के दिन एक शानदार पार्टी का आयोजन रखा गया । आमन्त्रित मेहमानों की चहल–पहल
शुरू हो गई । मजदूर मिसेज बबलू सिंह के
निर्देशन में सामान जमा रहे थे । चाय और नाश्ते का दौर चल रहा था । हँसी के ठहाके
लग रहे थे। तभी बबलू सिंह की कार दोनो बच्चों और मि. खन्ना को लेकर नए बंगले के
सामने आकर रूकी । बच्चे तो फुर्ती से उतर कर अन्दर भागे । कुछ सामान उतार कर अन्दर चले गए।
पिछली सीट पर बैठे खन्ना साहब के मष्तिष्क
में विचारों के बवंडर उठ रहे थे । जिस नए मकान में आज वे रहने जा रहे थे उसकी एक
एक ईंट उनके सामने और उनकी देख रेख में लगी थी । नक्शा बनवाने से लेकर धूप में
खड़े रहकर तराई करने के दृश्य उनकी ऑंखों के सामने चलचित्र की तरह घूम रहे थे ।
इसी मकान में रहने के सपने कितने अरमानों से उन्होने संजोए थे। अचानक उनके मुँह
से निकला, समय से पहले और भाग्य से जयादा किसी
को नहीं मिलता है।‘
भीतर
सभी चाय की चुस्कियॉं ले रहे थे । बहू ने चाय के लिए आवाज लगाई तभी बबलू सिंह को
याद आया कि पिताजी तो शायद कार में से उतरकर ही नहीं आए।उसने बच्चों को देखकर आने
के लिए भेजा। बच्चों ने कार का गेट खोलकर देखा तो दादाजी ऑंखें बन्द किए बैठे
थे। सब बच्चे हँसने लगे ,अरे ! दादाजी को तो नींद आ गई । तब तक बबलू सिंह आ
गया था ।‘’हाँ बच्चों,कार में अकसर मुझे नींद आ जाया करती
है । ‘’खन्ना साहब ने झूठ बोलकर बात को किसी तरह साधा।पर उनके मन में
स्मृतियों के बवंडर उठ रहे थे। ‘कमाल है
आप कार में ही बैठे रह गए ?उतरने का इरादा नहीं था क्या ?‘’
बबलू सिंह ने एक जोरदार ठहाका लगाया ।
स्टोर रूम का दरवाजा खुला था । वह खन्ना
साहब को कलाई पकड़कर सीधे वहीं ले गया और उसी पलगं पर बिठा दिया हालाकि उनके कदम
सीधे अन्दर जाने को मुड़ गए थे । आखिर
उनके मुँह से निकल ही गया। ‘बेटा,मुझे अन्दर
ही किसी कमरे में ले जाते तो ठीक रहता।‘‘
‘पापा
कैसी बातें करते हैं आप ? आप यहीं रहेंगे
तो बाहर का ध्यान रख सकेंगे । यहॉं किसी
तरह का शोरगुल भी नहीं रहेगा । आप चाहें तो शांत चित्त होकर पूजा पाठ भी कर सकते
हैं । यहाँ लेट-बाथ भी पास ही हैं,आपको पकड़कर लाना पड़ता
है।आपके हाथ-पाँव तो काँपते है,कहीं गिर गिरा गए तो दिक्कत
तो हमे ही होगी। ‘कहकर बेटा भीतर चला गया । खन्ना साहब को बुरा तो लगा पर बेटे की
बात तर्कसंगत थी। सो माननी पड़ी। वे उसी पलंग पर बैठ गए जिस पर किसी दिन उन्होंने
जानबूझकर किसी दिन अपने पिता को बिठाया
था।
थोड़ी
देर में बहू चाय लेकर आ गई ।स्मृतियाँ और तेजी से दौड़ने लगी। उनको याद आया यह वही
कप था जिसे पिताजी चाय पीकर वहीं रख देते थे । खाने के बरतन,थाली,कटोरी और गिलास उन के लिए सब वही रख दिए गए थे
जो उन्होने अपने पिताजी के लिए रखवाए थे । अंतर इतना ही था कि उन्होंने सब कुछ
जानबूझकर अहंकारवश किया था,पर अब वे सभी संयोगवश और सहज रूप
से सब घटित हो रहा था।
चाय पीकर लेटे तो सामने दीवार पर वही चित्र
लटका था जो उन्होने अपने पिताजी की तीए की बैठक के लिए बनवाया था। उनके चित्र के
पास ही भगवान कृष्ण की वही तस्वीर जिसमें भगवान कृष्ण उंगली में चक्र धारण किए
हुए थे। उन्होने चित्र की ओर गोर से देखा । ऐसा प्रतीत हुआ मानो पिताजी कह रहें
हों ,’बेटा, अपने कर्म के बीज ही
देर-सवेर पककर वृक्ष बनते हैं आौर अपना फल देते हैं ।
‘अचानक खन्ना साहब का गला भर आया,ऑंखों में आसूँ आ गए। उनको याद आया कि किस तरह से
उन्होंने बेशुमार रिश्वत ली थी और अवेध शराब की भट्टियों को चलने दिया था। कई
शराबके लाइसेंस उन्होंने भारी-भरकम रिश्वत
के बदले में दिलवाए।
पश्चाताप की वेदना से त्रस्त होकर वे फूट-फूट
का रोने लगे । भीतर चल रहे पंखे और कूलर की तेज आवाजों में उस रुदन को कोई नहीं
सुन सका । खन्ना साहब को लगा मानो वे किसी तलहीन कुए में डूबते जा रहें हों । पश्चाताप
और कर्मफल मिलकर उनको मानो ऊपर से नीचे धकेल रहे था।
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