तुमने देखा होगा
नदी को बहते हुए
मैंने देखा है
नदी को रोते हुए
नज़र नज़र की बात है
किनारे से एक दिन
पूछा था
इतनी चुप क्यों रहती है नदी
बहुत लम्बी कहानी है साहब
समन्दर के बारे में
सोचती है
तो रोती है
अपने बारे में सोचती है
तो रोती है
आपा खोती है
तो रोती है
जब जब किसी की
होने को होती है
तो रोती है
मछली को मछली खाती है
तो रोती है
एक बार जब हंसी थी
समन्दर को आग लगी थी
उस दिन ज़ोर से
दहाड़ा था समन्दर
दूर तक पेड़ उखड़ गए थे
किसानों के
खेत के खेत
उजड़ गए थे
नदी सब कुछ सोचती है
तो रोती है
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