इतिहास की एक
निर्णायक घड़ी
पराजित और
पस्त हो जाती है,
अपने हो
अंतरद्वंदों और दुविधाओं की छाया में.
बेबस हो जाती
हैं,
अराजकता की
भरकम मुट्ठियों में ,
कुचली जाती
हैं
तानाशाही
बूटों के तले।
एक विस्फोट बन
कर
अपने ही ध्येय
को जला देती है ,
या अवसाद की
गहराती परतों में
राख बन कर जम
जाती है।
एक विश्वास
जो संबल बन कर
उगता है-
नाइंसाफ़ी, निराशा और
अविश्वास के रेगिस्तान में,
किसी फुलवारी
का सुगंधभरा अहसास लेकर...
दोपहर की तेज
धूप से
मुर्झा जाता
है ।
साहस और
संकल्पों के
ऊँचे पर्वतों
से उद्गामित
छोटा सा एक
झरना,
समय की
प्रदूषित धाराओं को ,
थोड़ी ही दूर
जाकर
नालों में बदल
जाता है ।
एक सूरज, जो अपनी
प्रखरता से
बदल सकता था
ऋतुओं की
परिभाषाएं ....
उदय होते ही,
संशय और उपहास
के बादलों से ढंक कर
निष्प्रभ: हो
जाता है।
सपनें झुठला
जाते हैं,
संकल्प, मजाक में बादल
जाते हैं
और उम्मीदें
नागफणियों का
रूप ले कर
डँसने लगती
हैं ?
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