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समीक्षक
: एम. असलम. टोंक राज.
कविता एक ऐसी लेखन
कला है,
जो गागर में सागर भर देती है। पढ़ने में भले ही काव्यात्मक दो
पक्तियां हो, लेकिन उनका अर्थ बहु-आयामी एवं सारगर्भित होता
है। काव्यात्मक अभिव्यक्ति साहित्य की वह विधा है, जिसमें
किसी मनोभाव, चिंतन-मनन को सारगर्भित शब्दों का उपयोग करते
हुए कलात्मक रुप से अभिव्यक्ति किया जाता है। एक अच्छी कहानी एवं एक अच्छे काव्य
को यदि हम परिभाषित करें, तो उसके सारतत्व के रुप में हम ये
कह सकते हैं कि एक अच्छी कहानी वो हैं, जिसमें सुनने एवं
पढ़नें वाले की जिज्ञासा उसको पूरा पढ़ने की बनी रहे। आगे क्या होगा, इसको जानने के लिए पाठक में उत्सुकता बनी रहे, तो हम
कह सकते हैं कि कहानी अच्छी एवं प्रभावी है। इसी प्रकार काव्य रचना अच्छी है,
उसका अंदाज़ा हम इस प्रकार भी लगा सकते हैं कि यदि कोई कवि किसी
काव्य रचना को सुना रहा है। और सुननें वाले सुधि श्रोता वंस मोर, वंस मोर..कहने लगे, तो लगता है कि काव्य रचना में दम
है। कहानी में आगे क्या होगा, जानने की जिज्ञासा बनी रहे,
काव्य में सुधि श्रोता बार-बार उसको सुनना चाहे, तो उसको सफल कह सकते हैं। सफल कहानी एवं काव्य वहीं है, जिसका कोई सार्थक अर्थ एवं उससे रचनात्मकता की ओर सोच विकसित हो। हालांकि
ये पैमाना पूरी तरह सटीक हो, ऐसा भी नहीं है। लेकिन एक हद तक
इस पैमाने को मान्यता दी जा सकती है। अल्लामा इक़बाल कहते हैं-
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।
बहरहाल हम यहां पर
जिस कवयित्री की काव्य संग्रह के बारे में चर्चा करना चाहते हैं, वो उच्च शिक्षा प्राप्त होने के साथ ही आसपास के परिदृश्य को बहुत ही
गहनता से समझने का सामर्थ्य भी रखती है। कवयित्री मेघा मिटावा ने अपने जीवन में
परिवारिक संघर्षों को देखा और महसूस किया। कौन-सा रिश्ता कितना महत्वपूर्ण होता है,
वो समझती है। उसने नारी के सभी रुपों एवं भूमिका को भी भली-भांति
महसूस करते हुए उसकी महत्ता, अभिलाषा एवं पीड़ा सहित उसकी सोच
आदि को भी अपने काव्य संग्रह, शब्द-शोर.. में अभिव्यक्त किया
है। इसको पढ़नें के बाद ऐसा महसूस होता है कि कवयित्री ने प्रभावी शब्दों का उपयोग
करते हुए सीधे तौर पर अपनी भावनाओं को काव्यात्मक शैली में पाठक के समक्ष प्रस्तुत
किया। कवयित्री ने जीवन के तानबाने को सीधी, सरल भाषा में
अभिव्यक्ति दी है। जापानी काव्य विधा में अमूमन तीन पक्तियों की कलात्मक
अभिव्यक्ति को हाइकु कहते हैं। इसकी भी छलक कवयित्री की काव्य रचनाओं में मिलती
है।
कड़वा हो मन,
जब मुझे मीठा बनना
नहीं आता।
जैसे मति, बुद्धि, मेघा, प्रज्ञा और
विचार।।
वृद्धा माँ ने
कहा.... बेटा मुझसे मुँह मत फेर,
देख मैं तेरे कल का
आईना हूँ
चेहरे पर जो मेरे
झुर्रियाँ पड़ी हैं,
गालों पर जो गड्ढे
पड़े हैं,
आँखें जो मेरी धंस गई
हैं,
कमर जो मेरी झुक गई
है,
बाल जो मेरे दूध जैसे
सफेद हो गए हैं,
जबान मेरी लड़खड़ा गई
है,
चमड़ी मेरी सिकुड़ गई
है,
दांत मेरे गिर गए हैं,
देख मैं तेरे कल का
आईना हूँ।
बेटा मुझसे मुँह मत
फेर.... मैं तेरे कल का आईना हूँ।
तुमको बड़ा करने में
मेरी,
उम्र सारी चली गई है।
आज जरूरत जब मुझको
तेरी,
सारी तेरी हिम्मत
मुझको रखने की निकल गई है।।
बच्चे भी तेरे बड़े
होंगे,
तुम्हारी भी यह अवस्था आएगी।
याद करोगे उस दिन को
जब,
माँ के गिड़गिड़ाने की आवाज याद दिलाएगी ।।
माँ कहती थी......
बेटा मुझसे मुँह मत फेर, देख मैं तेरे कल का आईना हूँ।
अंत में बात तुम्हें
यही सिखाती हूँ।
मनुष्यता सबसे बड़ा
धर्म,
यह बतलाती हूँ।।
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