सुन स्त्री!
तेरी तरह दुनिया में कोई दूसरा नहीं।
तू सबसे अलग अनूठी है।
अपनी तरह की अकेली है।
तू भुनगों सी नहीं कि फूंक मारने से उड़ जाएगी।
कीट पतंगों में भी नहीं कि-
कोई कुचल मसल सके तुझे-
तेरे अंदर एक ‘दिया’ है,
एक जोत है।
कस्तूरी का एक टुकड़ा है-
और है एक जादू की छड़ी-
स्नेह का सिमसिम-
और जुनूनी तो हद की-
इतना सब मूल्यवान जो विधाता ने तुझे दे रखा है-
उसे दे देकर तू कभी अघायी नहीं.....
अघायेगी भी नहीं......
लेकिन देखना,
एक दिन-
‘वे’ लेते लेते थक
जायेंगे
और तब,
एक न एक दिन,
तेरे सामने-
उनके मस्तक झुक जायेंगे.....
इसी एक जीवन में......!
तू किसी की मत सुनना।
अपनी राह ही चलना-
तू देना मत बंद करना-
क्योंकि तू देने के लिए ही जन्मी है।
तुझसे ही यह पृथ्वी थमी है।
तू देगी नहीं
तो यह पुसेगी नहीं-
कुपोषित रह जायेगी।
नहीं, मैं तुझे बहका नहीं रही हूं-
तेरी सही राह बता रही हूं।......
सुन स्त्री!
तू अपनी राह ही चलना,
तू देना मत बंद करना।.....
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सुन स्त्री!
तू करवा चौथ जरूर मनाना
पैसे हो तो बहुत कुछ करना-
लेकिन न भी हों तो कोई बात नहीं-
सिर्फ पांच रूपये की मेहंदी
और दर्जनभर चूड़ियों-
मिट्टी के ’करवों’,
और लाल ईंगुरी बिदी से ही-
मन जाता है करवा चौथ.......
उतार लाती है, आकाश का चांद,
तू रसोई के चालन में!......
तो स्त्री!
तू हर-छठ, करवा-चौथ जरूर
करना
नहीं तो सूरज, चांद, उदास हो
जायेंगे-
क्योंकि तेरे बिना
कौन उतारेगा
आसमान के चांद-सूरज-
जमीन पर!
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1 टिप्पणी:
अत्यंत प्रेरणादायक और प्रभावित करनेवाली कविता...सलाम... तेजस्विनी पाटील कराड
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