बेटियाॅं!
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गाय समझ दान दे दी जाती हैं,
गाय की तरह किसी खूॅंटे से बाॅंध दी जाती है।
दान देकर पराया मान लिया जाता है,
उनका अस्तित्व
नकार दिया जाता है।
उनका कमरा उनका स्थान अब उनका नहीं रहता,
छीन लिया जाता है।
रोती बिटिया के साथ रोकर
विदा कर दिया जाता है।
नए घर में अनजान लोगों और
नयी परिस्थितियों के बीच
मान सम्मान का पल्लू सॅंभालती,
कहीं किसी को बुरा न लग जाए,
पहले की तरह मुखर नहीं रह पाती।
हर कदम फूंक-फूंक कर आगे बढ़ाती फिर भी कमियों का पर्याय बन जाती है।
जहाॅं
अब तक हर कदम उत्साह जनक बातों से घर के लोगों के प्रोत्साहन से उसे आगे बढ़ाता गया वही निराशाजनक बातों और आलोचनाओं सें घेर
परंपराऐं रीति रिवाज
थोप दिए जाते हैं।
संस्कारों के नाम पर
पॅंख काट दिए जाते हैं।
उड़ना मना है उन्हें।
2 टिप्पणियां:
बहुत बहुत आभार 🙏
बेहद आभारी🙏
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