प्रकाश प्रियम
क्या तुम समझ पाते हो
मेरी कविताओं में मेरे ज़हन की
आंतरिक संवेदना को
मैं कविता में क्या लिखता हूँ
मेरे शब्द कैसे होते हैं
क्या तुम विवेचन कर सकते हो
क्या तुम्हारे मन को झिंझोड़ा
मेरे शब्दों ने कभी
क्या उन्हें पढ़कर तुम्हें रोना आया है
अथवा कभी ख़ुशी मिली
क्या कभी क्रोध जगा
या कि फिर स्वेद बहा तन से
या कभी किसी के लिए करुणा जगी
कि मन में कोई बदलाव आया तुम्हारे
ये सब तुममें यदि उद्भूत नहीं हुए
यदि मेरी कविता तुम्हारे संवेदों को
नहीं जाग्रत कर पाई
तो तुम्हें कविता पढ़ना बंद कर देनी
चाहिए
अथवा फिर मुझे लिखना
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