सोमवार, 1 जनवरी 2024

कविता— युद्ध- डॉ.राजेंद्र प्रसाद गर्ग

डॉ.राजेंद्र प्रसाद गर्ग

 प्रोफेसर,विचारक,लेखक और संपादक-'नवमानव'

युद्ध

कभी नहीं मिटती इसकी भूख

चबा जाता है युद्ध

दोनों तरफ के नौजवानों का

ताजा गोस्त और रंगीन सपने।

चबा जाता है युद्ध

बच्चों का कोलाहल

युवकों के गीत

बुजुर्गो की चौपाल

कोई नहीं बचता इसके जबड़े में फंस कर

न प्राचीन स्मारक न शिलालेख न दस्तावेज

न कुतुबखाने न मयखाने न तर्क न संवाद

न परिन्दे न दरिन्दे न घोंसले न घर।                                          

इतिहास और भूगोल चबा जाता है युद्ध

 

भूख की आग से व्याकुल युद्ध

सुलगाता है नारों से उन्माद

राजभक्ति देशभक्ति के नारों से

अस्मिता और आहत भावनाओं के नारों से

श्रेष्ठता और सर्वोच्चता के नारों से

धर्म पर खतरे के नारों से।

इसी आँच पर भोजन पकाता है युद्ध

और क्षणिक तृप्ति के बाद

फिर-फिर भूख से अकुलाता है युद्ध 

 

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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