गुरुवार, 4 जनवरी 2024

पगडंडिया- नरेश मेहन


 नरेश मेहन

पगडंडिया

 अपनी

पदचाप सुनना मुड़कर

अपने पैरों के

 निशान देखना

 कितना मधुर लगता है ।

झाड़ियों से

लताओं से

 बातें करना

भंवरों का

 संगीत सुनना

 लगता है

 कितना मनोरम।

जहां पर

हर कदम

हर ताल में

 संगीत की

रचना हो

तुम उनके संग

वह तुम्हारे संग।

 पगडंडियों का

 यह संगीत

 दुनिया भर की

हिंसक सड़को

 धुआं उगलते

वाहनों का

 कितना

मासूम सा जवाब है।

 पगडंडियां

 सदा सुहावनी

 मन-मोहक

अपनी सी लगती है

सड़कों पर

 परायेपन की

गंध आती है।

 हिंसा

 सड़कों का धर्म है स्नेह

 पगडंडियों का मर्म है ।

आओ

 स्नेह की महक से हिंसा की

गंध मिटाएं ।

 सड़कों की

 पथरीली- लयहीन

अंधी

दौड़ से बचें

 जड़ों से जुड़ना सीखे ।

अगर आप भी

 लेना चाहते हैं

प्रकृति के संगीत का

 भोरों की गुंजार का

पेड़ों से आती

 शीतल बयार का आनंद

तो पेड़ों को

काटो मत

झाड़ियों लताओं

को उखाड़ो मत

उनके बीच तलाशो

 कोई पगडंडी

जो थी कभी

हमारे आस-पास।

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