गुरुवार, 4 जनवरी 2024

घुमन्तु - विजय राही

विजय राही

घुमन्तु 

शहर से दूर पटरियों के पास

कीकर-बबूलों के बीच में डेरे हैं उनके

यह एक सर्दियों की शाम थी जब हम मिले उनसे

जीव-जिनावर लौट रहे थे अपने-अपने दड़बों में 

बच्चे खेल रहे थे आँगन में पिल्लों के साथ

बच्चियाँ बना रही थी चूल्हे पर रोटी-साग

नीम की गीली लकड़ियाँ थीं

धुआँ दे रही थीं और जल रही थीं 

तिड़कती हुई आवाज़ के साथ

कड़ाई में रोटी सिक रही थी

जिसमें सब्जी बनी थी कुछ देर पहले

हवा में फैली थी उसकी चिरपरी गंध 

 मैंने पूछा कि तवे क्यों नहीं लेते काम

वे बोलीं "हम तो घुमन्तु हैं साब

कौन दस-दस बर्तन रखे पास"

और पारसी भाषा में बात कर हँसने लगीं

 "होली-दिवाली आते हैं हम गाँव

फिर लगा जाते हैं कच्चे-पक्के डेरों के ताले

साल-छह महीने में सँभालते हैं घर-बार

कोई मर भी जाता है तो नुक्ता दिवाली पे करते हैं

ताकि सब लोग शामिल हो सकें !"

मैंने पूछा- पढ़ते क्यों नहीं तुम लोग ?

पढ़कर भी नौकरी लगती नहीं है

बी.ए. की हैं डेरे के कुछ बच्चों ने 

पर कोई मतबल नहीं

सो हम तो घूमते रहते हैं सालों-साल

आसाम, महाराष्ट्र, कश्मीर, नेपाल

अरुणाचल, पश्चिमी बंगाल भी जाते हैं

पन्द्रह दिन का परमिट बनवाते हैं

फुटपाथ पर सो जाते हैं 

पुलिस परेशान भी करती है

पर क्या करें! यहाँ भी कोई काम-धंधा नहीं है

 

दो लोग तो उधर ही मर गया हमारा गुजरात में 

साँप खा गया था उनको 

फिर भी पेट की ख़ातिर बाहर जाना पड़ता है

घूमना ही हो गया अब तो हमारा सुभाव

लॉकडाउन में गुवाहटी में फँस गए थे

निकल गई थी आख़िरी ट्रेन

बसें भी हो गई थी बन्द सब

ट्रक में बैठे थे आने के लिए अपने देस जयपुर

लाठी-चार्ज कर दिया पुलिस ने 

गोद में सो रहे बच्चे के पड़ गई लाठी उतरती-सी

गड़वा दिया पुलिस ने जेसीबी से

बच्चे के फूफा की मौज़ूदगी में

बाप क्वारन्टाईन था छुट्टी नहीं मिली उसको

हमारे दादा-परदादा बैल बेचा करते थे

वे गुजरात जाते थे बैल खरीदते थे 

देशभर मेलों में बेचते थे

इस मशीनी युग में बैलों को कौन पूछता है

अब हम दिल्ली सदर बाज़ार से बैलून खरीदते हैं 

और लालबत्ती चौराहों पे बेचते हैं


विजय राही

बिलौना कलॉ, लालसोट, दौसा (राज.)

पिनकोड-303503

प्रारंभिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल से

स्नातक राजकीय महाविद्यालय दौसा, राजस्थान से एवं स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय से । 

हंस, पाखी, वर्तमान साहित्य, सदानीरा, कृति बहुमत, समकालीन जनमत, विश्व गाथा, वर्तमान साहित्य, किस्सा कोताह, परख, नवकिरण, कथेसर,

दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, सुबह सवेरे, प्रभात ख़बर, राष्ट्रदूत, रेख़्ता, हिन्दवी, अंजस, पोषम पा, इन्द्रधनुष,पहली बार, हिन्दीनामा, तीखर, लिटरेचर पाइंट, अथाई, दालान आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाईट्स पर कविताएँ- ग़ज़लें प्रकाशित ।

राजस्थान साहित्य अकदमी, उदयपुर एवं आकाशवाणी, जयपुर में कविता पाठ ।

 पाखी, जन सरोकार मंच- टोंक, राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ, युवा सृजन संवाद-इलाहाबाद आदि आनलाईन चैनलों पर लाईव कविता पाठ ।

पुरस्कार -

दैनिक भास्कर प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार(2018)

कलमकार मंच का  द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (2019)

मो.नं./व्हाट्सएप नं.- 9929475744

Email- vjbilona532@gmail.com

 

1 टिप्पणी:

राहुल मीणा ने कहा…

मुद्दा बहुत सही उठाया है! पर घुमन्तुओं की यही जीवन शैली है। उनकी जीवन शैली की विशिष्टता बनाये रखते हुए उन्हें सम्मान मिलना चाहिए। अधिकार मिलने चाहिए। संसद और विधायिका में इनके प्रतिनिधि होने चाहिए, जिसे उनका समुदाय चुनकर भेजे।

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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