रविवार, 7 जनवरी 2024

* एक आँसू * सोमनाथ शर्मा



                                                                     

                                                                        * एक आँसू *

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आँसू !

आत्मा का आर्त्तनाद ,

उच्छलित सौन्दर्य प्रेम का, आनंद का

हृदय में जुटी सुगंध का,

मकरंद का !

दृगकोरकों में आ बैठा चुपके-से

पलकों में झिलमिलाने लगा,

बरौनियों में छलछलाने लगा !

मुरझाए पुष्प सा

नयनों के वृंत पर अटका पड़ा

कितने ही पतझरों से झुलसा लड़ा !

अब गिरा,

तब गिरा

पर ना गिरा, मैं रोके रहा !

धो गया तारक द्वय ,

पुँछ गया,

काजल की लकीरों में खिंच गया,

बस ये बता गया

कि कुछ बात है

दिन नहीं,अंदर रात है !

सागर है,

उमड़ता ज्वार है !

अब और साफ दिखाई देने लगा है

पहले से बेहतर समझ में आने लगा है !

ये दुनिया ,

इसके रूप,

इसके रंग,

इसके खेल !

कोशिश यही रहेगी अब और,

कि दर्द से दोस्ती हो जाए

आर्त्तनाद, अनहद नाद बन जाए !

न पिघले , न उछले

न छलछलाए !

वहीं थम जाए,

वहीं जम जाए !

क्योंकि आँसू का वजन, कोई उठा नहीं सकता

आँसू की कीमत,कोई लगा नहीं सकता

पिघले हुए दर्द को, कोई जमा नहीं सकता

खुशियों को कोई और, कमा नहीं सकता

तो क्योंकर...

जीवन की जमा पूँजी को,

अस्तित्व को,

चेतना को,

सम्पूर्ण विराट को,

हृदय को मथकर निकले रत्न को,

जीवन के काव्य को,

व्यष्टि में समाहित समष्टि को,

एक दृष्टि में समाहित सम्पूर्ण सृष्टि को,

लुटाया जाए,

क्योंकर गिराया जाए ?

सहेजकर ही रखा जाए !

सँभालकर ही रखा जाए!!!

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...