बुधवार, 3 जनवरी 2024

इस तरह जीवन जिया- कुमार बिंदु

                                           कुमार बिंदु 

 

इस तरह जीवन जिया

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एक ने अंगुलियों में फंसाया

दूसरे ने अंगुलियों में दबाया

पत्थर का एक- एक टुकड़ा

एक ने बेलचे को बनाया तबला

दूसरे ने कुदाल को बनाया ढोलक

तीसरे ने लिया तार सप्तक में आलाप

फिर सुर से सुर मिले

फिर ताल से ताल मिले

फिर फ़ज़ा में गूंजा बिरहा के निरगुन बोल

सइयां मोर गवनवां लिहले जाला बदरी में

बाप महतारी रोवें, भाई भौजाई हो

सखी आ सहेली रोवें, ठाढ़ देहरी में

बलमा मोर गवनवां लिहले जाला बदरी में...

मजदूरों को बिरहा गाते हुए

निरगुन भजन के रस- रंग में गोते लगाते हुए

किसी को पता ही नहीं चला कि कितने पल बीत गए

कब घड़ी में दो से तीन और तीन से चार भी बज गए

और कब प्लेटफार्म संख्या एक पर आकर पैसेंजर ट्रेन आयी

ट्रेन रूकी, बिरहा की तान थमी

फिर बैठे मजदूर हुए उठ खड़े

सबने अपने- अपने चूतड़ का धूल झाड़ा

सबने अपने- अपने माथे पर मुरेठा बांधा

किसी ने कुदाल तो किसी ने बेलचा उठाया

सामने खड़ी बोगी के दुआर पर खड़े

सवारियों को ठेल- धकेल सब अंदर घुसे

इस तरह  मजदूरों का जत्था

ट्रेन में भी हँसता- गाता सफ़र किया, जीवन जिया


कुमार बिंदु


सूबे बिहार के सोन तटीय कस्बाई शहर डेहरी ऑन सोन (  डालमियानगर  ) में 1957 में जन्म। अस्सी के दशक से साहित्यिक यात्रा की शुरूआत। पेड़ कविता का प्रभाकर माचवे ने मराठी में अनुवाद किया। उत्तरशती, कदम, अब, आज, हिंदुस्तान, किस्सा कोताह, परिकथा, कलमकार सहित अनेक पत्र- पत्रिकाओं में कविताएं और लेख प्रकाशित। आकाशवाणी से भी अनेक वार्ताएं प्रसारित। कलमकार के कुछ अंकों का संपादन भी। दो दशक तक दैनिक हिंदुस्तान के संपादकीय विभाग में कार्यरत। कुछ भोजपुरी फिल्मों में अभिनय और संवाद लेखन। रोहतास जिला में इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ का संस्थापक।

बिहार के कवियों के साझा काव्य संकलन " आसपास की प्रतिध्वनियां " में दस कविताएं शामिल। एकल काव्य संकलन ' साझे का संसार ' । 

संपर्क :  पाली, डेहरी ऑन सोन, रोहतास- 821305

फोन-   099393 88474 /  094314 30360

ईमेल: kumar.bindu.dos@gmail.com

 


 

 

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