अरुण शीतांश
वरिष्ठ कवि,आलोचक एवं संपादन देशज पत्रिका
पटवन का मौसम
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बच्चे खेतों में धान की बालियां चुन रहे हैं
पढ़ाई लिखाई छोड़कर
हंस रहे हैं हार्वेस्टर की चाल देखकर
खेतों में पराली जलाई जा रही है
साथ में मिट्टी जल रही है
मिट्टी में सब-कुछ पैदा होना है
खेतों को पटाया जा रहा है
बगुले आ गए हैं खेतों में
वे निराश होकर उड़ गए हैं
वृक्षों पर
उड़ गई हैं मैना
जो अक्सर खेतों में आती थीं
सखियों से मिलने
सखियां सब चली गईं
दूर देश साइबेरिया
इस बार फसल कमजोर है
किसान की तरह
और खेतों में धूप का गिरना शुरु हो चुका है
धूप के मौसम में बदलाव है
सूप के भी मौसम होते हैं
मनुष्यों के रोज़ मौसम बनते हैं
मौसम रोज़ नहीं बनते
मनुष्यों के लिए
खेतों के लिए
पक्षियों के लिए
धरती के लिए
लेकिन मौसम
मौसम के लिए बदल जाते हैं
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