लोक संगीत मर्मज्ञ - मोहन सिंह बोरा रीठागाड़ी जी।
आलेख - बृजमोहन जोशी, नैनीताल।
कुमाऊंनी लोक गीतों,वीर
गाथाओं के रसिक गायक स्व. मोहन सिंह बोरा रीठगाड़ी (बैरी) जी का नाम और उनके लोक
गीत
आज भी कुमाऊंनी संस्कृति में रूचि रखने वाले हर
व्यक्ति के दिल में धड़कते हैं। अपनी गायकी के दम पर जीवित लोक गीतों का यह बहुत
रंगी चितेरा सचमुच में लोक कलाकार के नाम को सार्थक करता था। उनका जन्म सन् १९०५
में पिथौरागढ़ जनपद के धपना गांव में हिम्मत सिंह बोरा जी के घर में हुआ था। उनकी
अक्षरों की पढ़ाई तो हुईं नहीं पर उन्होंने गाड़,गधेरौ, डाना -कानाओं में, बांज बुरांस के हरे भरे पेड़ों की
छाया में हुडुके कि थाप पर बैर,भगनौल,रमौल,
झोड़ा,छपेली, चांचरी,
न्यौली, मालसाई ,बौल,विद्या का ऐसा अध्यन किया कि वहीं उनकी अमरता का प्रतीक बन गया। कुछ समय
पश्चात वह अल्मोड़ा जनपद के ग्राम -बैदी
बगड़ पट्टी रीठागाड़ में वह आकर बस गए और यहीं से लोग उन्हें रीठागाड़ी के नाम से
सम्बोधित करने लगे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी रीठगाड़ी जी पर मां सरस्वती कि असीम
अनुकृपा थी। कुमाऊं की सांस्कृतिक थात तथा लोक गीतों की सशक्त विधा को जीवन्त
बनाये रखने में मोहन सिंह बोरा जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।उनकी
गायकी का अन्दाज स्वरों का उतार चढ़ाव और
हुडुके कि थाप का उनका अन्दाज कुछ ऐसा था कि वह कुछ ही समय में लोक गायक के रूप
में प्रसिद्ध हो गये और १९५० के बाद कुमाऊं अंचल में कोई ऐसा मेला या पर्व नहीं
रहा होगा जहां मोहन सिंह बोरा जी के लोक गीतों की धूम न रही हो। स्वतन्त्रता
संग्राम आन्दोलन के समय, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के
सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने जन गीतों को गाकर ग्रामीण जनता से गुलामी की
जंजीर से मुक्त होने का आह्वान किया। मोहन सिंह बोरा जी ने लोक विधा में न्यौली को
एक नयी तर्ज दी जो रीठगाड़ी तर्ज कहलाती है।उनकी न्यौली का उतार चढ़ाव श्रोताओं के
ह्रदय को छू जाता था। बिडम्बना देखिए यह लोक गायक, स्वतन्त्रता
सेनानी फिर भी अभावों में जीता रहा।
वर्ष २००५ मे पारम्परिक
लोक संस्था परम्परा नैनीताल द्वारा
भारतीय नववर्ष चैत्र
प्रतिपदा के शुभ अवसर पर आयोजित नव वर्ष
मिलन समारोह कार्यक्रम में संस्था द्वारा संकलित व प्रकाशित परम्परा वार्षिक विशेषांक मोहन सिंह
बोरा रीठगाड़ी जी सादर समर्पित कर संस्था ने स्वयंम को गौरवान्वित महसूस किया।
आज मोहन सिंह बोरा रीठगाड़ी जी हमारे बीच नहीं हैं पर कभी न मिटने वाले उनके स्वरों का फलसफा हमेशा जिन्दा रहेगा मैने अपने गुरु जी कला के सन्दर्भ में बहु आयामी व्यक्तित्व स्व. रमेश चंद्र जोशी जी से रीठगाड़ी जी के सुपुत्र स्व. चन्दन सिंह बोरा जी कलाकार गीत एवं नाटक प्रभाग से , जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा से रीठगाड़ी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में सुना और जाना । गिर्दा ने बताया कि - रीठगाड़ी जी गाते थे कि -
मोहन दा तेरी उमर न्है
गे छ।
मोहन दा तेरि बात रै गे
छ।। अर्थात - मोहन दा तुम्हारी उमर तो बीत गई लेकिन तुम्हारी बातें रह जायेंगी।
पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल द्वारा
वर्ष २००५ में संकलित व प्रकाशित परम्परा
नामक दूसरे वार्षिक विशेषांक से यह संक्षिप्त जानकारी मैं आपके साथ सांझा कर रहा
हूं।
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