हूबनाथ पांडे
कवि,लेखक,आलोचक
प्रोफेसर,मुंबई विश्वविद्यालय
फिर कबीर
ईश्वर का प्रतिनिधि
वह बनता है राजा
वह सिर्फ़ ईश्वर का
ख़याल रखता है
महल बनवाता है
उत्सव मनाता है
प्रजा के श्रम के
शोषण के बल पर
ईश्वर का भोग बनती है
सूखी प्रजा
दिये का तेल बनती है
और रौशन करती है
ईश्वर की अंधियारी रात
प्रार्थना करती है
ईश्वर से
अपने राजा की
सुख समृद्धि के लिए
लंबी उम्र के लिए
उसे राजा से
चक्रवर्ती सम्राट बनाने के लिए
दरिद्र प्रजा की
समृद्ध प्रार्थना
स्वीकारता है
पूरी सहृदयता से
ईश्वर
राजा का ख़याल
रखता है
राजा फ़िक्र करता है
ईश्वर की
इन दो भव्य पाटों के बीच
पिसता है
निर्धन प्रजा के साथ
गाते हैं आरती
क्षण में दूर करे
सदियों से खड़े हैं
ईश्वर की चौखट पर
अपने अपने सिर पर लिए
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