शनिवार, 6 जनवरी 2024

फिर कबीर- हूबनाथ

 हूबनाथ पांडे 
कवि,लेखक,आलोचक 
 प्रोफेसर,मुंबई विश्वविद्यालय


फिर कबीर

 राजा होता है

ईश्वर का प्रतिनिधि

 ईश्वर की कृपा से

वह बनता है राजा

 राजा बनकर

वह सिर्फ़ ईश्वर का

ख़याल रखता है

 ईश्वर के भव्य

महल बनवाता है

उत्सव मनाता है

 यह सब वह करता है

प्रजा के श्रम के

शोषण के बल पर

 भूखी प्रजा

ईश्वर का भोग बनती है

सूखी प्रजा

दिये का तेल बनती है

और रौशन करती है

ईश्वर की अंधियारी रात

 प्रजा सच्चे मन से

प्रार्थना करती है

ईश्वर से

अपने राजा की

सुख समृद्धि के लिए

लंबी उम्र के लिए

उसे राजा से

चक्रवर्ती सम्राट बनाने के लिए

 और ईश्वर

दरिद्र प्रजा की

समृद्ध प्रार्थना

स्वीकारता है

पूरी सहृदयता से

ईश्वर

राजा का ख़याल

रखता है

राजा फ़िक्र करता है

ईश्वर की

 और कबीर

इन दो भव्य पाटों के बीच

पिसता है

निर्धन प्रजा के साथ

 और भक्तगण

गाते हैं आरती

 भक्तजनों के संकट

क्षण में दूर करे

 और उस क्षण की प्रतीक्षा में

सदियों से खड़े हैं

ईश्वर की चौखट पर

 अपने अपने संकट

अपने अपने सिर पर लिए


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