भानु प्रकाश रघुवंशी
|मातृभाषा||
जब पहली बार आंखें खुली
तो माॅं को ही देखा,
मैंने रोना शुरू कर दिया
तब मेरी कोई भाषा नहीं थी
रोने और हॅंसने की कोई भाषा नहीं होती
न भाषा की जरूरत होती है
रोने या हॅंसने के लिए
मुझे भाषा का ज्ञान माॅं ने दिया,
सबसे पहले माथा चूमा
वह स्पर्श की भाषा थी
फिर अपने होंठों पर उॅंगली रखकर
दाॅंए बाॅंए सिर हिलाते हुए
चुप हो जाने का इशारा किया
मैं न समझा
इस सांकेतिक भाषा में, माॅं की
बात
फिर एक वर्ण 'न' कहा उसने
फिर कहा
न रे,न रे,न रे न न
माॅं ने इसी भाषा से गुदगुदाया था
पहली बार मुझे
यही मेरी मातृ भाषा है।
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