सोमवार, 1 जनवरी 2024

अंगूरी- डॉ.पूनम तुषामड़

                          डॉ.पूनम तुषामड़
                            सामाजिक चिंतकलेखककवयित्री 

अंगूरी

दीदी जीना हराम

कर रखा है

हरामी ने ।

पैसा देता है ,ना धेला

रोज नशे में झूमता हुआ

आता है ,बच्चों को

ओर मुझे पीटता है,v

गाली बरसाता है।

बस बहुत हुआ

मैने भी आज चूल्हे

से जलती लकड़ी

उठाली।

और कहा:

आ ..हरामखोर!

बढ़ आगे..मैं परोसूंगी

तुझे थाली।

1 टिप्पणी:

Dosi ने कहा…

स्त्री विमर्श की विद्रोही कविता है यह

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...