सोमवार, 8 जनवरी 2024

ठंड , कोहरा और अलाव के साथ जिंदगी को जीने की ज़िद - विवेक कुमार मिश्र


ठंड , कोहरा और अलाव के साथ जिंदगी को जीने की ज़िद

                                      - विवेक कुमार मिश्र 

आकाश ही इस समय कोहरे के रूप में उतरता जा रहा है । कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है । संभल कर चलें, जरूरत न हो तो बाहर निकलने से बचें । ठंड से तो लड़ सकते हैं पर कोहरे से लड़ाई संभव नहीं है । जहां तक संभव हो कोहरे के छंट जाने का इंतजार करें फिर आगे बढ़े । कोहरा और ठंड साथ साथ चलते हैं तो इसका आनंद लें । प्रकृति अपने क्रम में बहुत कुछ सीखाती रहती है । इसे छोड़कर या भुलाकर नहीं चल सकते । प्रकृति के बीच रहते हुए प्रकृति के एक एक आदेश और संदेश को बहुत ध्यान से सुनने की जरूरत है । तभी सही ढ़ंग से सामंजस्य बैठाया जा सकता है । आज बार बार यह सुनने में आता है कि इतने साल का रिकार्ड टूट गया । कहीं भी अचानक से बारिश, गर्मी या ठंडी लहर चलने लगती है तो इसके पीछे बड़ी वजह है कि हम प्रकृति की सुन नहीं रहें हैं और वह लगातार चेतावनी दे रही है कि संभल जाओ । प्रकृति को सहेज कर रखो । अपने हिसाब से अपनी जरूरत भर उसका उपयोग करों। अंधाधुंध दोहन मत करों । यदि नहीं माने तो आपदाओं का संकट तुम्हारा पीछा कर रहा है । प्रतिकूल मौसम एक तरह की चेतावनी है । कहीं बर्फ की बारिश हो रही है तो कहीं तुफानी हवाएं चल रही हैं । ऐसे में आप जितना संभल कर रह सकते हैं उतना ही आपके लिए फायदेमंद है । इसीलिए कहा जाता है कि मौसम का आनंद लेते हुए अपनी आसपास की दुनिया को बचाने के लिए भी लगातार कुछ न कुछ करते रहे । फिर यह संसार अपने हर रंग में सुंदर दिखेगा । ठंड है कि कुछ भी नहीं सुझता । आदमी बस दई दई कर रहा है । सूरज देव से प्रार्थना कर रहा है कि दर्शन दे दीजिए । ठंड के मारे पशु पक्षी आदमी सारे जीव बस किसी तरह चल पा रहे हैं । ठंडी के मारे सारे काम-धाम ठप्प पड़े हैं जो जहां है बस वहीं पड़ा है । कांप रहा है या कहीं किसी कोने में दुबक कर बैठा है । ठंडी हवाएं, गलन अपना ही राज चला रही हैं । इनके आगे किसी की नहीं चलती । ठंड का हमला सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्गो पर होता है । इन्हें इस मौसम में बाहर निकलने से बचना चाहिए । पर ये भी कहां मानते - दांत किटकिटकिटाते निकल ही जाते । कोई कितना भी रोकें टोके ये तो निकलेंगे । ऐसे में बस एक ही उपाय बचता है कि अलाव जलाकर उसके किनारे बैठ जाया जाएं । आग और बातों की गर्मी आती रहती है । अलाव की अपनी ही दुनिया है । वहां हर कोई ठहर जाता है । जो अलाव का आनंद नहीं लिया है वह थोड़ी दूरी से अलाव की गर्माहट लेता है । आग और धुआं मिलकर इतना माहौल बना देते हैं कि आसपास के लोग आप से आप आ जाते हैं । अलाव के किनारे लोगबाग बैठ जाते हैं तो अपनी अपनी विशेषज्ञता अपनी अपनी दुनिया की कहानी लेकर आते हैं । यहां बराबर से यही लगता है कि यह कहानी बस इन्हीं के पास है । इसके अलावा संसार में कहीं भी और कुछ नहीं है । पूरे संसार की कथा अलाव के रस में पकती रहती है । यहां कथाएं आंच और धुएं पर पक कर आती हैं । यहां सुनी कथाएं हर तरह की समस्या का समाधान भी बताती हैं । यहां जो समस्या उठती है उसका समाधान भी यहीं पर हो जाता है । अलाव पर बैठकर अल्पज्ञानी भी ज्ञान से भरी बातें विशेषज्ञता के साथ करता है । वहीं जब पके अनुभव का ज्ञानी बात करता है तो उसकी बात का आनंद ही अलग हो जाता है । यहां बातों को, सुने गये संसार को जीवन रस में घोलकर जीते रहते हैं । यहां पर बातों की , कथा की दुनिया ऐसे चलती है कि एक कोई कथा , कोई शब्द, कोई मुहावरा या कोई लोक ज्ञान सुनाता है कि दूसरा तुरंत उससे आगे का ज्ञान देने लगता है । इस बात को हमारे यहां ऐसे कहते हैं । जाड़े में जो अलाव जलती है वह बातों के भंडार के साथ साथ अपने आसपास की दुनिया को लेकर चलती है । अपने पूरे वैभव के साथ कथारस को लेकर ऐसे आते हैं कि इसके आगे कोई और ज्ञान नहीं है । यहां यह भी हो सकता है कि मुमफली, आलु , शकरकंद को कैसे भुनकर या सेंककर खाते हैं । यह बात जरूर है कि जो लोग गांव में नहीं रहे या सहज जिंदगी को नहीं जीते वे इस आनंद से बंचित ही रह जाते हैं और दूर से कुड़कुड़ाते रहते हैं । हो सकता है कि आपको अलाव में मुमफली सेंकना न आता हो पर चिंता करने की जरूरत नहीं है । अलाव के आसपास सहज ज्ञान परंपरा चलती है । यहां सिद्ध ज्ञान परंपरा के लोग इस तरह जुड़ते जाते हैं कि वे इस बात को भी समझते हैं कि लम्बे समय तक आग को कैसे जिंदा रखना है तो बातों को कैसे विस्तार देना है तो आग में कैसे क्या भुनना है । यहां खाद्य पदार्थ को सेंककर खाने का आनंद ही अलग है । इस जाड़े में, हाड़ कंपाती ठंड में आखिर कब तक रजाई और कम्बल में घुसे रहोगे ? कब तक हीटर , ब्लोअर के आगे रहोगे ? बाहर तो आना ही पड़ेगा - काम-धाम करना ही पड़ेगा । फिर अलाव की दुनिया और अलाव की बातों को तो जीना ही पड़ेगा । हवाएं चल रही हैं और इस तरह की डंडी लहर लिए कि हाड़ को कंपा देने के लिए काफी है । ठंडी हवाओं के बातों की गर्माहट के साथ अलाव की आग जीवन का जीवंत आनंद बन जाती है । इस आग के आगे सब अपने अपने संस्मरण सुनाते रहते हैं । सबके पास कोई न कोई कथा होती है और उस कथा के साथ सुनाने का अलग ही अंदाज नया अनुभव बन जाता है । इस बीच तीखी हवाएं ठंड को सीधे हाड़ मज्जा तक पहुंचा देती है । आदमी ऐसे कांपता है कि पूछो मत । यहां अपने को बचा लेना काफी होता है । बर्फीली हवाओं के बीच अपने को आखिर कैसे सहेजें ? कहां से लाएं गर्माहट कहां से जीवन की उर्जा लायी जाएं ? ये सारे प्रश्न तभी तक होते हैं जब तक आग जली नहीं होती। आग जलते ही सब गायब हो जाता है । आग कोहरा और ठंड से राहत देने के लिए अपने पास रोक ही लेता है । चारों तरफ... घना कोहरा छाया है । कहीं कुछ दिखाई नहीं देता । जो जहां है वहीं दुबका पड़ा है । सभी के पास कहने और सुनने के लिए बस एक ही बात है कि क्या करें ठंड का ...ठंड तो पड़ रही है । सड़क पर निकल रहे हैं तो कुछ दिखाई नहीं देता । घर में भी कब तक दुबक कर बैठे रहे और दांत किटकिटकिटाते कब तक ठंड ठंड करते रहे। यह समय कुछ न कुछ करते रहने का है । जब तक कुछ करते हैं तो ठंड की ओर ध्यान नहीं जाता । यदि आप खाली बैठ गये तो ठंड की मार डालने के लिए ही तैयार हो जाएं । ठंडी हवाओं से अपना बचाव तभी कर सकते हैं जब आसपास अलाव जल रहा हो और इस अलाव के साथ आप सहज होकर संसार को समझने और जीने की कला जानते हों तो यह अलाव ठंडी के दिनों में जीवन का सामाजिक और जीवंत केंद्र बन जाता है ।

 

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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