ममता 'मंजुला'
हसीं चाँद कितना सितारों से पूछो।
बहारों का आलम हवाओं से पूछो।
जो सागर से मिलने चली उस नदी की,
तड़प और रवानी पहाड़ों से पूछो।
मुहब्बत ख़ला भी मुहब्बत बला भी,
मुहब्बत शिफ़ा भी दुआओं से पूछो।
वो आगोश में क्यों छुपा चाँद लेती,
ये राज़ ए वफ़ा उन घटाओं से पूछो।
ये रोती हैं कितना बिछड़कर के उनसे,
छलकती हुई इन निग़ाहों से पूछो।
जो भाई से भाई के दिल तक खिंची हैं,
गिरेंगी वो कैसे दिवारों से पूछो।
यूँ यादों में उसकी तेरे साथ 'ममता'
ये कब तक जलेंगे चरागों से पूछो।
1 टिप्पणी:
शानदार ममता जी। उर्दू लफ्जों पर आपकी शानदार पकड़ है। आपकों बहुत बहुत बधाई हो।
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