बुधवार, 27 दिसंबर 2023

पूर्वी राजस्थान के हेला ख्याल लोक कला पर आधारित आलेख- नरेन्द्र कुमार जाट, सीनियर फेलो


 नरेन्द्र कुमार जाट,  सीनियर फेलो

 (Centre for Cultural Resources and training)

 CCRT


पूर्वी राजस्थान के हेला ख्याल लोक कला पर आधारित आलेख

नरेन्द्र कुमार जाट,  सीनियर फेलो

(Center for Cultural Resources and training) CCRT

 

पूर्वी राजस्थान में हेला ख्याल लोक कला एक अनूठी गायन शैली रही है और परम्परानुसार लोक कला गायन पद्धति काफी प्रचलित रही है। इस पद्धति को बहुत ही सधे तरीके से व्यंग्य में समकालीन सामाजिक, आर्थिक, पौराणिक ,राजनैतिक परिस्थितियों पर कटाक्ष करने में इस्तेमाल किया जाता रहा है। पूर्वी राजस्थान के दौसा,सवाईमाधोपुर,भरतपुर और करोली के ग्रामीण लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय हेला ख्याल गायक इसके बाशिंदों के जिन्दगी के प्रति न खत्म होने वाले उनके जज्बे व जोश को बयां करते हैं। जो उनकी ग्राम जीवन शैली में आस के साथ गुथी हुई पोषित करती है।

स्थानीय हेला ख्याल के कलाकारों एवं ग्रामों में भ्रमण के दौरान बने विचारों के मुख्य अंश शामिल कर रहा हूँ, जो मेरे शोध कार्य का हिस्सा बना और मेरे कार्यों के लिए आधार भूमि बना। इस  शोध में  हेला ख्याल को लेकर कई पहलू मेरे सामने आयें। जिन्होने मेरे पूर्व के हेला ख्याल ज्ञान को चुनौती भी दी एवं नए रास्ते भी खोले। हेला ख्याल के विविध मुद्दों पर सामूहिक विमर्श किया गया। शोध के विविध चरणों में विविध व्यक्तियों से रूबरू होना एवं इनके नितांत व्यक्तिगत अनुभवों को जानने समझने और इस शोध में शामिल करने का अवसर मिला।

हेला ख्याल संगीत दंगल ने गौरवशाली परम्परा के समकक्ष शायद ही किसी लोक कला ने इतनी प्रसिद्धि पायी हो। चारों जिलों के साँस्कृतिक संगम का यह महाकुम्भ है। हेला ख्याल राजस्थान के पूर्वी जिले दौसा, भरतपुर, करौली और सवाईमाधोपुर का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ठेठ ग्रामीण पृष्ठभूमि के आम इंसान तात्कालीन राजनैतिक, साँस्कृतिक एवं धार्मिक उपलब्धियों, चिन्ताओं और समस्याओं पर स्वलिखित गायकी इस तरह पेश करते है कि महिनों तक चर्चा का विषय बन जाते है। इस विधा को जीवन्त रखने, आगे बढ़ाने एवं राष्ट्रीय व अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर नई ऊँचाइयाँ देने मे अनेक विभूतियों की महति योगदान रहा है। इसमें हजारीलाल, घनश्याम पंडित, कल्याण प्रसाद मिश्र, राजेन्द्र प्रसाद जैन (बैनाडा), शम्भू चौबे, रामरूप मिश्र, अनिल बैनाडा, शंकरलाल पार्षद, हरिनारायण घमण्डिया,भंवरसिंह, प्रभाती लाल सेकेट्री, गोपाल पण्डित,गोविन्दसिंह, जुगल सिंह, प्रधुम्नन,परमाल,करण सिंह, सोन, गुटेरी व् ज्ञान सिंह  इत्यादि प्रमुख रहे है। लगभग 300 साल से चले आ रहे इस संगीत की इस अनोखे आयोजन को एकदम सही-सही देखने, समझने और महसूस करने के लिए इसे सुनने और आत्मसात करने की जरूरत होती है। रचनाकार चाहे कितने ही भारी एवं बड़े शब्दों और भाषा का प्रयोग करले इस अनुभूति को वास्तविक रूप मे प्रकट करना बेहद मुश्किल है। इसके लिए तो उसे स्वंय एक बार लालसोट की धरा पर आकर इस आयोजन से रूबरू होना ही पड़ेगा।

दौसा जिले के उपखण्ड लालसोट में हेला ख्याल संगीत दंगल 1967 से पहले शहर के झरण्डा चौक पर आयोजित होता था, परन्तु वहाँ स्थान अभाव के चलते अब जवाहर सर्किल आयोजित किया जाने लगा। जवाहर सर्किल पर छत्तीस घंटे से ज्यादा समय तक अनवरत चलने वाले लोक संगीत के इस महा मुकाबले की लोकप्रियता का आलम यह है कि शहर में तीन दिन तक अघोषित कर्फ्यू सा माहौल रहता है। पूरे शहर की जिन्दगी जवाहर सर्किल तक ही सिमट कर रह जाती है। जब आप पहली बार हेला ख्याल संगीत को सुनने के लिए जाते है तो शुरू में आपको समझने मे दिक्कतें आयेगी। पर एक बार जब आप गायक मंडली के सुर और शब्दो को पकड़़ लेते है, तो बरबस ही मंत्रमुग्ध हो जाते है और अनायास ही आपके मुँह से वाह! वाह ! की आवाज निकलने लग जाती है एवं आपके हाथ बार-बार ताली बजाने को मजबूर हो जाते है। संगीत हेला ख्याल विधा में ग्रामीण आशु कवि लोक गायकी के माध्यम से स्थानीय सोच, समझ एवं अनुभव को निष्कर्ष के रूप में व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात जनमानस के सामने रखते हैं। अब बदलते परिवेश में न केवल देश के वतर्मान हालात पर बल्कि स्थानीय नेताओं के कच्चे चिठ्ठे खोलकर उनका बेवाक चित्रण किया जाता है जैसे -अरज म्हारी सुण लीज्यो- बुद्धि नेताओं कू दीज्यो- घट में भक्ति भर दीज्यो, कुछ ऐसी ही मूल भावना से ओत-प्रोत होता है

हेला ख्याल की उत्पत्ति व् इतिहास  - हेला ख्याल की उत्पति व इतिहास को लेकर स्थानीय बुजुर्ग, लोक गायक कलाकारो के विविध मत रहे है।

हेला ख्याल के बारे में बताया कि रजवाडा काल में यह हेला ख्याल तेल के मशालो के बीच होता था। इसके लिए तात्कालीन रजवाड़े तेल उपलब्ध कराते थे। मशालची तैनात रहते थे, मीठे तेल की जलती मशालें के बीच लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे।  (हीरा सिंह जादौन गाँव -जाट की सराय हिण्डौन)

अमीर खुसरो की रचनाओं का इधर -उधर से संकलित करके हेला ख्याल को अध्यायत्मिकता में सुनाते थे। लगभग 500 सौ साल पहले की बात है, माघ माह में बसन्त पंचवी से हेला ख्याल गाने की शुरुआत  हुई थी। दूसरी बात यह बतायी कि आँरंगजेब बादशाह काल में हवेली संगीत था, क्योकि उस समय लोग हवेली का दरवाजा बन्द करके हेला ख्याल गाते थे, उनकी आवाज को कोई सुन ना ले। ये अपनी शौक की पूर्ति करने के लिए गाते थे। उस समय तीन ताल की चीज गाते थे, ये हवेली संगीत है। प्रत्येक क्षेत्र की अलग-अलग गायकी होती थी। हमारी गायकी ग्वालियर घराने की रही है। देश में पाँच राज घराने थे जो इस प्रकार थे- लखनऊ, बनारस, जयपुर, आगरा, ग्वालियर। हमारे पुरखां ने हेला ख्याल गायन किया और हम भी हेला ख्याल गायन कर रहे है ये हमे पैतृक धरोधर के रूप में मिली है। उनका कहना था कि हमने यह सुना था कि हेला ख्याल मुगल काल में आया था, उससे पहले ध्रुपद था। (घनश्याम  जॉगिड- कैलाश नगर मण्डावरा  )

गोविन्द सिंह गाँव -क्यारदा खुर्द हेला ख्याल कम साँस्कृतिक संगीत में क्लासिकल गायक कलाकार अधिक है। गोविन्द सिंह जी के अधिकांशतः परिवार के व्यक्तियो को क्लासिकल व हेला ख्याल गायन के बहुत शौकीन रहे है। मैने उनसे हेला ख्याल के बारे में जानने व समझने को लेकर संपूर्ण यात्रा को लेकर बातचीत की। जिसमे इसकी उत्पत्ति से लेकर वर्तमान में हेला ख्याल के भविष्य को समझने के बारे में साक्षात्कार लिया गया। उनके अनुसार हेला ख्याल के बारे में बताये गये विचार इस प्रकार है। हेला ख्याल क्या है ? यानि क्या होता है - अपनी -अपनी मती के अनुसार अपने ख्याल प्रस्तुत करना ही, हेला ख्याल है, इसमे दो हिस्से की कथा होती है दो हिस्से के अपने ख्याल होते है, जैसे तुकबन्दी बैठारना होता है। एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है, कोई कथा में नही ’ धोबी ते ना तेली घाट वा पे मोगरी वा पै लाठ। हेला ख्याल में पूरी कथा नही होती है। हेला ख्याल में घर की बात, समाज की बातो को कवि फिट करके तुकबन्दी करता है। कवि कोई कथा की रचना करता है तो उसमे समाज की बातो की तुकबन्दी फिट बैठाता है। जैसे कवि प्रभाती ने रूकमणी पर हेला ख्याल बनाया था कि इधर शिशुपाल को निमन्त्रण दे दिया उधर रूकमणी को दे दिया, यानि कवि ने वहाँ की पब्लिक का रूझान दे दिया कि जैसे उन्होने लिखा कि - राजा विचारो का जाने, बीज बोआयो गैबी नाई को, खाबै पर मरे जात, खाबौ सब बैसरमाई को ,नैक -नैक से काम को धर रूपिया दूब बधाई को। कवि ने इसमें अपने भावो को प्रगट कर दिये है। कवि ने लिख दिया कि नगरवासी उपरोक्त राजा विचारो का जानें पर बातचीत कर रहे थे, जबकि चाहे नगरवासी बातचीत नही कर रहे। इस प्रकार से रचना की जाती है।

हेला ख्याल दंगल का गढ़ लालसोट से कुछ तथ्य जुटाए गए - लालसोट हेला ख्याल दंगल का एक प्रमुख केन्द्र बना। 25 मार्च 2001 की राजस्थान पत्रिका अखबार की रिपोर्ट बताती है कि ‘‘253 वाँ हेलाख्याल दंगल 28 मार्च से आयोजित करने की तैयारियाँ जोरशोर से चल रही है।’’ इस हिसाब से देखें तो 2023 में लालसोट में भरने वाले हेलाख्याल दंगल को 253 वर्ष हो जाएँगे। हेलाख्याल के इतिहास के संदर्भ में यह एक गौरतलब तथ्य है।

24 मार्च 1998 की द्वारकेश भारद्वाज द्वारा लिखी एक अखबार की रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘‘पहले यह यह कार्यक्रम सप्ताह-सप्ताह चलता था। अब छत्तीस घण्टे चलता है।...1962 से इसकी प्रस्तुति में माड़ (करौली-सवाईमाधोपुर) से हेलाख्याल का वर्तमान रूप आया। पहले गोविन्दगिरी का तीन बास का अखाड़ा व घाटेश्वर जी का चार बास का अखाड़ा ही प्रमुख प्रस्तोता थे। इन अखाड़ों की प्रमुख जोठों में रोशन तेली मुख्य गायक थे।...सन् 1967 के पूर्व आशुरचित करारे सवाल-जवाब होते थे। 66 वर्षीय शंभूलाल चौबे, 73 वर्षीय रघुनाथ भट्ट, 70 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी व लोक कवि हजारी लाल ग्रामीण आज इस कार्यक्रम को नेतृत्व देकर जिन्दा रखे हुए है।

...उक्त चारों बताते हैं कि आजादी से पूर्व इस अनूठे कार्यक्रम की गायकी की विषयवस्तु बाल-विवाह, नुक्ता प्रथा, पर्दाप्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ रहती थीं। लेकिन 1967 की तब्दीली से राजनीति, शासन की विफलता,जन-जन में जागरूकता , अभियोग, कालचक्र की मार जैसे समसामयिक विषय की बहुलता स्थान पाने लगी है।...जयपुर रियासत में तहसील में इस आयोजन के लिए विशेष मद था। अब नगरपालिका व्यापारियों के सहयोग से सारा खर्च उठाती है।’’

हेलाख्याल के राग में परिवर्तन के संदर्भ में एक अन्य अखबार की रिपोर्ट में एक बुजुर्ग द्वारा बतायी यह बात गौरतलब है कि, ‘‘प्रारंभ में यह आयोजन शुद्ध शास्त्रीय संगीत पर आधारित था, मगर शास्त्रीय संगीत के समझदार श्रोता कम होने के कारण अब इसका स्वरूप शास्त्रीय, उपशास्त्रीय व सुगम तथा लोकसंगीत में परिवर्तित हो गया है।’’ जब शास्त्रीय खयाल लोक संगीत में ढलकर हेलाख्याल हो गए तो गाँवों में दंगल भरने लगे।

लोक कवि स्व. श्री हजारी लाल - हेला ख्याल संगीत दंगल केवल लोकानुरंजन करने के साथ-साथ लोक गायक कलाकार पार्टी ने समय-समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक समरसता, देश की रक्षा के बारे में भी संदेश देते रहे है। लोक कवि स्व. श्री हजारी लाल द्वारा सुनाई गई हेला ख्याल रचना -गणगौर को पूजे वर हीत कन्या कुंआरी, चुडला हेतु सुवागण नारी, देश हित पूजै दास हजारी, वही आई रे गणगौर पर बेबाक होकर रचना की प्रस्तुति की।

हेला ख्याल का स्वरूप -मैंने लोक कलाकार से साक्षात्कार करके जाना गया कि हेला ख्याल गायन का स्वरूप कैसा था ? उन्होने बताया कि पहले हेला ख्याल गायन का स्वरूप बहुत छोटा था। हेला ख्याल के बारे में बताया कि हेला ख्याल के दो प्रकार है, पहला बडा ख्याल और दूसरा छोटा ख्याल। शुरुआत में बडा ख्याल ही गाया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे श्रोताओं को ध्यान में रखते हुए अब छोटा ख्याल गाने लग गये। बडा ख्याल बिलम्बित लय में चलता है।

दो से चार लाईन के हेला ख्याल गाया करते थे। इन दो -चार लाईनो को बहुत उँची आवाज में गाते थे, उतार-चढाव बहुत होता था, आवाज को बहुत खींचना पड़ता था। इन दो -चार लाईनां को ऊपर -नीचे उच्च स्वर के साथ गाते थे। पहले लोग पुराने हेला ख्याल गाते थे, जिसे हम होरी गायन कहते थे। पुराने हेला ख्याल उदाहरण 1 : ...नही माने यशोदा तेरो लाल-लाल, रंग रस की, रंग रस की होरी खेल रहयो, ओ रंग रस की होरी खेल रहयो, अचक- बचक मेरी बैया मरोरी, मोतिन की लर टोरी श्याम  , घूँघट की झाँकी खोल रहयो...

उदाहरण 2:अरे रे प्रभु नैया... कुँवर कन्हैया, पडू तोरे पईया, तू ही है सब जग को खिबैया, तो में मात तो में हो भैया, पार लगा दे प्रभु नैया, पार लगा दे प्रभु नैया -2  अरे देश...

हेला में झील देते है जिसमे हे हेssss की ध्वनि होती है, इसका भी समय होता है। जिस अक्षर से शुरुआत  होती है, तो झील का अन्त भी वही होता है। क पर झील होती है तो क पर ही झील का अन्त होगा।

उदाहरण - करना पडत मोह, करना पडत मोह, श्याम  सुन्दर पै, एक कह गई पलछिन, अरे ताकत होगी, सुना-सूना मोह नन्दन में, पडत मोय, अरे धीरज नही बधे मेरे दिल को। इस ख्याल की कड़ी का अन्त क पर ही आयेगा। (माँगी लाल, हरगुन, श्याम  सिंह, हरज्ञान हवालदार व कृपाल सिंह गाँव –चन्दीला)

हेला ख्याल रचनाओं का श्रोताओं पर प्रभाव - हेला ख्याल जैसे - हेला की रचनाओं व गायक कलाकार के प्रभावी ढंग से गायन का प्रभाव श्रोताओं पर छोड़ता है। शुरुआत  में पौराणिक,धार्मिक ,सामाजिक कथाओं पर आधारित रचनाओं का अपना अलग तरह का प्रभाव था। दूसरा कटाक्ष या कटामनि गाने का अलग तरह का प्रभाव होता है और तीसरा राजनीति पर व्यंग करने का अलग प्रभाव होता है। श्रोता इन सभी  को आधार बनाते हुए निर्णय लेते है कि अमुख रचना जो गायी गई है बहुत ही प्रभावी और अपने जीवन से जुडे मुद्दे को लेकर रचना की है। उस रचना की वाह ! वाह होने लग जाती है। इससे एक साँस्कृतिक रूझान पैदा होता है और अपनी साँस्कृतिक पहचान के पात्रो से साथ जुड़ता है। क्योंकि इसकी हेला ख्याल की संरचना मूल रूप से देशज और स्थानीय भाषा में होती है। एक हेला ख्याल में इस प्रकार का वाक्य है कि ...डकराय, बछडा बिन गईया... यहाँ देखेंगे पशुओ का भी रूपक मानवीकरण के रूप में उपस्थित हो रहा है। जिससे स्थानीय श्रोता अपने देशज शैली में इन रचनाओं के रूपकों से जुडते हैं।

हेला ख्याल ढांचा व् सरंचना – हेला ख्याल के ढांचे को इस प्रकार से देख सकते है – हेला ख्याल की रचना में  ‘‘दोहा, पेड़, कली, चढाव, उतार और अन्त में फिराव होता है । एक मण्डली में प्रायः 50 से 70 सदस्य लोक कलाकार होते है, जिसमे एक मास्टर होता है , जिसके निर्देशन में पूरी जोठ कार्य करती है । हेला ख्याल दंगल में आमंत्रित जोठे इस प्रकार से देखे तो 10 से 15 गाँवो की जोठ/गायक पार्टियो को बुलाते है। अगर इसके वाद्य यंत्रो को देखते है तो – नोबत/बम्ब ,नगाडी, मंजीरा, हारमोनियम आदि का प्रयोग करते हैं।

हेला ख्याल गायन प्रक्रिया  - ... शुरुआत में हेला ख्याल लोक कलाकार सभी वाद्ययंत्रों के साथ दंगल में आते है और अपने –अपने वाद्ययंत्रों की धुन मिलाते है, ये धुन लगभग 5 -7 मिनट चलती है। सबसे पहले भवानी पूजी जाती है। इसमें यहाँ यह बताना दिलचस्प होगा कि भवानी पूजन के दौरान किया जाने वाला नृत्य बहुत सुखद और सुकून देने वाला होता है। भवानी के बाद उसके बाद हेला ख्याल मास्टर दोहे  बोलता है जो हेला ख्याल कथा से सम्बन्धित है, शुरूआत पक्की राग से करते है और हेला ख्याल ही आधार भूमि तैयार करते है यानि जिसे पेड़ कहा जाता है, जैसे – लाल भाग में मोय पायो , कौन को ये कुंवर कन्हैया ,आज नाग विषियी ने खायो , लाल भाग में मोय पायो ! फिर मण्डली के सदस्य दूर-दूर तक फैले पाण्डाल में कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं ,पाण्डाल में फैली हुई टोली बारी बारी से दोनों दिशाओं के श्रोताओं से रूबरू हो अपनी अनूठी रचना पेश करती है।, उसके बाद में कली  बोलते है, कली में चढाव आता है, इसके साथ-साथ उतार आता है और अन्त में फिराव आता है, जो कि बहुत जल्दी-जल्दी गाया जाता है। मेडिया व झील देने वाले गायक सभी वाद्ययन्त्रां का प्रयोग करते हैं और नाचने भी लग जाते है, श्रोतागण भी झूमने लग जाते हैं।

हेला ख्याल के बारे में कुछ संक्षिप्त बातें -

1.    विविध रसो में हेला ख्याल की रचना की जाती है, जैसे - वीर रस, करुणा रस, मछला, अभिमन्यु, मौरध्यज व कृष्ण सुदामा, राजा हरिश्चंद आदि की कथा।

2.   हेला ख्याल के प्रत्येक अन्तरा की श्रोताओं के लिए दो बार पुनरावृति की जाती है।

3.   हेला ख्याल के फिराब को सुनते ही ज्ञात हो जाता है कि हेला ख्याल आधा या समापन की ओर है।

4.   लालसोट क्षेत्र के हेला ख्याल रचनाकार काफी विस्तृत रचना करते है। जो लगभग 2 घंटे गाया जाता है।

5.   जगरोटी क्षेत्र के हेला ख्याल रचनाकार संक्षिप्त में रचना करते है, जो को 1 घंटे के आस-पास होता है। संक्षिप्त समय में पूरी कथा को अभिव्यक्ति कर देते है।

6.   रचनाकार हेला ख्याल गायक भी हो सकता है और कोई दूसरा भी रचनाकार हो सकता है।

7.   क्षेत्र विशेष  की रचनाओं में स्थानीय भाषा का अन्तर देखा जा सकता है।

8.   हेला ख्याल को भीम पलासी और रागदरवारी समय के अनुसार इनको पिरोया जाता रहा है।

हेला ख्याल की रचनाओं का आधार  - हेला ख्याल की रचनाओ के कई आधार है - पौराणिक, धार्मिक ग्रन्थ रामायण, महाभारत, गीता, राजनैतिक, व्यंग्य, भ्रष्टाचार से संबन्धित, बाल विवाह, मृत्युभोज, तात्कालिक मुद्दे, उपदेश रूपी ज्ञान, समाज सुधारक वाले आदि मुद्दो पर रचना करते है। हेला ख्याल की अधिकाश; रचनाऐ पौराणिक कथाओं पर की गई।

हेला ख्याल दंगल आयोजन करवाने में चन्दा उगाने व व्यवस्था की सामूहिक प्रक्रिया :

पहले की परम्परा यह थी, हेला ख्याल पार्टी अपनी बैलगाडी में बम्ब/नोबत, नगाडी, ढोलक, मजीरा आदि वाद्य यन्त्रो को रखकर हेला ख्याल दंगल तक ले जाते थे। अपना खाना भी घर से साथ लेकर जाते थे। अपना खर्चा स्वंय करते थे। हेला ख्याल आयोजक कर्ता गाँव पर किसी भी प्रकार का कोई आर्थिक भार नही हुआ करता था। न्यूनतम लागत में दंगल का आयोजन हो जाता था। लेकिन वर्तमान में हेला ख्याल आयोजक गाँव बेहतर से बेहतर खाने-पीने की व्यवस्था करते है। अपने गाँव की पोजिशन व नाम का उँचा करने के लिए अच्छी रसोई व बैठक व्यवस्था करते है। हेला ख्याल दंगल आयोजन करने में कई लाख रूपये खर्च करते किये जाते है। खाना-पीना, हुक्का-पानी, हेला ख्याल पार्टी की विदाई के समय कुछ नगद व कुछ उपहार के रूप में देते है। इससे बहुत सारा पैसा खर्च करना पडता है। इस प्रकार के खर्चा करने से आयोजक पर आर्थिक भार पड जाता है। जो समाज के उत्थान के लिए यह ठीक नही है। इसके कारण हेला ख्याल दंगल कार्यक्रम बहुत कम होने लग गये है। हेला ख्याल पार्टी के पास कुछ अलग फण्ड तो होता नही है, कुछ भामाशाह  के माध्यम से, चन्दा करके, सरंपच से कुछ आर्थिक मदद ले लेते है। गाँव के पंच पटेल तय करते है कि हेला ख्याल दंगल में प्रस्तावित कितना खर्चा आयेगा। गाँव के पंच पटेल खर्चा को देखते हुये तय करते है कितनी राशी व् अनाज प्रति घर लेनी होगी। इस प्रकार चन्दा एकत्रित करते है। कुछ लोगो की हेसियत के अनुसार भी पैसा देने की बोल देते है। गाँव में कुछ गरीब परिवार भी रहते है, अगर अमुख परिवार की देने की हेसियत नही होती है, तो उनसे पैसा नही लेते है। हेला ख्याल के आयोजन करवाने में कोई परोक्ष रूप से कोई भी आर्थिक लाभ नही मिलता है। इसके माध्यम से समाज के लोगो का मान सम्मान हो जाता है, ये हम सभी समाज के लोगो का मान सम्मान के लिए करते है। हम अपना व्यक्तिगत खर्चा करते है, हेला ख्याल दंगल में कुछ विदाई के रूप में जो पैसा मिलता है उसका उपयोग वाद्य यन्त्रो की सर्विस कराना व नये खरीदने में उस पैसा का उपयोग करते है। अगर पैसा कम पड़ गया तो हम अपनी जेब से खर्चा करते है।

हेला ख्याल संगीत दंगल से सामाजिक फायदा क्या है ? उन्होने बताया कि हेला ख्याल से समाज के द्वारा किया गया मान सम्मान सबसे बडा फायदा है, आपसी मेल मिलाप, मिलना-जुलना हो जाता है। समाज की सेवा करने का मौका मिल जाता है। पूरा समाज एक साथ एकत्रित हो जाता है, मन को खुशी के साथ सभी लोगो में बहुत उत्साह व उल्लास देखा जाता है। गाँव में इस तरह के आयोजन से मिलना-जुलना के साथ अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों की सगाई संबन्ध को लेकर बातचीत होने लग जाती है। सभी को बहुत खुशी होती है, श्रोताओ की सेवा करने में ग्रामवासी के प्रत्येक सदस्य अपना सौभाग्य समझता है। मानव सेवा करने से ही आयोजको को आत्म संन्तुष्टि मिलती है और आपसी संवाद करने से प्रेम की गंगा बहने लगती है । कुछ श्रोताओं का मनोरंजन के लिए राजनीति कटाक्ष/व्यंग/कटामणी गाते थे कि दुनिया मस्त हो जाये ?  पब्लिक की ख्याईस क्या, ये देखी जाती थी, उसके अनुसार हेला ख्याल की रचनाओं  को प्रस्तुत किया जाता है।

समय के अनुसार हेला ख्याल रचनाओं की प्रस्तुतियाँ में बदलाव-हेला ख्याल दंगल में किस प्रकार की रचनाओं को सुनाया जा रहा है, उसके अनुसार भी आगामी हेला ख्याल को सुनाया जाता है। जैसे अब चुनावों का/वोटो का समय चल रहा है तो हेला ख्याल पार्टी राजनीति से प्रभावित होकर हेला ख्याल गाये जाते है। अगर दो देशो के मध्य युद्ध चल रहा या कोई ज्वलंत मुद्दा है उसके आधार पर रचना करते है ।

हेला ख्याल की समकालीन चुनौतियाँ

1.    आज के युवाओं की हेला ख्याल लोक गायन में रूचि नही है। अधिकाश: माता-पिता अपने बच्चों को नौकरी के लिए तैयारी में लगे हुए है। जब हम हमारे बच्चे को उच्च शिक्षा दिला रहे है, तो दूसरो से कैसे कहे कि आप अपने बच्चो को हेला ख्याल गायन के लिए भेज दो।

2.   टी.वी और मोबाईल पर सभी तरह के कार्यक्रम प्रसारित होने के कारण भी लोगो को गायन में रूचि नही रही।

3.   पहले मनोरंजन के साधनो का अभाव था, तो लोग हेला ख्याल गाते थे। आज मनोरंजन के साधन बहुत हो गये। इसलिए लोग गायन की प्रक्टिस के लिए एकत्रित नही होते है।

4.   हेला ख्याल गायन धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। पहले की तरह हेला ख्याल दंगलो का आयोजन नही होता है।

5.   हेला ख्याल रचनाकार अब पहले की तरह रचना नही कर रहे है।

6.   आपसी वेमनस्यता, कटुता के कारण हेला ख्याल गायन का विकास नही हो रहा है।

7.   हेला ख्याल कलाकार ही अपनी जेब से खर्चा करता है, उसको कोई आर्थिक लाभ नही मिलता है।

8.   वाद्य यन्त्र खराब हो गया तो उसकी सर्विस कराने के लिए पार्टी के पास फण्ड नही होता है।

9.   वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को नौकरी की तैयारी कराने में लगा हुआ है, इसलिए वर्तमान में बुर्जुग लोग ही हेला ख्याल गा रहे है।

10.लोक गायन को आजकल लोग बाबाजियों का राग/गायन समझते है।

11.  एकल गायकी को श्रोता अधिक पंसन्द करते है, इसमें पैसा भी ज्यादा मिलता है। जैसे - एक लोक गायक कलाकार एक दिन में 10 हजार रूपये कमा लेता है। सामूहिक गायन में कुछ नही मिलता है।

12. गाँव में हेला ख्याल गायन आयोजन के लिए जगह का भी अभाव रहता है। तीन-तीन पाण्डाल की जरूरत पडती है। एक दंगल आयोजन के लिए, रसोई बनाने के लिए, खाना खिलाने के लिए। श्रोता बहुत आते है, आजकल खेतो में हेला ख्याल दंगल आयोजन किया जाता है।

13. हेला ख्याल रियाज/अभ्यास के लिए गायक कलाकारो को एकत्रित करना बडी चुनौती हैं। कुछ दशक पहले लोग दिनभर खेतीवाडी का कार्य करने के बाद सायःकाल के समय में लोग एक जगह रियाज के लिए बैठते थे और देर रात तक हेला ख्याल गाने का अभ्यास करते थे।

14. वर्तमान में लोगो के पास समय नही है, लोग एक जगह बहुत मुश्किल से बैठ पाते है, बेहतर गायन के अभ्यास/रियाज के लिए एक जगह बैठना आवश्यक है, क्योकि ये सामूहिक गायन है।

15. हेला ख्याल गाने वाले लोगो की सख्या में कमी आ रही है।

16. हेला ख्याल का भविष्य बहुत खराब चल रहा है। बहुत से वयोवृद्ध गायक कलाकारों का देहान्त हो गया। अभी कुछ शेष बचे है उनकी भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है।

17. कुछ लोक गायक अब बूढे़ होते जा रहे है, युवा इससे जुड नही रहे है। हमें यह आभास हो रहा है कि एक दिन यह हेला ख्याल गायन इस क्षेत्र से विलुप्त हो जायेगा।

18. सभी हेला ख्याल पार्टियों के मास्टर व गायक कलाकार व मेडियाओं से किये साक्षात्कार के आधार पर विशेषताओें को संक्षिप्त में लिखा है:

सभी हेला ख्याल पार्टियों के मास्टर व गायक कलाकार व मेडियाओं से किये साक्षात्कार के आधार पर विशेषताओें को संक्षिप्त में लिखा है:

1.    सामाजिक समरसता बढ़ती है।

2.   सामूहिक गायन से प्रेम बढ़ता है।

3.   हेला ख्याल को श्रोता अधिक पसन्द करते है।

4.   पुरानी संस्कृति जीवन्त बनी रहे।

5.   हेला ख्याल की रचना/कथना बहुत सरल होती है और समझ में आ जाती है।

6.   समय, काल, परिस्थिति के अनुसार रचनाओं में बदलाव होता रहता है।

7.   सामाजिक, राजनैतिक, सामाजिक कुरूतिया, अंधविश्वास , ज्ञान विज्ञान,आदि पर रचनाऐं की जाती है।

8.   प्रत्येक कली/कड़ी में अलग-अलग सुर होते है, श्रोताओं को सुनने में आनन्द आता है।

9.   एक से अधिक स्वर होते है, विभिन्न प्रकार के स्वरो का मेल होता है।

10.विभिन्न प्रकार की धुनां व राग में गाये जाते है।

11.  हेला गायन शैली द्वारा सुनायी गई रचाना श्रोताओं के मन मस्तिष्क  मे सीधे प्रभाव छोड़ती है।

12. साँस्कृतिक संगीत का उपयोग किया जाता है।

13. ताल ठेका का भी ध्यान रखा जाता है।

14. विविध वाद्य यंन्त्रां का उपयोग किया जाता है।

15. नगाड़े इसी में बजते है, इसी में धौसा बजता है, यानि राजा षाही गायन।

16. हेला ख्याल गाने को दम/ताकत/ऊर्जा चाहिए। बिना ऊर्जा के हेला ख्याल गा नही सकते, लोक गायक कलाकार की आबाज बुलन्द होनी चाहिए। अगर ताकत नही और ताकत लगाकर गाने की कोषिष की तो अपने गले का पर्दा फटने की पूरी संभावना बन जाती है। आजकल लोगो के खान-पान शुद्ध व अच्छे नही रहे।

17. हेला ख्याल के षब्द की रचना एवं तुकबन्दी बहुत अच्छी होती है।

18. हेला ख्याल गायन व सुनने में रूचि पैदा हो गई, तो हेला ख्याल सुने बिना कभी छोड़ नही सकता।

19. हेला ख्याल सुनने के लिए एक बार व्यक्ति दंगल में आ गया, वह सुनने में इतनी रूचि पैदा हो जाती है कि जब दंगल का समापन होगा तब ही जायेगा।

20.               हेला ख्याल दंगल से सभी समुदाय के लोगो में समरसता, प्रेम, भाईचारा और प्रगाढ रिष्ते बनते है।

21. पौराणिक व धार्मिक कथाओ व तात्कालिक मुद्दो पर रचना होती है।

22.                हमारे समाज के अन्दर व्याप्त कुरितियों, अषिक्षा, महँगाई, सरकार की नीतियों के बारे में जानकारी मिलती है। राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रिय नीतियों के बारे में जानकारी एवं व्यंग्य के माध्यम से जागरूक करते है

23.                हेला ख्याल की झील में सार होता है।

24.                कोई व्यक्ति कभी नाराज भी हो जाता है तो उसको समझाकर ले आते है। इसमे प्रेम व मनोरंजन के खातिर लोग आते है।

25.                हेला ख्याल में स्वर, ताल और मात्राओं का मेल होता है।

26.                हेला ख्याल रचनाओं में श्रोताओं को भाँति-भाँति की रचना सुनने को मिलती है ,जो श्रोता को अच्छी लगती है उसको रूचि के साथ सुनते है।


नरेन्द्र कुमार जाट,  सीनियर फेलोशिप (Centre for Cultural Resources and training ) CCRT

पूर्वी राजस्थान की लोककला -हेला ख्याल गायक कलाकार है| हेला ख्याल लोककला रिसर्चर रहे है, लोक कला की विविध कलाओ को जानने के जिज्ञासु है| लोककलाओ पर आधारित विविध पत्र पत्रिकाओ में हेला ख्याल प्रकाशित हुए है |

गाँव -क्यारदा खुर्द , तहसील -हिंणडोन जिला -करौली

राजस्थान , पिन -322230

मोबाईल न 9784594492

 

 

 

 

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आपका लेख पढ़कर हेला ख्याल दंगल के बारे में बहुत अच्छी और सच्ची जानकारियां प्राप्त हुई।लेख की शैली सरल और बोधगम्य है।आलेख पढ़कर पाठक के मन हेला ख्याल दंगल को देखने की इच्छा प्रबल होती है।आपको एक अच्छे लेख के लिए ढ़ेर सारे बधाई।

Meva Ram Gurjar ने कहा…

हेला ख्याल को लोक गायन के बारे में अच्छी जानकारी दी गई है। एक अच्छे आलेख के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...