गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

|रिश्तों की उधेड़बुन|| - भानु प्रकाश रघुवंशी


 भानु प्रकाश रघुवंशी

|रिश्तों की उधेड़बुन||

 

कोटरों में इंतज़ार करते वो हरियल हैं पिता

जिनके चूज़े पंख मजबूत होते ही

उड़ जाते हैं कहीं उनसे दूर

फिर नहीं लौटते उस कोटर में

जहां हुआ जन्म, उगे पंख

भरी पहली उड़ान जहां से

 

पिता बच्चों को बच्चे ही समझते हैं

और चिंता करते हुए उनके सुख दुःख की

बने रहना चाहते हैं पिता ही

पर बेटे हमेशा बेटे नहीं रहते

वे पड़ोसी बनकर भी रहने लगते हैं

पिता के घर में

या चले जाते हैं दूसरे शहर, दूसरे देश

कभी तीज त्यौहार लौटते हैं घर

तो उतावले ही रहते हैं वापस जाने को

न पूछो तब भी बताते हुए अपनी व्यस्तता की वजह,

बचपन में सिखाया गया सेवाभाव

अबतक इतना ही बचा होता है उनके पास

कि मां के घुटनों में दर्द की बात सुनकर

झोले से निकालते हुए सस्ता सा वाम

ऐसे मलते हैं कि अब छूमंतर हो ही जायेगा

बरसों पुराना रोग

पिता के मोतियाबिंद ऑपरेशन के खर्चे की

बात करते हुए बताने लगते हैं

पत्नी की बीमारी के बारे में

बच्चे की आंखों पर चढ़े हुए चश्मे का नंबर

और ज्यादा बढ़ जाने के बारे में,

मंहगाई का रोना रोते हुए बताते हैं

अगले माह से पैसे न भेज पाने की लाचारी

स्वजनों की चिंता करते भागते हुए से लौटे पिता

अगर रोजीरोटी के लिए जाना भी पड़ा हो परदेस

पर किसी खास दिन,खास मौके पर

लौटने का वादा करके गये बेटे

पिताओं की तरह कभी न लौटे

बग़ैर बच्चों के आंगन रहा सूना सूना

और मन भी,आंगन जैसा

'अपना बेटा तो नहीं है ऐसा

कि बीत जायें छह सात बरस

और खबर भी न ले हमारी,

ज़रूर कोई मजबूरी रही होगी।'

बूढ़े मां-बाप,एक दूसरे को दिलासा देते हुए

एक बेटी भी न होने के लिए

रोते हैं अपने दुर्भाग्य पर।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...