प्रभु ने कहा
(एक अधूरी कविता...)
कितु प्रभु!
यह तो आपने
कहा ही नहीं गीता में
प्रिय पार्थ!
ईश्वर भी
सब कुछ नहीं कह सकता
किसी एक ही किताब में
वह निरंतर कहता रहता है
विभिन्न किताबों
विभिन्न भाषाओं में
किताबें सत्य नहीं होतीं
वे सत्य को देखने का
चश्मा भर होती हैं
प्रभु!
चश्मा तो फ़ारसी लफ़्ज़ है
नादान कौंतेय!
दुनिया की सारी भाषाएँ
मुझमें से ही सिरजती हैं
I can speak
In any language
Of the world
Or
I can express myself
Without any language
जी योगेश्वर!
किरीटी!
जो किताबों को सत्य
मानते हैं
वे सत्य तक कभी नहीं
पहुँच सकते
किताबें छपते ही
जड़ हो जाती हैं
और सत्य तो है
परम चैतन्य
किताबें साधन हैं
मात्र साधन
सत्य साध्य है
तो माधव!
आप कह रहे थे...
मैं कह रहा था...
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