1 परछाई
एक औरत
मापती है
अंतरिक्ष का विस्तार,
थामती है
मिग और बोईंग ,
दागती है
मिसाइलें ,
एवरेस्ट और
अंटार्टिका में
जोख़िम और
धैर्य का इम्तहान देती हैं।
अनुसंधानों
की दुनिया में लीन
भविष्य के
लिए स्वप्न बोती है ,
चमकती हैं
खेल के मैदानों में
तोड़ रहीं
हैं ग्लास सीलिंग्स,
बोर्डरूम
मे लेती हैं अहम फैसले....
जबकि कितनी
ही औरतें
देश और
दुनिया के
सर्वाधिक
ताकतवरों की सूची में,
निर्णयात्मक
भूमिकाओं में
स्थापित, प्रतिष्ठित हो चुकी हैं……..
इसी सदी
में
बहुत सारी
नवजात कन्याएँ
देख ही
नहीं पाती हैं
गर्भ से
बाहर की दुनिया ,
या मारी
जाती हैं बेकद्री से
दूध के
दांत गिरने से पहले ही।
हर रोज
निपटती हैं
गली
मोहल्ले के गुण्डे बदमाशों से
और बचती
फिरती हैं
कितने ही
सफेदपोशों से।
राह चलते
झुलसाई जाती एसिड से
और वहशियत
की तमाम सीमाएँ
पार करते
जुल्मों से ,
अपमानित की
जाती
सड़कों पर
ही नहीं संसद में भी ।
धर्मगुरु
और राजनेता ही नहीं
माफिया भी
दे रहा है प्रवचन
औरत को हद
में रहने का,
समझा रहा
हैं उसे
पहनने, खाने, बोलने, हँसने
के तरीके
और चुप
रहने के फायदे।
इन सुझावों, निर्देशों, आदेशों के आगे
एक शब्द
‘वरना’ भी है ....
और ये एक
शब्द नहीं है !
चुनौती, चेतावनी और धमकी है,
कि इतिहास
के नृशंसतम अध्याय
सिर्फ
बाँचे ही नहीं
पुनः पुनः
दोहराइए और लिखे जा रहे हैं।
समझ रहीं
हैं वह, ये सारे षडयंत्र .....
नहीं रहती
चुप
नहीं करती
आत्मसमर्पण।
और उस पर
पोती गई यह कालिख,
औरत के
चेहरे पर नहीं......
एक संपूर्ण
सदी के मुख पर है
जिसे ज्ञान
और तकनीक की चकाचौंध के बीच
बर्बर
युगों की परछाइयाँ डंस रहीं है।
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