डॉ.विवेक कुमार मिश्र ( आचार्य हिंदी,कवि,लेखक व रेखांकनकार)
मोबाइल को मोबाइल के रूप में लें, इससे अधिक न लें... - विवेक कुमार मिश्र
मोबाइल
एक संसार है । जब तक इसे संसार और सुविधा के रूप में प्रयुक्त करते हैं तब तक तो
ठीक रहता है और जब मोबाइल ही दुनिया बन जाता है तो मोबाइल संकट की तरह हो जाता है
। मोबाइल को संकट की तरह उपयोग में न लें । यह तकनीकी टूल भर है और जब इसे हम
संसार की तरह लेते हैं तो कुछ और नहीं कर पाते हैं । मोबाइल को एक सुविधा के रूप
में उपयोग करें इससे ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक हो जाता है । इसे खतरनाक हम ही बनाते
हैं । आखिर कौन आयेगा यह कहने कि इसे अपने हिसाब से उपयोग में लें । मोबाइल को
मोबाइल के रूप में लें , इससे अधिक
न लें । कब टूल संकट बन जाता ? इसे समझना जरूरी है । यह अपने
आप में संकट नहीं है संकट तो हम बनाते हैं । यह तो एक टूल है । यंत्र है । एक
तकनीकी सुविधा जिसके माध्यम से आप संसार से जुड़ते हैं । बेहतर कनेक्टिविटी के लिए
मोबाइल, स्मार्टफोन आज के तकनीकी संसार में सुविधाजनक और
जरूरी यंत्र के रूप में आते हैं । इनकी उपस्थिति जरूरी है । अनेक तरह के कार्यों
को सुचारू रूप से करने के लिए यह जरूरी है । यह किसी भी तकनीकी संसार और सुविधा की
तरह एक सुविधा है । जब हम इसे सुविधा की तरह लेते हैं तब यह सुविधा भर होती है ।
यह सुविधा उस समय खतरनाक रूप ले लेती है जब हमारे उपर इतना हावी हो जाती है कि
इसके बिना हम एक क्षण भी चल पाने की स्थिति में नहीं होते । कुछ भी कर सकने की
स्थिति में नहीं होते । फिर हम क्या कर सकते हैं । दिन रात अपने मोबाइल में अनावश्यक
रूप से व्यस्त होते हैं । जरूरत और आवश्यकता के हिसाब से हो , कुछ कार्य कर रहे हो तो कोई दिक्कत नहीं पर यूं ही मोबाइल पर पड़े रहना एक
गंभीर समस्या है जिससे हम सब दिन रात जूझ रहे होते हैं । आज की यह बड़ी समस्या
है जिसे निम्न रूप में हम सब देखते रहते
हैं -
1.
अनावश्यक रूप से बार-बार अपने गैजेट को देखना । मैसेज आने का भ्रम बना रहता है ।
या अपने आप को इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं कि इस बात से दुखी हो जाना कि पिछले
10 मिनट से कोई अपडेट नहीं आया । दुनिया कितनी तेजी से भाग रही है । हम कहां हैं
कहीं पीछे न छुट जाऊं । इस चिंता में बार बार मोबाइल को देखना । एक से अधिक मोबाइल
रखना । एक पर आंख गड़ाए रखना तो दूसरे को बगल में रख कर चलना । इस तरह व्यवहार
करना कि मोबाइल रखना भी किसी तरह का स्टेटस सिंबल हों ।
2.
मोबाइल की दूरी से बौखला जाना । इस तरह से व्यवहार करना कि मोबाइल के बिना मैं रह
ही नहीं सकता । कुछ ऐसे कि मोबाइल नहीं तो कुछ भी नहीं । यह एक तरह की बीमारी हो
जाती है कि हम अपनी दुनिया अपनी परिधि के बंदी हो जाते हैं कि इससे बाहर कुछ दिखाई
ही नहीं देता । ऐसे लोग अपने टूल के बंदी हो जाते हैं । टूल के बिना एक पल भी
गुजार नहीं सकते । इनके पास से मोबाइल या स्मार्टफोन हटा लिया जाए कि सूचना ही
इनके लिए मारक हो जाती है । ये इस तरह बेचैन हो जाते हैं कि इसके बिना कुछ कर ही
नहीं सकते ।
3.
मोबाइल गैजेट्स की दुनिया में खोए होते हैं । सबसे ज्यादा खोने वाली उम्र बच्चों
और किशोरों की हैं जो ऐसे लती हो जाते हैं कि इन्हें आप निकाल ही नहीं सकते । इनके
लिए मोबाइल या स्मार्टफोन एक उपकरण न होकर जीवन ही हो जाता है । और इसे अपने जीवन
से भी बड़ा मानने लगते हैं । मोबाइल के बिना ये एक क्षण भी रह नहीं पाते । इनके
भीतर चिड़चिड़ापन बौखलाहट और हड़बड़ाहट इन्हें आसपास से संसार से काटती है । ये
नीली रोशनी में इस तरह खो जाते हैं कि इसके अलावा कोई और दुनिया इनके लिए होती ही
नहीं ।
4.
मोबाइल पर इस कदर निर्भरता एक पूरी पीढ़ी को पंगु कर रही है । यहां पर आकर देखेंगे
कि आप कुछ भी करने लायक नहीं हैं । आपका होना न होना कोई मायने नहीं रखता । यह असर
शुरुआती आयु वर्ग पर अधिक देखने को मिलता है । बच्चे और युवाओं का जहां तक हाल है
वे स्क्रीन लाईट में इस तरह खो गये हैं कि उनके पास इससे बचकर निकलने या बाहर आने
का कोई कारण दिखाई ही नहीं देता ।
5.
इनके लिए संसार , मित्र ,
बंधु-बांधव का मतलब टूल ही है । ये उपकरण में चिह्नित संसार के
सहारे ही चलते रहते हैं । इसके अलावा इनके पास कुछ भी नहीं है । एक पूरी पीढ़ी को
नीली रोशनी और स्क्रीन के संसार में खोते हुए हम सब इस तरह देखते हैं कि बस देखना
ही है । जब आप केवल दर्शक होते हैं तो कुछ भी कार्यकारी भूमिका निभा नहीं पाते ।
ये उपकरण मनमाने ढ़ंग से निगल जाने के लिए तैयार होते हैं ।
6.
मोबाइल या गैजेट्स के संसार से बाहर निकल कर सोचने की हमारी क्षमता को महत्व दिए
जाने की जरूरत है । यदि आप इस तरह बाहर नहीं आ सकते तो आपका होना न होना कोई मायने
नहीं रखता ।
7.
मोबाइल को सब कुछ न माने । इससे बाहर निकलने की तरकीब को अपने जीवन का माध्यम
बनाना पड़ता है । मोबाइल का संसार आपको संसार भर से जोड़ता है । लेकिन इसी में जब
जुड़ जाते हैं या इसके कैदी हो जाते हैं तो स्वाभाविक सी बात है कि आपसे वह सारा
संसार छुट जाता है जो आपका वास्तविक संसार होता है । यदि आभासी संसार को भी
वास्तविक संसार की तरह देखने की ग़लती है तो दोनों तरह की दुनियाओं को खत्म करते
हैं । इसलिए सीधी सी बात है कि अपने आसपास की दुनिया से संपर्क वास्तविक रूप से
करने की कोशिश करनी चाहिए ।
8.
वास्तविक संसार हमें जीवन के करीब लाता है ।
जीवन को जीने में मदद करता है । वास्तविक संसार से जब लोगों से संवाद करते
हैं तो सुखात्मक और दुखात्मक संसार अपने वास्तविक रूप में सामने होता है । यहां आप
इस तरह व्यवहार करते हैं कि एक क्षण पहले किसी दुःख में शामिल होकर अगले ही क्षण
रील की हंसी में खो जाएं । यह सब मोबाइल की दुनिया में संभव होता है । पर वास्तविक
संसार में हम अपनी दुनिया से गायब होते जाते हैं ।
9.
आभासी समय को आप जीतना कम करते हैं उतना ही अधिक अपने जीवन संसार को सही समय और
सही ढ़ंग से देखभाल करने की दुनिया में गुंजाइश छोड़ते हैं । वास्तविक संसार आपके
लिए सेहत का खजाना भी साबित होता है । आप शरीर और मस्तिष्क को जहां इस तरह दुरुस्त
करते हैं वहीं मानसिक सिराओं को भी स्वस्थ ढ़ंग से काम करने का अवसर मिलता है । जब
आप मन से, शरीर से स्वस्थ नहीं रहते तब तक आप कुछ कर नहीं सकते ।
इसीलिए सही ढ़ंग से कार्य करने के लिए वास्तविक स्वास्थ्य पर कार्य करने की जरूरत
है ।
स्क्रीन
लाईट में खो जाने का अर्थ है कि आप अपने संसार से बेदखल होकर एक ऐसे संसार की
गिरफ्त में आ जाते हैं जहां कुछ भी आपका नहीं है । न ही कुछ आपके बस में होता है ।
यहां आप जो कुछ भी करते हैं वह अन्य शक्तियों से नियंत्रित व्यवहार का परिणाम होता
है । इसीलिए यह बराबर से देखने में आ रहा है कि नीली रोशनी की जद में डूबा संसार न
केवल शारीरिक दृष्टि से कमजोर है वल्कि मानसिक रूप से भी कमजोर होकर मानसिक स्नायु
का शिकार हो जाता है । वह अपना सारा व्यवहार बौड़म ढ़ंग से करता है । आपको यदि
उसकी हरकतों को देखना है तो बस इतना करना होगा कि उसको पास से चुपचाप मोबाइल चलाते
उसे देखिए । उसे वॉच करिए - अचानक से बिना बात केवल खिलखिला रहा होगा या चीख
चिल्ला रहा होगा । लगातार हिसंक व्यवहार के दृश्य देखकर उसके भीतर एक हिंसक जानवर
व्यवहार रूप में कुलांचे भरने लगता है । अक्सर यह सुनने में आता है कि घटनाओं के
पीछे मोबाइल, फेसबुक, और इस तरह के तकनीकी जाल में उलझे लोगों की पीढ़ी का हाथ है । इस पीढ़ी के
पास करने के लिए कुछ नहीं है । वास्तविक संसार से पूरी तरह कटकर इस आभासी
प्लेटफार्म से जीवन में रोमांच लाना चाहते हैं जिसका परिणाम अक्सर अनचाहे व्यवहार
में देखने को मिलता है । अतः इससे बचने के लिए हमें कहीं और जाने की जरूरत नहीं है
बल्कि अपने वास्तविक संसार को निकट से खुली आंखों से देखते हुए अपने व्यवहार की
रचनात्मकता को गढ़ते हुए जीवंत संसार की रचना करनी होगी ।
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