गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

मोबाइल की दुनिया में ऐसे डूबे हैं कि सामने और कुछ हो ही नहीं..... विवेक कुमार मिश्र


 डॉ.विवेक कुमार मिश्र
 (आचार्य हिंदी,कवि,लेखक व रेखांकनकार)

      मोबाइल की दुनिया में ऐसे डूबे हैं कि सामने और कुछ हो ही नहीं.....

                                   -विवेक कुमार मिश्र

मोबाइल लेकर बैठे हैं । कुछ और है नहीं न ही कुछ और के लिए सोचते हैं । यदि कोई कुछ सोचने के लिए कह देता तो उसकी खैर नहीं । अब कोई भी क्या कर सकता है जब आप दुनिया में सिर्फ मोबाइल के लिए ही मिलते हैं या मोबाइल के संदर्भ पर मिलते हैं तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता । यह इस समय के अलग किस्म के मोबाइल में खोए हुए नशेड़ी हैं । इनके लिए कोई और नशा नहीं है ।  कोई और नशा का इन पर असर नहीं होता । यह मोबाइल के संसार में खोए ऐसे नशेड़ी है कि  इन्हें कोई भी दिखाई नहीं देता है । इन्हें दुनिया में कोई और गति दिखाई नहीं देती ।

दुनिया भी सारी गति उनके लिए उनके गैजेट्स में या मोबाइल में है । ये महाराज सब कुछ छोड़कर मोबाइल की दुनिया में डूबे रहते हैं। यह अपने संसार से अपने आसपास से पूरी तरह बेदखल होकर जीवन को ऐसे जीते हैं कि सारा जीवन मोबाइल में ही हो । मोबाइल के बाहर कुछ उनके लिए है ही नहीं । हालात इतने बुरे हो उठे हैं कि उनके सामने से कोई सुंदरी भी निकल जाए तो उन्हें पता नहीं चलता कि क्या हुआ । सामने आसपास अगल-बगल ऊपर नीचे दसों दिशाओं से मुक्त होकर यह पूरी तरह से मोबाइल की नीली रोशनी में ऐसे  खोए होते हैं कि इनको कुछ भी जानने समझने के लिए संसार में नहीं होता । इनके ऊपर किसी मौसम का किसी समय का किसी तीज़ त्यौहार का कोई असर नहीं होता । यह अपने मोबाइल बॉक्स में पूरी तरह डूबे होते हैं । यह संसार में तभी आते हैं जब इनका मोबाइल या तो बंद हो जाता है या इनका मस्तिष्क जवाब दे जाता । अब और नीली रोशनी नहीं देख सकते तो आंख मिचमिचाते हुए थोड़ी देर के लिए मोबाइल को बगल में रखकर पता नहीं किस चिंतन की मुद्रा में डूबे मिलते हैं कि इनसे व्यस्त आदमी कोई संसार में हो ही नहीं ।

मोबाइल इन्हीं के लिए संकट नहीं है । वह तो पूरी पूरी पीढ़ी के लिए संकट है पर इस तरह के लोग इस संकट और खतरे की सबसे सुपर ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं । जिनके सामने रख आप लोगों को इस मोबाइल एडिक्शन से बचने की राय दे सकते हैं । आजकल यह भी सेवा का एक क्षेत्र बन रहा है कि आप अपने आसपास अपने परिचितों में कुछ हद तक मोबाइल से दूर रहने या मोबाइल के समुचित प्रयोग की सलाह दे सकते हैं । यह एक तरह की सामाजिक और सांस्कृतिक सेवा की तरह ही है जिसे देखो वही मोबाइल में डूबा है । इसके लिए कोई सीमा कोई वर्ग कोई उम्र नहीं है बस एक बार आपके हाथों में मोबाइल के किसी तरह पहुंचने की जरूरत है । यह टूल / शस्त्र एक बार आपकी पहुंच में आ जाए फिर तो यह ऐसे साथ निभाता है कि आप इसके बिना रह ही नहीं सकते । किसी भी तरह आप मोबाइल की दुनिया में जाने के लिए एक न एक जुगाड़ लगा ही लेते हैं । मोबाइल का संबंध आम वर्ग से लेकर खास वर्ग तक युवा पीढ़ी से लेकर बुजुर्ग पीढ़ी तक । क्या स्त्री क्या पुरुष सभी इस खास टूल के पास अपने को जोड़कर इस तरह रखते हैं कि इसके अभाव में कोई और उपाय सूझता ही नहीं। इस मोबाइल के साथ यदि देखें तो कौन-कौन से वर्ग किस-किस रंग और किस ढंग से जुड़ा है तो कोई बचा हुआ नहीं दिखता ।

1. मोबाइल हमारी जरूरत है और हम इसे जरूरत के रूप में लेते हैं । इस कथन के साथ हर कोई उपयोग करता । मोबाइल की शुरुआत इसी तरह होती है। देखते-देखते मोबाइल की दुनिया में नीली रोशनी में वह इस तरह खो जाता है कि उसे कुछ और दिखाई नहीं देता और एक समय ऐसा भी आ जाता है कि वह  न तो कुछ देखना चाहता । न ही वह अपनी दुनिया में कुछ और होने की स्थिति को छोड़ना । इस तरह देखते-देखते वह पूरी तरह मोबाइल में खो जाता है और अंततः मोबाइल में इतना गहरे डूब जाता है कि उसके लिए और संसार के लिए कुछ नहीं बचता ।

2. बच्चों को अक्सर मोबाइल माता-पिता , अभिभावक खेलने के लिए देते हैं । शुरू-शुरू में उसका तकनीकी जुड़ाव और नई तकनीक की समझ को देखते हुए माता-पिता को बड़ी खुशी होती है कि हमारा बालक मोबाइल के जटिल से जटिल फंक्शन को समझता है । और हर समस्या का समाधान कर देता है । यहीं पर पालक अभिभावक से गलती होती है कि बच्चों को ज्यादा समझदार समझकर वह मोबाइल के साथ में पूरी तरह स्वतंत्र और अकेले छोड़ देते हैं जो बच्चे के लिए और परिवार के लिए एक साथ खतरनाक हो जाता है । अक्सर यह सब समस्याएं जब मुंह उठाकर खड़ी हो जाती हैं तो उसे हम देखते हैं और विचार करते हैं। यह स्थिति बहुत खतरनाक हो जाती है जिसे अक्सर परिवारों में आज देखा जा रहा है ।

3. मोबाइल का प्रयोग करते हुए किसी तरह की समस्या का न होना एक लापरवाही से मोबाइल का प्रयोग करते हुए हम चलते रहते हैं । इन्हें लगता ही नहीं कि यह किसी तकनीक टूल का प्रयोग कर रहे हैं । यह ऐसे लोग होते हैं जो टहलते घूमते-चलते फिरते हर समय मोबाइल को अपने हाथ की शोभा बना कर चलते हैं । चलते-चलते कभी मोबाइल में खो जाते हैं और कब खंभे से टकरा जाते हैं इन्हें पता ही नहीं चलता । यदि खंभे से टकराने के बाद भी सुधर जाए तो स्थितियां संभल जाए । पर यह संभलेंगे तब तक तो कोई बड़ा एक्सीडेंट हो जाता है । हाथ पैर टूट जाए उसके बाद मोबाइल उनकी जिंदगी में खलनायक की तरह दिखता है ।

4. मोबाइल को समय पास करने वाले उपकरण के रूप में उपयोग करने वाले बुजुर्ग । ये लोग काफी समझदार होते हैं । यह अपना समय काटने के लिए मोबाइल का उपयोग करते हैं । इन्हें जब लगता है कि उनके पास कोई नहीं है तो मोबाइल उनके लिए एक दुनिया बन जाता । उनकी आंखों के सामने एक पूरी दुनिया खुल जाती है । पर दुनिया देखने की जगह उनकी उम्र में तकनीकी अभाव के कारण अक्सर नए-नए संकट भी सामने आते हैं ।

5. मोबाइल वे सारे कामकाजी लोग चलाते हैं जिनका सारा कार्य मोबाइल पर ही होता है । यह इनकी जरूरत है और इसके बिना यह नहीं रह सकते । यह जो ऑफिस मोबाइल है । यह आपको सतर्क रहने , अपडेट रहने और क्या जरूरी है और क्या गैर जरूरी है के लिए है । एक  समझदारी के साथ रहने और इसी अनुरूप प्रयोग करने की जिम्मेदारी देता है । आपके लिए यह जरूरी है कि आपको सजग रहना भी जरूरी है । इससे आवश्यकता से अधिक देखकर अपनी आंखों को खराब ना करें। न ही मानसिक शक्तियों को कमजोर करें ।

6. मोबाइल को जरूरत के हिसाब से प्रयोग करें । समय-समय पर ब्रेक लें । एक बार मोबाइल का प्रयोग करने के बाद कम से कम आधा घंटे के लिए ब्रेक लेना भी सीखें ।

7. मोबाइल मैसेज और केवल व्हाट्सप्प , फेसबुक पर निर्भर रहने की जगह मोबाइल कॉल की दुनिया में भी जाना जरूरी है । जो आजकल लोग नहीं जाते । आजकल पूरा समाज मैसेजिंग में खोया है । कॉल नहीं कर रहा है । किसी को याद भी नहीं रहता कि वह अपने मित्र को इससे पहले कॉल कब किया ? जबकि व्हाट्सएप मैसेज दिन में चार बार कर चुका है । समय-समय पर अपडेट रहता है । पर यह अपडेट रहना एक तरह का मानसिक झटका भी हो सकता है । इसलिए समय-समय पर कॉल भी कर लेना उचित है । स्वस्थ रहने के लिए सामाजिक संवाद के लिए कॉल करना ज्यादा उचित है जिसे हम सब भूल गए हैं ।

8. समय-समय पर मोबाइल को छोड़कर अपनी वास्तविक दुनिया में बैठना परिवार के साथ रहना आपस में बातचीत करना ज्यादा जरूरी है।आसपास पड़ोस से बात करें ना कि मैसेज।

9. जब हम स्वयं मैसेज से निकलेंगे तभी अन्य को भी मैसेज के जाल से निकलकर सही दुनिया का निर्माण कर सकेंगे ।

इस तरह साफ है कि हमें आज के तकनीकी संसार में रहते हुए भी हमें अपने वास्तविक संसार को सही ढंग से समझना होगा । तकनीक को केवल तकनीक के लेवल पर प्रयोग करने की जरूरत है। उसे अपनी दुनिया बनाकर अपने को दुनिया से बेदखल करने की जरूरत नहीं है । यह सुविधा है । इसे सुविधा की तरह लेने की जरूरत है ।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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