सोमवार, 25 दिसंबर 2023

मेरी क्रिसमस - हूबनाथ

 




 

हूबनाथ पांडे (कवि,लेखक,आलोचक और प्रोफेसर,मुंबई विश्वविद्यालय)


मेरी क्रिसमस

मेरे प्यारे जीजस!

उतना क्रूर समय
नहीं था तुम्हारा

कड़कड़ाती ठंड में
पैदा हुए तुम अस्तबल में
और बच गए

जबकि घूम रहे थे हत्यारे
तुम्हारे लिए
किसी शासक के इशारे पर

इस दौर में
लाखों दुधमुँहें शिशु
बिल्कुल तुम्हारी तरह
अनायास मर जाते हैं

इनमें कोई हाथ नही
इस दौर के शासकों का
वे तो बच्चों से भी
मासूम होते हैं

दरअसल
छोटे बच्चों की मौत में
कोई थ्रिल नहीं है

इसलिए हर शासक
कुछ बड़ों को मारने के लिए
कुछ बड़ों को 
सुसज्जित करता है
बमों मिसाइलों
टैंकों मोर्टारों से

एक साथ
लाखों की तादाद में मरें
ऐसी व्यवस्था की है
ज़्यादातर शासकों ने

उन्होंने भी
जो तुम्हारे गुण गाते हैं
और उन्होंने भी
जो पूजते हैं बुद्ध को

बेथलेहम की गलियों में
जैसे तुम्हें घसीटा गया
वैसे रोज़ घसीटे जाते हैं
हज़ारों हज़ार

कभी धर्म के नाम पर
कभी राष्ट्र के
तो कभी संप्रदाय के 

तुमने नहीं देखे होंगे
शहर के शहर
जलते हुए

नफ़रतों के
ख़ूँख़्वार भेड़िये
नगरों में पलते हुए

तुम बेहतर समय में जनमे
तुम्हें पता था
कौन मित्र है
और कौन हत्यारा
कौन विनम्र
कौन अहंकार का मारा

हमारे लिए तो
हत्यारे को
मित्र कहने की मजबूरी है

सत्य और हमारे बीच
उतनी ही दूरी है
जितनी तुम्हारे और
जूडस के बीच थी
आख़िरी भोजन के समय

मुझे बेहद ख़ुशी है
कि तुम नहीं जनमे
हमारे क्रूर समय में

कड़कड़ाती सर्द रातों में
उन बच्चों के बीच

जिनके जनम पर
फ़रिश्ते नहीं
यमदूत आते हैं
बधाइयाँ देने

कुपोषण और बीमारियाँ
सोहर गाती हैं
और धरती बेकरार होती है
सर्द सीने में छिपाने के लिए

जिनका कभी नहीं होता
पुनरुत्थान
तुम्हारी तरह

मेरी क्रिसमस

ओ मेरे प्यारे जीजस!







1 टिप्पणी:

Dosi ने कहा…

अच्छी कविता

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